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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अचका अंजरअवका-वि० (दे० ) अपरिचित, अन- | अंजनशलाका- संज्ञा स्त्री० (सं० ) सुस्म जाना। लगाने की सलाई, सुरमचू । अचकरी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) लम्पटता, अंजनसार-वि० ( सं० अंजन--सारण अनुचित कार्य, अत्याचार, धींगाधींगी। सुरमा लगा हुआ, अंजनयुक्त, अंजन का अँचरा-संज्ञा, पु० (दे० ) अंचल, आँचल, सार भाग। साड़ी का आगे वाला छोर ।। अंजनहारी- संज्ञा स्त्री. ( सं०-अंजन+ अंचल-संज्ञा, पु० (सं०) साड़ी का छोर | कार ) आँख के पलक पर होने वाली फुस जो सामने रहता है, पल्ला, - आँचल या या फुड़िया, बिलनी, गुहाजनी, एक प्रकार आँचर, सीमा के समीपवर्ती भाग, किनारा, का पतिंगा या कीड़ा, इसे कुम्हारी य तट। बिलनी कहते हैं इसके विल की मिट्ट मु०-अंचल बाँधना-संकल्प करना, लगाने से बिलनी अच्छी हो जाती है अंचल पकड़ना-सहायता या सहारा देना। भृङ्ग, अंजन को नाश करने या चुरा वाली। अँचला-संज्ञा पु० (सं०-अंचला ) [दे०आँचल ] साधुओं का एक वस्त्र, जिसे वे अंजना-संज्ञा स्त्री० (सं० ) केशरी नामक बानर की स्त्री तथा हनुमान जी की माता, शरीर पर डाले रहते हैं। अंचित--वि० (सं० ) पूजित, आराधित । बिलनी, गुहाजनी, दो रंग की एक छिपअंचर-संज्ञा पु० (सं-अक्षर ) [अच्छर, कली। संज्ञा पु. एक प्रकार का मोटा पाखर-दे०] मुंह में काँटे से उभर आने धान । अंजनानन्दन--संज्ञा पु० (सं.) का रोग, अक्षर, टोना, जादू ।। हनुमान जी, अंजना के पुत्र । मु०-अंछर मारना-जादू करना, मंत्र आँजना*-क्रि० स० (दे० ) अंजन लगाना। चलाना, टोना मारना।। अंज-संज्ञा पु० देखो कंज । अंजनी- संज्ञा स्त्री० (सं० ) हनुमान जी की अंजन-संज्ञा पु० (सं० ) सुरमा, काजल, माता, माया चंदनचर्चित स्त्री, कुटकी या रात, स्याही, रोशनाई, पश्चिम दिशा के एक प्रकार की औषधि, आँख के पलक की हाथी का नाम, एक दिग्गज, छिपकली, एक फुसी, बिलनी। प्रकार का बगला, नटी, एक प्रकार का वृक्ष, अंजघार - संज्ञा पु० (फा०) सरदी और एक पर्वत, कद् से उत्पन्न होने वाले एक सर्प | कफ में दिये जाने के योग्य एक विशेष का नाम, लेप, माया, काला या सुरमई रंग। प्रकार के पौधे की जड़ ।। ( हिं० दे० ) रेलगाड़ी के आगे का इंजन । अंजर-पंजर-संज्ञा पु० (सं०-पंजर-ठठरी) सिद्धांजन-संज्ञा पु० (सं० ) वह काजल शरीर की हड्डियों का ढाँचा, पसली, ठठरी, जिसके लगाने से पृथ्वी में गड़ा हुआ धन जोड़। दिखलाई देने लगे। मु०--अजर-पंजर ढीला होना-देह के अंजनकेश-संज्ञा पु० ( सं०) दीपक, दिया, जोड़ों का उखड़ना, देह के बन्दों का टूट काजल ही हैं केश जिसके, अंजन के से कर हिल जाना, शिथिल या लस्त हो जाना। श्याम केश। अंजर-पंजर निकल पड़े- ठठरी या अंजनकेशी-संज्ञा स्त्री० (सं० ) नख नाम ! भीतरी चीजें निकल आई । क्रि० वि० का एक सुगन्धित पदार्थ, अंजन के से श्याम अगल-बगल, पार्श्व में। अंजरी-पंजरी केश वाली। (दे०) प्रांजर-पांजर ( दे.) For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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