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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मृति - स्फुटन-संज्ञा, पु. (सं०) फूटना, खिलना, स्मरणपत्र ---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) किसी को विकसना, हँसना । वि०... स्फुटनीच । । किसी बात की याद दिलाने के लिये लिखा स्फुटित-वि० (सं०) खिला हुआ, विकसित, गया लेख। हँसता हुआ, फूला हुआ, स्पष्ट या साफ़ स्मरण शक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्मृति, किया हुआ। “ स्फुटितमप्यखिलं वरणद्वयं । याददाश्त, याद रखने की शक्ति, धारणा विकचताम-रस-प्रितिमं भवेत् "-लो.।। शक्ति, मन की वह शक्ति जो किसी देखी स्फुरण-संज्ञा, पु० (सं०) कंपन, किसी वस्तु | सुनी या अनुभव की हुई वस्तु या बात को का धीरे धीरे और थोड़ा थोड़ा हिलना, ग्रहण कर रख छोड़ती है। फुटना, अंगों का फड़कना, स्पंदन। सारणीय --- वि० (सं०) स्मरण या याद रखने स्फुरति*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्फूर्ति) के योग्य । धीरे धीरे हिलना या कॉपना, फड़कना, स्मरना--स० क्रि० दे० (सं० स्मरण ) स्मरण फुटना। __ या याद करना, सुमिरना (दे०)। स्फुरित-वि०सं०) स्फुरण-युक्त, स्फूर्तिमय। | स्मरारि-संज्ञा, पु० यो० (सं०) कामारि, स्फुलिंग-संज्ञा, पु० (सं०) चिनगारी। महादेव जी । “स्मरारे पुरारे यमारे हरेति" स्फूर्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) धीरे धीरे हिलना, __-शं० । " स्मरारि मन अस अनुमाना" स्फुरण होना, फड़कना, किसी कार्य के लिये --स्फु० । मन में हुई ईषत, उत्तेजना, तेज़ी फुरती। स्मर्ण*--संज्ञा, पु० दे० (सं० स्मरण ) स्मरण, याद। स्फोट-संज्ञा, पु०(सं०) वाह्यावरण को तोड़ स्मशान-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्मशान ) कर किसी वस्तु का बाहर आना, फूटना, श्मशान, मरघट, मसान, समसान (दे०)। बाहर निकलना, शरीर का फोहा फसी, स्मारक-वि० (सं०) याद दिलाने या स्मरण ज्वालामुखी पर्वत से सहसा अति आदि कराने वाला, किसी की स्मृति बनी रखने का फोड़ निकलना। को प्रस्तुत की गई वस्तु या कृत्य, यादगार, सकोटक-- संज्ञा, पु० (सं०) फोड़ा, फुसी। स्मरण रखने को दी गई वस्तु । स्फोटन-संज्ञा, पु० (सं०) विदारण, फोड़ना, | स्मार्त-संज्ञा, पु. (सं०) स्मृति-लिखित फाड़ना, विदीर्ण होना। कार्य या कृत्य, स्मृति-लिखित कार्य स्मर-संज्ञा, पु० (सं०) मार, मदन, कामदेव, | करने वाला, स्मृति शास्त्र का ज्ञाता । वि०-- मनोज, स्मरण, याद, स्मृति, समर (दे०)। स्मृति का, स्मृति-संबंधो। यौ०-स्मात "श्राप विाधा कुसुमानि तवाशुगान् स्मरवैषाव। विधाय न निवृतिमाप्तवान्'--नैष । स्मित-संज्ञा, पु० (सं०) मुसकान, मंदहास स्मरण-- संज्ञा,पु० (सं०) याद बना पा करना, या हँसी। " स्मित-पूर्वानुभाषिणीः "किसी देखी-सुनी या अनुभव की हुई बात वा० रामा० । वि०-विकसित, खिला हुआ, का फिर मन में थाना, नौ प्रकार की भक्ति प्रस्फुटित, फूला हुआ। में से एक जिसमें भक्त भगवान को सदैव | सात - वि० (सं०) याद किया या स्मरण में स्मृति में रखता है, एक अलंकार जिसमें | पाया हुआ। किसी वस्तु या बात को देख वैसी ही किसी स्मृति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्मरण, याद, विशेष वस्तु या बात के याद 'पाने का स्मरण शक्ति से संचित किया ज्ञान, हिंदुओं कथन हो (भ० पी०), अस्मरण (दे०)। के धर्म ( कर्तव्य ) प्राचार-व्यवहार शासन, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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