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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सेवर सेवर - संज्ञा, पु० दे० (सं० शबर) शबर, एक जंगली जाति । वि० - ( प्रान्ती०) श्राँच से कम पका हुआ । मेवरा -- संज्ञा, पु० दे० ( हि० सेवड़ा ) जैन साधुयों का एक भेद | वि० (दे०) पाँच में कम पका, कच्चा । स्री० - सेवरी । सेवरी - संज्ञा, त्रो० दे० (सं० शबरी ) शबर जाति की एक स्त्री जो राम की भक्तिन थी (रामा० ) । वि० स्रो० ( हि० सेवरी) । सेवल - संज्ञा, पु० (दे०) व्याह में एक रीति १८१६ या रूम । सेवा - संज्ञा, स्रो० (सं०) श्राराधना, पूजा, परिचर्या, टहल, ख़िदमत, नौकरी, दासता, उपासना, दूसरे को श्राराम पहुँचाने की क्रिया। मुहा० मेवा में - सम्मुख, समीप, पास । शरण, आश्रय, रत्ता, मैथुन, संभोग, रति । सेवा टहल-संज्ञा स्त्रो० यौ० (सं० हि० ) परिचर्या, खिदमन, सेवा-शुश्रवा । मेवाती-संज्ञा स्त्री० दे० (सं० स्वाति) स्वाति नक्षत्र, सेवती का पुष्प । सेवाधारी-संज्ञा, पु० (सं० ) उपासक, पुजारी । सेवापन -- संज्ञा, पु० दे० (सं० सेवा + पनहि० प्रत्य०) सेवावृत्ति, नौकरी, दासता । सेवा बंदगी-संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० सेवा + बंदगी - फा० ) पूजा, उपासना, श्राराधना । मेवार - मेवाल - सज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० शैवाल) पानी में फैलने वाली एक घास । " ज्यों नदियन में बधै सेवार " - बाल्हा० । सेवा-वृत्ति-पंज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) नौकरी, दासत्व, दासता, भत्य-जीविका । सेवि - संज्ञा, पु० ( पं० ) सेवी का समास में रूप, सेवा करने वाला । वि० (दे०) सेव्य, सेवित । मेविका - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) किंकरी, दासी, नौकरानी, सेवा करने वाली, अनुचरी, परिचारिका ! सेसर सेवित - - वि० (सं०) पूजित, जिसकी पूजा या सेव" की गई हो, व्यवहृत, उपयोग या उपभोग किया हुआ, प्रयुक्त, प्राराधित, जिसका भोग या प्रयोग किया हुआ । सेवी - त्रि० (सं० सेविन् ) सेवा या पूजा करने वाला, सेवन या संभोग करने वाला | "तुम सुर, धेनु विप्र, गुरु-सेवी" - -- रामा०| संज्ञा, पु० (सं०) दास । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेव्य - वि० (सं०) पूज्य, उपास्य, जिसकी सेवा करना उचित हो, जिसकी सेवा की जाये या करना हो, सेवा और धाराधना करने योग्य, उपभोग या प्रयोग के योग्य, रक्षण और संभोग के योग्य | संज्ञा, पु० स्वामी, प्रभु, पीपल वृक्ष, अश्वत्थ, पानी, जल । स्त्री० मेव्या । सेव्य-सेवक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वामी, और दास । यौ० - सेव्य-सेवक भावभक्ति मार्ग में उपासना का वह भाव जिसमें भक्त अपने को दास और उपास्य देव को अपना स्वामी माना जाता है, दास्य-भाव । सेश्वर - वि० सं०) परमेश्वर के सहित, ईश्वर-संयुक्त, जिसमें परमेश्वर की स्थिति मानी गयी हो । सेप - पंज्ञा, पु० दे० (प्र० शेख) मुसलमानों का एक जाति, शेख, सेख (दे० ) | संज्ञा, पु० (दे०) शेषनाग (सं०) शेष, धवशिष्ठ । सेस - संज्ञा, पु० वि० दे० नाग, शेषजी, जो बाक़ी शेषावतार लक्ष्मण । सेवनाग संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शेषनाग ) शेषनाग | "सेषनाग पृथ्वी लीन्हे हैं इनमें को भगवान” – कवी० । सेसरंग - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शेषरंग) श्वेतरंग | सेसर संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा ० से हसर तीनबाज़ी) ताश का खेल, जाल, बालसाजी, वि० (दे० ) तिगुना । For Private and Personal Use Only (सं० शेष) शेषबचे, श्रवशिष्ठ,
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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