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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सूर्य-मणि सूर्य-मणि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० सूर्यकांतमणि ) सूर्यकांत मणि, श्रातशी शीशा । सूर्यमुखी -संज्ञा, पु० यौ० (सं० सूर्यमुखिन् ) सूरजमुखी (दे०) दिन में ऊपर और संध्या में नीचे झुक जाने वाले पीले फूल का एक पौधा | सूर्य-लोक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य का लोक ( कहा जाता है कि रण में मरे वीर इसी लोक में जाते हैं ) । सूर्य वंश - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) भानु- वंश, pear वंश, क्षत्रियों के दो प्रधान और आदि के कुलों में से एक कुल, जिसका यदि राजा इताकु से होता है। " कसूर्य प्रभवो वंशः ". - बधु० । सूर्यवंशी - वि० (सं० सूर्यवंशिन् ) सूर्यवंश का, सूर्य वंश में उत्पन्न | वि०सूर्यवंशीय | १८१३ सूर्य संक्रांति - संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) सूर्य का एक राशि से दूसरी में जाना (ज्यो० ) । सूर्य सारथी - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अरुण | सूर्य-सुत - संज्ञा, पु० (सं०) सूर्यपुत्र, सूरजसुत । सूर्यसुता – संज्ञा, स्री० (सं०) यमुना, सूरजसुता (दे० ) । सूर्या - संज्ञा, त्रो० सूर्य प्रिया, रवि-पत्ती ! सूर्यामा - संज्ञा, स्री० यौ० (सं०) सूर्य की प्रभा, घाम, धूप । सूय्र्यावर्त्त - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हुलहुल पौधा, एक प्रकार का अर्ध शिर-शूल, श्राधाशीशी । (सं०) सूर्य की स्त्री, सूर्यास्त - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सायंकाल, संध्या, सूर्य का डूबना या छिपना | सूर्योदय - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य का उदय या प्रकट होना, प्रकाशित होना, निकलना, प्रातःकाल । " सूर्योदय सकुचे कुमुद, उड़गण जोति मलीन" - रामा० । सूर्योपासक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्या सूही चक. सूर्य पूजक, सूर्य की पूजा या उपासना करने वाला, सौर | सूर्योपासना - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सूर्य की पूजा या उपासना, सूर्याराधन, सूर्या न्चन । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूल - संज्ञा, पु० दे० (सं० शूल) बरछा, भाला, साँग, काँटा कोई चुभने वाली चीज़, एक प्रकार की चुमने की सी पीड़ा, कसक, दर्द, पेट की पीड़ा, भाला का ऊपरी भाग । " 'वचन सूल-सम नृप उर लागे " - रामा० । सूलघर - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शूलधर ) शिव जी । · i सुनना - ए० क्रि० दे० (हि०) भाले से छेदना, पीड़ित करना । अ० क्रि० (दे०) भाले से छिदना, पीड़ित या व्यथित होना, वेदना पाना, दुखना । सूज-पानि - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शूलपाणि) शूलपाणि शिव जी । सूली - संज्ञा, त्रो० दे० (सं० शूल ) दंडित व्यक्ति को एक नुकीले लोहे पर बैठा कर ऊपर से थाघात कर प्राण दंड देने की एक पुरानी रोटि फाँसी | संज्ञा, पु० दे० (सं० शूलिन् ) शूली, शिवजी । सूचना* अ० क्रि० दे० (सं० स्रवण ) बहना | संज्ञा, पु० दे० (सं० शुक्र ) तोता, सुश्रा, सुचना, सुगना । सूवा संज्ञा, पु० दे० ( सं० शुक्र ) तोता, सुग्गा, सुवा. सुगना । सुस- सूसि - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शिशुमार ) मगर जैसा एक जल-जंतु, सुइस । सूसी - संज्ञा, खी० (दे० ) एक प्रकार का कपड़ा । सुसुम - वि० (दे०) कुनकुना, थोड़ा गरम | सुहा -- संज्ञा, पु० दे० ( हि० सोहना ) एक तरह का लाल रंग एवं मिश्रित राग, ( संगी० ) । वि० ( स्त्री० सूही ) लाल, लाल रंग का । सूही - वि० सी० दे० ( हि० सोहना ) लाल रंग, सूहा । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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