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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक १८०७ सूचना सूजी, मुई, सूची, अन्नादि का अंखुपा, बुद्धि जिससे गूढ़ और कठिन बातें या विषय किसी बात का सूचक काँटा या तार। भी शीध समझ लिये जावें । संज्ञा, पु. (सं०) सुका-संज्ञा, पु० दे० (सं० शुक) तोता। सहमदशी। संज्ञा, पु० दे० सं० शुक्र शुक्र तारा,मकवा। सूचमशरीर- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पाँच सूकना-- अ० कि० दे० (हि. सूखना ) प्राण, पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच सूक्ष्मभूत, मन सूखना, शुष्क हो जाना। और बुद्धि का समूह । सूकर-संज्ञा, पु० (सं०) शूकर, सुपर । सूखा-वि० दे० (हि० सूखा) सूखा । सूकरक्षेत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक प्राचीन सूबछड़ा-संज्ञा, स्त्री. (दे०) यी रोग, यचमारीग। तीर्थ, ( मथुरा प्रांत ) सोरौं, सूकरखेत सूखना--अ० क्रि० दे० (सं० शुष्क) किसी (दे०) । "मैं पुनि निज गुरु मन सुनी, कथा पदार्थ से नमी या तरी का निकल जाना, सु सूकर खेत"- रामा० ! श्रार्द्रता या गीलापन न रहना, रस-हीन सूकरी---संज्ञा, स्त्री० (सं०) सूअर की मादा।। हो जाना, पानी का नाश या कम हो जाना, सूका--संज्ञा, पु० दे० (सं० सपदिक) चवन्नी, चार पाने का रिका। झुराना (ग्रा०) उदास या मलिन होना, तेज या कांति का नष्ट हो जाना, डरना, सूक्त-संज्ञा, पु० (सं०) वेद-मंत्रों का समूह, श्रेष्ठ कथन | वि० भले प्रकार कहा हुश्रा, सन्न होना, कृश या दुर्बल होना, नष्ट होना । सुकथित । स० रूप----सुखाना, प्रे० रूप-मुखवाना। सूक्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) श्रेष्ठ उक्ति या सूखा--- वि० दे० (सं० शुष्क) शुष्क, जिसकी कथन, सुन्दर पद चा वाक्यादि । नमी, तगी या पानी नष्ट हो गया हो या सूच्छप-वि० संज्ञा, पु. द० (सं० सूक्ष्म) जाता रहा हो, कोरा, उदाल, कांति-हीन, सुच्छम, सूक्ष्म, सूछम (दे०), छुच्छम कठोर, कड़ा, कर, हृदय हीन, नीरस, निर्दय, ग्रा०)। निरा, कोरा, केवल । स्रो०-सूखी। मुहा० सूक्ष्म-वि० (सं०) अति लघु, छोटा, महीन -सूखा. (कोरा) जवाब देना--- साफ या बारीक, संक्षिप्त । संज्ञा, स्त्री०- साफ नाहीं कर देना, साफ इनकार करना। सूक्ष्मता। संज्ञा, पु०- परब्रह्म, परमाणु, संज्ञा, पु. (दे०) तम्बाकू का सूखा पत्ता, लिंग शरीर, एक अलंकार जहाँ सूचम चेष्टा अनावृष्टि, पानीन बरसना, जल-हीन स्थान, से चित्त वृत्ति के दिखाने या लक्षित करने नदी-तट, एक खाँसी, हब्बा-इब्बा रोग, का कथन हो"--(अ० पी०)। लड़कों का एक रोग, सुखंडी। सूक्ष्मता-संज्ञा,स्त्री० (सं०) सूक्ष्मत्व, बारीकी, सूघर* - वि० दे० (हि० सुघड़) सघर (दे०) महीनपन, स्वल्पता अणुता । क्रि० वि० -- सुन्दर, मनोहर, मनोरम। सक्ष्मतः, सक्ष्मतया ।। सूचक - वे० (सं०) बताने या सूचना देने सूक्ष्मदर्शकयंत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) खुर्द- वाला, बोधक, ज्ञापक । स्त्री०- सचिका। वीन जिससे छोटे पदार्थ बड़े देख पड़ते हैं। "प्रभु-प्रभाव-सूचक मृदु बानी"--रामा० । सूक्ष्मदर्शिता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कठिन या संज्ञा, पु० - सूची. सुई, दर्जी, सीने वाला. बारीक बातों के सोने या समझने का गुण। कुत्ता, सूचधार, नाटककार । सूदनदर्शी-वि० (० सूक्ष्मदर्शिन् ) कठिन, सूचना-पज्ञा, स्त्री० (सं०) विज्ञप्ति, विज्ञा. गूद या बारीक बातों का समझने वाला. पन, इश्तहार किसी को बताने, सावधान तीब बुद्धि । करने या जताने की बात, किसी को सूचित सूक्ष्मदृष्टि-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( स०) ऐसी की जाने वाली बात का कागज़ या पत्र, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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