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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंहोदरी मिकुड़न वाला २५वाँ भेद (पिं०) एक औषधि विशेष तागदो, जंजीर जैसा सोने का गले का एक (वैद्य०) । “घनदारु सिही शंठी कण- गहना। पुष्करजा कषायः '-लो. ! मिकत-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० सिकना) सिंहोदरी-वि० सी० यौ० (सं०) सिंह की बालू , रेत । " सूर सिकत हठि नाव चलायो सी सूचम कटिवाली। ये सरिता हैं सूवी''--भ० गी० । सिन, सियनि-संज्ञा, खी० (दे०) ! सिका संज्ञा, स्त्री० (सं०) बालू , रेत रेग, सिलाई, सीवन । बलुई भूमि, शकरा. चीनी। रसिकता सियरा* - वि० दे० (सं० शोतल ) ठंढा, । सिकता दिग्वला रही"-सरस । “सिकता तें वरु तेल''.--रामा। शीतल । " सिअरे बदन सूखि गये कैसे" । -रामा० । संज्ञा. पु. (दे.)- छाया, सिकत्तर - संज्ञा, पु० दे० ( अं० सेकेटरी) किसी सभा या संस्था का मंत्री, वजीर, छाहीं, छाँह । सेक्रेटरी ( अं०) संज्ञा, स्त्री० (दे०) सिमाना --स. क्रि० दे० ( हि० सिलाना ) सिकत्तरी। सिलाना, सिवाना वस्त्रादि)। सिकन-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शिकन (फ़ा०) सिपार-संज्ञा, पु० दे० (सं० शृगाल ) सिकुड़न ।। स्यार (दे०), गीदड़, शृगाल, एक जंगली सिकर--संज्ञा, स्त्री० द० (सं० श्रृंखला ) जंतु । स्त्री०-मिश्रारनी, सिग्रारिन। जज़ीर, सँकरी। सिकंजबीन-संज्ञा, स्त्री० (फा०) सिरका सिकर बार-- संज्ञा, पु० (दे०) क्षत्रियों की एक शावा। या नीबू के रस में पका शरबत ! सिकरा-संज्ञा, पु. (दे०) शिकरा नामक सिकजा--संज्ञा, पु० दे० ( फ़ाः शिकंजा) एक शिकारी पती। फंदा, जाल। सिकली--संज्ञा, स्त्री० दे० । अ० सैकल ) सिकंदर-संज्ञा, पु० दे० ( अं. सिगनल) - धारदार हथियारों की धार पैनी करने या रेल की सड़क के किनारे पर ऊँचे खम्भे में खान धरने का काम।। लगा हा हाथ या तलता था डंडा. जो सिकलीगर-संज्ञा, पु. द० (अ० संकलन झुम्कर पाती-जाती हुई गाड़ी की सूचना | गर--फा० --प्रत्य०) धारदार हथि पारों को देता है, सिगनल (अं०) सिगल (दे०)। धार पैनी करने वाला, सान धाने वाला। संज्ञा, पु. (फा०) यूनान का एक प्रतापी "हमहिं न मारयो हहि न मारयो हम सम्राट । महा-कदीर का सिकंदर सिकलीगर अहिन तुम्हार"---श्रा० वि० । -अति भाग्यशाली। सिकहर-सिकहग--सज्ञा, पु० दे० ( सं० सिकंदरा-संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा. सिकंदर ) | शिक्य : घर ) सींका, छीका । मुहा०एक नगर । सिकहर पर चढ़ना-इतराना। सिकड़ा-संज्ञा, पु० द० ( सं० श्रृंखला ) । सिकार--- संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० शिकार ) जंजीर, साँकर, साँकल (प्रान्ती.) । स्त्री० --- शिकार करने वाला, अहेरी, पाखेटी, शिकार मिकड़ो। का जंतु । सिकना-संज्ञा, पु० (दे०) सीकचा, | सिकारी---वि० दे० (फा० शिकारी) शिकार साखचा (फ़ा०)। करने वाला, अहेरी. आखेटी । सिकड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं. शृंखला) सिकुड़न संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० संकुचन) किवाड़ की कुंडी, जज़ीर, साँकन, करधनी, संकोच, आकुंचन, शिकन, वल । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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