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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - EDREMADRID सापवाद सापवाद-वि० (सं०) अपवाद या बदनामी साबिक-दस्तर--पूर्व रीत्यानुसार, पहले के साथ। के समान, जैसा पहले था वैसा ही, सापेक्ष्य --वि० (सं०) जिसकी अपेक्षा या यथापूर्व । परवाह की जाये। साबिका ----संश, पु. (अ०) भेट, मुलाकात, साफ़-वि० (अ०) स्वच्छ, बिमल, निर्मल, | सरोकार, संबंध, सावका (दे०) । उज्वल, जिसमें झझट या बखेड़ा न हो, स्पष्ट, सावित - वि० (अ०) सिद्ध प्रमाणित, जिसका शुद्ध, बे ऐब, निष्कलंक, निर्दीष, विकार प्रमाण या सबूत दिया गया हो, ठीक, रहित, शुभ्र, चमकीला, निष्कपट, छलादि प्रमाण पुष्ट, सही, दुरुस्त. सावुत (ग्रा०) । से रहित, हमवार, समतल, कोरा, ख़ालिस, " दुइ पाटन के बीच परि, साबित गया न सादा,अनावश्यक या रद्दी अंश निकाला हुआ, कोय'-कबी० । वि० दे० (अ० सबूत) जिसमें कुछ सार या तत्व न रह गया हो। दुरुस्त, पूरा, ठीक, साबूत । मुहा०-साफ़ करना-मार डालना, नष्ट सावुन, साबूत-वि० दे० ( अ० सबूत ) या बरबाद करना। चुक्ती या लेन-देन का | संपूर्ण, ठीक, दुरुस्त, अखंडित, अभंग। चुकता करना । क्रि० वि० (दे०) बिलकुल, संज्ञा, पु० (दे०) सबूत, प्रमाण । नितांत. ऐसे कि किसी को कुछ पता न चले, मावन --संज्ञा. प. (म.) रमायनिक क्रिया बिना किसी दोषापवाद, कलंक या अपराध के द्वारा बना हुआ शरीर और वस्त्रादि के, बिना कुछ हानि या कष्ट उठाये। साफ़ करने का एक पदार्थ । "काजर होय न साफल्य-संज्ञा, पु० (सं०) सफलता। संत, सौ मन साबुन खाय बरु' । साफा-संज्ञा, पु० (अ० साफ़) पगड़ी, मुडासा, सवदाना .. संज्ञा, पु० दे० (हि. सगूदाना) (प्रान्ती) मुरेठा, सिर में लपटने का कपड़ा, सागू नामक पेड़ के गूदे से बने नन्हें नन्हें पहिनने के कपड़े सावुन से धोना। दाने, साग दाना। साफ़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (अ० साफ़) अंगौछी, | सामंजस्य --- संज्ञा, पु० (सं०) प्रौचित्य, अनु. रूमाल, छनना, छन्ना । दे०) वह वस्त्र कूलता, उपयुक्तता, समीचीनता, संगति, जिससे भंग छानी जाती या जिसे चिलम के मेल, मिलान ! नीचे लगा कर गाँजा पीते हैं। सामंत-संज्ञा, पु० (सं०) वीर, योद्धा, राजा, साबर-संज्ञा, पु० दे० (सं० शंवर) शिवकृत | सरदार, बड़ा जमादार। यौ०-शूर-सामंत । एक प्रसिद्ध सिद्ध मंत्र, मिट्टी खोदने का एक साम--संज्ञा, पु० (० सामन्) प्राचीन काल हथियार, सम्बर, सबरी । स्त्री० अल्पा.- में यज्ञादि में गाने के सामवेद के मंत्र, सामसाँभर नामक जंगली मृग़ या पशु, उसका वेद, मीठा या मधुर, मृदु-मधुर वाणी, मधुर चर्म (ग्रा०)। " साबर मंत्र-जाल जेहि भाषण, शत्रु को मीठी बातों से निज पक्ष में सिरजा"-रामा० । वि० (दे०) साबरी- मिलाना (नीति०). सामान, असबाब । संज्ञा, साबर मंत्र शास्त्र का, साबर चर्म, साबर पु० दे० (सं० श्याम) श्याम, स्याम. शाम । या साँभर मृग का। संज्ञा, स्त्री. (दे०).-शाम, शामी । “ साम साबस-संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० शाबाश) दाम, अरु दंड, विभेदा"-रामा० । “कियो शाबाश, वाह वाह, बहुत, खूब, साधु । मंत्र अंगद पठवन को साम करन रघुराई'साबिक़-वि० (अ०) प्रथम या पूर्व का, रघु० । “जमुना साम भई तेहि झारा"पहले का, आगे का, भूत पूर्व। यो०- पद०। संज्ञा, स्त्री० (दे०) शाम (फ़ा०) संध्या। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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