SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1737
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org E १७२६ सल्लु सवाल सल्लु-संज्ञा, पु० (दे०) जूता सीने का नुसंधान करना, पता लगाना, ढूँढना खोजना | चमड़ा | सल्लो - संज्ञा, स्त्री० (दे०) भोली-भाली स्त्री, भोदली या मूर्ख श्रौरत । सवाद - संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वाद ) स्वाद, मज़ा, जायका | वि० (दे०) सवादी । सव - संज्ञा, पु० दे० (सं० श) शव, मृतक, सवादिका - वि० दे० (हि० सवाद + इकलास, जल, पानी । प्रत्य०) स्वादिष्ट, स्वाद देने वाला । सवगात संज्ञा, स्त्री० (फ़ा० ) तुहफ़ा, भेंट, सवादिल- वि० दे० ( हि० सत्राद + इलसौगात (दे० ) । प्रत्य० ) स्वादिष्ट | (सं० सवादी - वि० (दे०) स्वाद लेने वाला, स्वाद- प्रेमी । सवत, सवति - संज्ञा, त्रो० दे० सपत्नी ) एक ही व्यक्ति की दो स्त्रियाँ परस्पर सति या पत्नी कही जाती हैं सपत्नी, सौति । " जियत न करब सवति सेवकाई ”-रामा० । सवत्सा - वि० स्त्री० (सं०) बच्चा के सहित, बच्चायुक्त, पु० सवत्स । सवन - संज्ञा, पु० (सं०) बच्चा जनना, प्रसव, यज्ञ, यज्ञ-स्नान, अग्नि, चन्द्रमा । सवर - संज्ञा, पु० (सं०) कोल, भील । सवरी - संज्ञा, त्रो० (सं०) भीलिनी, कोलिनी । " सवरी के श्राश्रम प्रभु श्राये " रामा० । 66 सवर्ण - वि० (सं०) समान वर्ण (रंग) या जाति का समान वर्ण (अक्षर) युक्त, सदृश, तुल्य | संज्ञा, पु० (सं० ) स नामका अक्षर । सरस सवर्ण परहिं नहिं चीन्हे " - रामा० । संज्ञा, स्रो० (सं०) सवर्णता । सवाँग - संज्ञा, पु० दे० ( पं० सु + अंग ) स्वाँग, दूसरे का सा भेष, नक़ल, पर-रूपधारण | संज्ञा, पु० (दला० ) दो की संख्या । सवा -- संज्ञा, खो० दे० (सं० सपाद ) एक पूरी और उसी की चौथाई मिलकर, चतुर्थीशयुक्त पूर्ण ! सवाई -संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सवा + ईप्रत्य० ) मूलधन और उसकी चौथाई व्याज ( ऋण-भेद ) जयपुर के महाराजाओं की उपाधि । वि० (दे०) एक और चौथाई, सवा, सचैया (दे०) । सवाचना स० क्रि० (दे०) जाँचना, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवाब संज्ञा, पु० ( ० ) सुकर्म का फल, पुण्य, नेको, भलाई । " सवाया पंज्ञा, पु० दे० (सं० सपाद ) सवाई, सवा, सवावा (ग्रा० ), सवैया - एक और चौथाई का पहाड़ा । सवार - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) वह व्यक्ति जो घोड़े पर चढ़ा हो, अश्वारोही, श्रश्वारोही सैनिक, जो किसी पर बैठा या चढ़ा हो । वि० - किसी पर चढ़ा या बैठा हुआ, प्रभावित हुश्रा, श्रावेश-युक्त (होना) | क्रि० वि० (दे० ) -- सवेरे शीघ्र | " ऊधो जाहु सवार इहाँ तें वेगि गहरू जनि लावो ' भ्रम गीत । मुहा० - भूत सवार होना - उन्माद या प्रेतावेश होना, क्रोधादि से प्रभावित होना, व्यर्थ बकना । सवारी - संज्ञा, खो० ( फ़ा० ) चढ़ने की क्रिया, चढ़ने या सवार होने की वस्तु, वह व्यक्ति जो सवार हो, जलूस मुहा०( राजा आदि की) सवारी निकलनाराजा का जलूस निकलना । (किसी पर) सवारी गांठना- किसी पर) आतंक या प्रभाव डालना, श्रधीन करना । सवारे, सवारें - क्रि० वि० दे० (हि० सवार) शीघ्र, सवेरे, दिन रहते । 'तुरत चलौ फिर भावैं गोरस बेंचि सवारें । 6.८ " सूबे० । सवाल - संज्ञा, पु० (०) पूछना, जो पूछा जावे, प्रश्न, विश्वारणीय बात, समस्या, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy