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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सर्म शर्मं, सर्म – संज्ञा, पु० दे० ( फा० शर्म ) लज्जा, सरम, शरम (दे० ) । अ० क्रि० (दे०) सर्माना । वि० (दे०) सर्मिन्दा, सर्मीला । सर्राफ -संज्ञा, पु० ( अ० ) सराफ, सोनेचाँदी का व्यापारी | संज्ञा, खो० सर्राफी - सर्राफ का काम या पेशा । सर्राफा - संज्ञा, पु० ( बाज़ार, सराफा (दे० ) । ० ) सराफों का १७२२ सर्व - वि० (सं०) सम्पूर्ण, सब, सारा, समस्त, कुल, सर्वस्व, तमाम | संज्ञा, पु० (सं० ) - पाश शिव, विष्णु । " " सर्व काम - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सब इच्छायें रखने या पूरी करने वाला । सर्वकामेश्वरी ' -स० श० । सर्व काल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नित्य, सदा सर्वदा, सब समयों में, हमेशा, हरदम, सर्व समय । तुम कहँ सर्वकाल कल्याना " - रामा ० सर्वग, सर्वगामी - वि० (सं०) सब जगह जाने वाला, सर्वव्यापी, सब स्थानों में फैलने 66 वाला । सर्वगत–वि० (सं०) सर्वग, सर्वव्यापक, सर्वव्यापी, सब स्थानों में फैलने वाला । सर्वग्रास -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा या सूर्य का पूर्ण ग्रहण, पूराग्रहण, खग्रास । सर्व जनीन - वि० (सं०) सार्वजनिक, सब लोगों से संबंध रखने वाला, सब लोगों का । 61 क्षणम्मया सर्वजनीन मुच्चते " - माघ० । सर्वज्ञ - वि० (सं०) सब कुछ जानने वाला | संज्ञा, स्त्री० (सं०) सर्वज्ञता । स्त्री० सर्वज्ञा । संज्ञा, पु० - ईश्वर, देवता, अर्हन् या बुद्ध, शिव, विष्णु, सर्ववेत्ता, सर्वज्ञानी, सर्वज्ञाता । सर्वज्ञता - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सर्वज्ञ का भाव । सर्वतंत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सर्वशास्त्राविरुद्ध, सर्व शास्त्र-सिद्धान्त । वि० जिसे सब शास्त्र मानते हों। संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सर्वतंत्रता । सर्वभक्षी सर्वतः - अव्य० (सं०) सब प्रकार से, सब ओर या तरफ़ से, चारों ओर । सर्वतोभद्र - वि० (सं०) सब थोरों से, कल्याण या मंगल, जिसके सिर, दादी और मूल सब के बाल मुड़े हों । संज्ञा, पु० (सं० ) -- वह चार कोने का मंदिर जिसके चारों ओर द्वार हों, पूजा के कपड़े पर बना एक कोठेदार मांगलिक चिह्न या यंत्र जिसकी पूजा होती है, एक चित्र काव्य, एक प्रकार की पहेली, जिसमें शब्द के कबंडातरों के भी हों, विष्णु का रथ । सर्वतोभाव - व्य ० (सं०) भलीभाँति अच्छी तरह सब प्रकार से, सर्वतोभावेन । सर्वत्र - - अव्य० (सं०) सब ठौर या जगह, सब कहीं, सर्वतः । पंडिता: नहिं सर्वत्र चन्दनम् न वने वने : स्फुट० । सर्वथा -- व्य० (सं०) सब तरह, सब प्रकार से, सब, बिलकुल । सर्वदमन - संज्ञा, पु० ० (सं०) राजा दुष्यंत का पुत्र | वि० यौ० (सं०) सब का दमन करने वाला । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वदर्शक, सर्वदर्शी -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० सर्वदर्शिन् ) सब कुछ देखने वाला, परमेश्वर । स्त्री० सर्वदर्शिणी, सर्वद्रष्ठा । सर्वदा - - अव्य० (सं०) सदैव, सदा, नित्य, हमेशा, संतत, नितांत, निरंतर, सतत । सर्वनाम - संज्ञा, पु० (सं० सर्वनामन् ) संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाला शब्द( व्याक० ) । सर्वनाश संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सर्वध्वंस, पूरी पूरी बरबादी, सत्यानाश, पूर्ण विनाश । सर्वप्रिय - वि० सौ० (सं०) सब का प्रिय, सब को प्यारा | संज्ञा, स्त्री० – सर्वप्रियता । सर्वभक्षक – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सब कुछ खाने वाला, धर्म्मच्युत, श्रधर्मी । सर्वभक्षी - संज्ञा, पु० ( सं० सर्वभक्षिन् ) सब कुछ खाने वाला । स्त्री० सर्व भक्षिणी । संज्ञा, पु० (सं०) अग्नि, भाग । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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