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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरकश १७१४ सरदी सरकश-वि० (फ़ा०) उइंड, उद्धत, घमंडी, सरघर -संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० शरगृह ) सिर उठाने वाला, विरोधी, शंक, (संज्ञा, तरकश, भाथा. तू, तूणीर। नो०-सरकशी। संज्ञा, पु० (अ० सरकस) सरजना, सिरजना-स० कि० दे० ( सं० तमाशा। सृजन ) रचना, बनाना, सृष्टि रचना । सरकशी-संज्ञा, स्त्री. (फ़ा.) उइंडता, सरघा ---संज्ञा, स्त्री० सं०) मधुमक्खी, शहद उद्धता, घमंड, विरोध में सिर उठाना । की मक्खी "सरकशी अाखिर फरोमाया' को देती है सरजा--- संज्ञा, पु० (३०) सिंह, शेर, सरदार, शिकस्त".-स्फु०। शिवा जी की उपाधि । 'शाहतनय सरजा सरकाना-स. क्रि० (हि. सरकना) खिस सिवराज"---भषः । काना, टालना, काम चलाना, निर्वाह करना, | सरजीव-वि० दे० (सं० सजीव) सजीव. सरकावना (दे०)। प्रे० रूप सरकवाना । जीता-जागता, जिंदा । " सरजीव काटै सरकार-संज्ञा, सी० (फा०) स्वामी, प्रभु, निरजीव पूजें अंतकाल को भारी"-कवी मालिक,रियासत, राज्यसंस्था, शापन-सत्ता सरजीवन-वि० दे० (सं० संजीवन) जिलानेवि०---सरकारी। " तेरी सरकार में हो वाला, हराभरा, उपजाऊ सजीवन (दे०) जाते हैं सब उज्र क़बूल"-हाली।। सरजोर-वि० (फा) बलवान, ज़बरदस्त । सरकारी-वि० (फा०) सरकार या स्वामी संज्ञा, स्त्री०- सरजोरी । सम्बन्धी, मालिक का, राज्य का, राजकीय । सरणी-संज्ञा, श्री० (सं०) रास्ता, राह, यौ०-सरकारी कागज-- राज्य के दफ्तर मार्ग, पंथ, रीति, ढर्रा, ढंग, लकीर । का काग़ज़, प्रोमिसरी नोट (0)। सरद-- वि० दे० (फा० सद) सर्द, शीतल । सरखत--संज्ञा, पु. (फ़ा०) दिये हुये या वि० (दे०) ठंढा । संझा, स्त्री० दे० (सं० शरत) चुकाये हुए धन की रसीद या व्यौरा, एक ऋतु जो क्वार-कातिक में होती है । वि० सारदो। "जानि सरद ऋतु खंजन आज्ञापत्र, परवाना, मकान धादि के किराये आये"-रामा० । पर देने की शर्तों का काग़ज,सरखत (दे०)। सरदई - वि० दे० (का० सरदः) सरदे के रंग सरग-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वर्ग, सर्ग) का, हरा पीला मिला रंग, हरित-पात । स्वर्ग, वैकुण्ठ, देव-लोक, आकाश, सर्ग वि०---(दे०) शरद (सरद) सम्बंधिनी। (सं०) अध्याय, अंक । लो०- "सरग से सरदर-क्रि० वि० (फ़ा० सर-+ दर-भाव) गिरा तो खजूर में अटका"। सब एक साथ मिला कर, एक सिरे से, सरग़ना-संज्ञा, पु. (फ़ा०) मुखिया, सरदार, औसत से। (अगुमा), सरगना (दे०)। सरदरद-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( फ़ा०-सिर सरगम-संज्ञा, पु. ( हि० स, रे, ग, मादि ) +दद) सिर की पीड़ा। गाने में ७ स्वरों के चढ़ाव-उतार का क्रम, | सरदा--- संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० सरदः ) एक (संगी०)स्वर-ग्राम (सं०), स, रे, ग, म, प, प्रकार का बहत बढ़िया ख़रबूजा, तरबूज । ध, नी, सा। | सरदार-संज्ञा, पु० (फ़ा०) मुखिया, अफसर, सरगर्म-वि० (फा० ) उमंग से भरा, अमीर, शासक, नायक, रईस, अगुवा । जोशीला, उत्साही, आवेश-पूर्ण । संज्ञा, सरदारी-संज्ञा, खो० (फ़ा०) सरदार का स्त्री०-सरगर्मी। पद या भाव। सरगुन-वि० दे० (सं० सगुण) गुण-सहित, सरदी-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० सर्दी) ठंढक, "सरगुन-निरगुन नहिं कछु भेदा"-रामा०। शीतता, सर्दी, जुकाम, सर्दी। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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