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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DEMONTROUB sannam a ASHNEERRORNVIRAIPREMIRAMINATIRNDramARNER समानार्थ, समानार्थक २७०६ समासोक्ति समानार्थ, समानार्थक-संज्ञा, पु० (सं०) समालोचक-संज्ञा, पु० (सं०) समालोचना वे शब्द जिनका अर्थ एक सा हो, पर्याय- करने वाला। वाची शब्द। समालोचन--संज्ञा, पु. (सं०) पालोचना, समानिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) रगण, जगण समालोचन, विचार, विवेचन. देखभाल । और एक गुरु वर्ण का एक वणिक छंद, वि० --समालोचनीय, समालोचित । समालोचना -- संज्ञा स्त्री० (सं०) पालोचना, समाना (पि०) । भलीभाँति देख-भाल करना, जाँचना, गुणसमापक---संज्ञा, पु. (सं०) पूर्ण या समाप्त दोष-देखना, गुण-दोष-विवेचना से पूर्ण करने वाला पूर्णक । वि. (सं०) मापक लेख या कथन । (नापने वाले ) के साथ। समालोच्य-वि० (सं०) समालोचना करने समापन--संज्ञा, पु. (सं०) समाप्त या पूरा योग्य, समालोचनीय : करना, इति करना, वध, अंत करना, समाव-संज्ञा, पु० दे० । हि० समाना) मार डालना । वि० समाप्य, समापनीय, समावेश थौर स्थान । समापित। समावर्तन -संज्ञा, पु० (सं०) लौट थाना, समापवर्त -संज्ञा, पु. (सं०) सब प्रकार लौटना, वापस पाना, वैदिक काल का एक बाँटने वाला। यौ०- लधुनम और महत्तम संस्कार जी ब्रह्मचारी के निश्चित समय तक समापवत (गणि.)। गुरुकुल में विद्याध्ययन कर स्नातक हो पाने समापवर्तन ----संज्ञा, पु० (सं०) सम्यक विभा- पर व्याह के प्रथम होता था। वि.-समाजन या अपवर्तन । वि०-समापवर्तनीय । वर्तित, समावर्तक, समावर्तनीय । समापिका --संज्ञा, स्त्री० (सं०) वह क्रिया समाविष्ट -- वि० सं०) व्याप्त, समाया हुआ, जिससे किसी कार्य की पूर्णता या समाप्ति व्यापक, जिपका समावेश हुआ हो, प्रविष्ट । समझी जावे (व्याक०)। समावेश---संज्ञा, पु० (सं०) प्रवेश, एक वस्तु समापित- वि० दे० ( सं० समाप्त ) समाप्त, का दूसरी के भीतर होना, मेल, मनोनिवेश, ख़तम, पूरा किया हुअा, पूर्ण । एक स्थान पर साथ रहना, अंतर्गत होना। समान वि०(सं०) पूर्ण, जो पूरा हो गया हो। समास--संज्ञा,पु० (सं०)संग्रह, संक्षेप, संयोग, समानि--संज्ञा, स्त्री० (सं०) पूर्ति, पूरा या समर्थन, मेल, सम्मिलन, मिश्रण, दो या तमाम होने का भाव, ख़तम होना, इति, अधिक पदों के अपनी अपनी विभक्तियों को अंत, इति श्री। छोड़ कर नियमानुसार मिल जाने और समायोग --- संज्ञा, पु० (सं०) संयोग, मेल, उनसे एक पद बन जाने क्रिया को समास लोगों का एकत्रित होना। कहते हैं (व्याक०)। समास के प्रायः मुख्य समारंभ संज्ञा, पु. ( सं० ) भली भाँति चार भेद है--अव्ययीभाव, तत्पुरुष, द्वन्द्व, प्रारंभ या शुरू होना, समारोह । बहुव्रीहि, तत्पुरुष का भेद कर्मधारय, समारोह---संज्ञा, पु. (सं०) वृहदयोजना, जिसका भेद द्विगु है फिर इनके भी कई भेद धूम-धाम, तड़क-भड़क. बड़ी सजधज का | हैं । " कपि सब चरित समास बखाने " कोई कार्य या उत्सव । -रामा० । वि० --समस्त, सामासिक । समाली- संज्ञा, स्त्री० (दे०) फूलों का गुच्छा, समासोक्तिः- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक पुष्प-स्तवक । अर्थालंकाः, जहाँ प्रस्तुत से अप्रस्तुत वस्तु समालू, सम्हालू-संज्ञा, पु० (दे०) सँभालू का ज्ञान समान विशेषण और समान कार्य नाम का पौधा, एक प्रकार का धान । के द्वारा हो (अ० पी०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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