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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सपक्ष सन्नद्ध-वि० (सं०) तैयार, उद्यत, कटिबद्ध, या जुटना, कफ, बात, पित्त तीनों का एक बँधा, लगा, और जुड़ा हुया । संज्ञा, स्त्री. ही साथ बिगड़ जाना, त्रिदोष (वैद्य०), (सं०) सन्नद्धता। सरसाम (फा०)। " उपजै सन्निपात दुखसन्नाटा---संज्ञा, पु० दे० (सं० शून्य ) नीर- दाई"- रामा० "सन्निपात जल्पसि दुर्वादा" वता, निस्तब्धता, निःशब्दता, निर्जनता, रामा०। यौ०–सन्निशत-ज्वर । एकांतता, सून्यता, निरालापन, स्तब्धता । सन्निविष्ट - वि० (सं०) एक ही साथ जमा मुहा०-सन्नाटे में आना--स्तब्ध रह या बैठा हुआ, धरा या रखा हुआ, प्रतिष्ठित, जाना और कुछ कहते-सुनते न बनना, चुप स्थापित, समीपवर्ती, पास या निकट का रह जाना। एक दम ख़ामोशी, चुप्पा, उदा. पैठा हुआ। सीनता, चहल-पहल का अभाव, गुलज़ार सन्निवेश--संज्ञा, पु. (सं०) स्थित होना, न रहना । मुहा-पन्नाटा स्वीं बना या __रखने, बैरने, बैठाने आदि की क्रिया, जमना, मारना-एक बारगी मौन हो जाना। उदापी, जड़ना, लगाना, समाना, रखना. धरना, उन्मनता । सन्नाटा छा जाना---गुलज़ार निवास, स्थान, घर, इकट्ठा होना, जुटना, न रहना, उदासी फैल जाना, रौनक मिट समाज, समूह, बनावट, गढ़न या गठन । जाना, चहल पहल न रह जाना सन्नाटे वि०-संनिवेशित, संनिवेशनीय । संज्ञा, में-अकेले, जन-शून्यता में, वेग से।। सन्निवेशन। वि० - स्तब्ध, नीरव, निर्जन, शून्य । संज्ञा, | सन्निहित--वि० (सं०) साथ या पास रखा पु० (अनु० सन २) सवेग वायु-प्रवाह का । हुआ, समीपस्थ, निकटस्थ, ठहराया या शब्द, हवा को चीर कर तेज़ी से निकल । टिकाया हुआ, अंतर्गत । 'नित्यं सन्निहितो जाने का शब्द । मुहा०-सन्नाटे से जाना- हरिः"--भा० द० । वेग से चलना। सन्माग--- संज्ञा, पु० (सं०) सत्पथ, श्रेष्ठ मार्ग। सन्नाह संज्ञा, पु० (सं०) कवच. जिरह बख़्तर, विलो०-कुमार्ग । वि०-सन्मार्गी। लोहे का अँगरखा, सनाह (दे०) सन्मान-संज्ञा, पु० (सं०) सम्मान, श्रादरमन्निकट---श्रव्य, (सं०) समीप, पाम, सत्कार । स० क्रि० (दे०) सन्मानना। निकट, अति समीप । संज्ञा, स्त्री. (सं.) वि० सम्माननीय, सन्मानित । सन्निकटता। सन्मुख-अव्य० (सं०) सम्मुख, सामने । सन्त्रिकर्ष--संज्ञा, पु. (सं०) नाता, लगाव, सन्यास-संज्ञा, पु० सं० संन्यास) भव-जाल रिश्ता, संबंध, समीपता, निकटता। वि० के छोड़ने या संसार से अलग होने की सनिकृष्ट। अवस्था, त्याग, वैराग्य, यति-धर्म, चौथा सन्निधान-संज्ञा, पु० (सं०) सामीप्य, समी- श्राश्रम । यौ० ---सन्यास-धर्म । “जैसे विन पता, निकटता, स्थापित करना। विराग सन्याला"-रामा० ।। सन्निधि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) संहिता, निक- सन्यासी--संज्ञा, पु० (सं० संन्यासिन् ) त्यागी, टता, समीपता, पड़ोस । “कृत्स्ना च भूर्भ- विरागी, जिसने सन्यास ले लिया हो, वति सन्निधि रतापूर्णा-भ० श० । संज्ञा, | चौथे पाश्रम वाला । स्त्री०-सन्यासिनी, पु० (सं०) सान्निध्य । सन्यासिन । “मूड़ मुड़ाय होहिं सन्यासी" सन्निपात-~संज्ञा, पु. (सं०) एक ही साथ -रामा०। गिरना या पड़ना, संयोग, समाहार, मिलाप, सपक्ष-वि० (सं०) तरफ़दार, जो अपने पक्ष मेल, एकत्र या इकट्ठा होना, एक में जुड़ना, में हो, पोषक, समर्थक, सपच्छ (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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