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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगार-मणि अँगुसी अंगार-मणि-संज्ञा पु० (सं० ) लालमणि, अँगुरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) या प्रांगुरीमूंगा। उँगली, अँगुली “अँगुरी छैल छुवाय ।" अंगार-पल्ली-संज्ञा स्त्री. (सं० ) गुंजा, - बिहारी, "अन्तर अँगुरी चार को, साँचधुंघची, चिरमिटी। झूठ में होय ।" अंगुरीन-(बहुवचन. अंगारा-संज्ञा पु. ( उ० ) देखो-अंगार। ब्रजभाषा)। अंगारिणी-संज्ञा स्त्री. (सं० ) अँगीठी अंगुल--संज्ञा, पु. (सं० ) पाठ जव की आतिशदान, सूर्यास्त की अरुणिमा-पूर्ण इतनी लम्बाई, ग्रास या बारहवाँ भाग ।दिशा। आँगुर-(दे० ) एक गिरह का तीसरा अंगारी-संज्ञा. स्त्री० (सं०) चिनगारी, बाटी भाग। अंगाकड़ी, ( सं० अंगारिका ) ईख के सिरे अँगलित्रा-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गोह के की पत्ती, गँडेरी, या गन्ने के टुकड़े। चमड़े का दस्ताना, जिसे बाण चलाते समय अंगिका - संज्ञा, स्त्री० (सं०) अँगिया, चोली, पहिनते थे। कंचकी, कुरती जो स्त्रियाँ पहिनती हैं। अंगतिपर्व-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) अँगुअँगिया-संज्ञा, स्त्री० ( तद्० दे० ) चोली, लियों की पोर, उँगली की गाँठों के बीच कंचुकी। का हिस्सा। अंगिरस--संज्ञा. पु. (सं०) दस प्रजापतियों अँगुली-संज्ञा. स्त्री० (सं० ) उँगली, हाथी में से एक प्राचीन ऋषि, वृहस्पति, साठ __ की सूंड का अग्रिम भाग । मु०-अँगुली संवत्सरों में से छठवाँ, कटीला गोंद का उठाना-दोष निकालना, लांछित करना। वृत्त, कतीरा । अंगिरा-संज्ञा, पु० (सं० । अंगुलीय-संज्ञा. स्त्री० (सं० ) अँगूठीअंगिरस ) तारा, ब्रह्मा के मानस पुत्र, जो | अंगुलीयक-- मुद्रिका, मुंदरी।। धर्मशास्त्र प्रवर्तक ऋषियों में से हैं-'अंगिरा अंगुल्यादेश- संज्ञा. पु० यौ० (सं.) उँगली संहिता' इनका ग्रंथ है, ज्योतिष के प्राचार्य । से अपना भाव प्रगट करना, इशारा, संकेत । थे, देवगुरु वृहस्पति इनके पुत्र हैं। अंगुल्यानिर्देश-संज्ञा, पु. यौ० (सं०-- अंगी-संज्ञा, पु. ( सं० ) शरीर वाला, देह- अंगुली--प्रानिर्देश ) लांछन, कलंक, बदधारी, अवयवी, उपकार्य, समष्टि, अंशी, नामी । मुख्य, चौदह विद्यायें, नाटक का प्रधान अंगुश्तनुमाई- संज्ञा, स्त्री. (फा०, उ० ) नायक, या मुख्य रस, मुखिया। दोषारोपण, कलंक, बदनामी [अंगुश्त---- अंगीकार-संज्ञा, पु०(सं०) स्वीकार, ग्रहण, अँगुली-संज्ञा, अँगुली, अंगुष्ठ सं०]। मंजूर, अंगेजना, सम्मति, मानना, प्रतिज्ञा। अंगुश्तरी--संज्ञा, स्त्री० ( फा०, उ०) अँगूठी अंगीकृत-संज्ञा, पु० (सं०) स्वीकृत, मंजूर, मुद्रिका, मुंदरी। ग्रहण किया हुआ, अपनाया हुआ। अंगुश्नाना-- संज्ञा, पु. ( फा०. उ० ) सीने अँगीठा-संज्ञा, पु० (सं० ---अग्नि-~आग+ के समय दर्जियों के उँगली में पहिनने की स्था-ठहरना ) बड़ी अँगीठी, अग्नि-पात्र । लोहे या पीतल की टोपी, पारसी, अँगूठे अँगीठी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) अँगीठा का | पर पहिनने की अँगूठी । अल्प वा०, गोरसी। | अंगुष्ठ- संज्ञा, पु० (सं० ) अँगूठा, हाथ या अंगुर*-संज्ञा, पु. ( दे० या प्रान्तीय )। पैर की मोटी अँगुली। अंगुल, श्राँगुर (दे० )--" बलि पै जाँचत अँगुसी-संज्ञा, स्त्री० (सं०---अंकुश), अँकुसी ही भये, बावन आँगुर गात ।"-रहीम। (दे. तद्) हल का फाल, सोनारों की For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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