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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सगुण १६८५ सचाना अपनपन या प्रात्मीयता, सगा होने का कुटुंब की स्त्री । " असपिंडा तु या मातुरसभावा गोत्रा तु या पितुः"-मनु० । मगुगा----संज्ञा, पु० सं०) गुण-सहित. सगौती-संज्ञा, स्त्री० (दे०) मांस, मांस का साकार ब्रह्म, सत्व, रज और तम तीनों बचा भोजन । गुणों से युक्त ब्रह्म का रूप, वह संप्रदाय । सधन ---वि० (सं०) घना, गंजान, अबिरल, जिसमें परमेश्वर को पगुण मान कर उसके उभ, ठोस, निबिड़। संज्ञा, स्त्री०-सघनता। अवतारों की पूजा होती है, सगुन (दे०)। वि० (सं०) घन या बादल के साथ । “सधन"निर्गुण ब्रह्म सगुण भये जैसे "--रामा। सवन था गगन"-रस । यौ०-- सगुणा-वाद-ईश्वर के सगुण-साकार सच वि० दे० ( सं० सत्य ) सत्य, सही, मानने का सिद्धान्त । यौ०-सगुणोपासना ! ठीक, दुरस्त, वास्तविक, यथार्थ, तथ्य, सच्च सगुण ब्रह्म की भक्ति । (दे०)। सगुन --- संज्ञा, पु० दे० (सं० शकुन ) किमी सचना* --स० क्रि० दे० (सं० संचयन ) कार्य के होने की सूचना-सूचक चिह्न, . जोड़ना, एकत्र या संचय करना. इकट्ठा शकुन । विलो०- प्रसगुन) ! संज्ञा, पु० करना, पूर्ण या पूरा करना । अ० क्रि० स० दे० (सं. सगुण ) ईश्वर का सगुण रूप, । (दे०) सजना, रचना। गुण-सहित । सगुन उपासक मुक्ति न लेही" सचमुच-- अव्य० दे० (हि. सच--सुच-~~-रामा० । अनु० ) वस्तुतः, वास्तव में, यथार्थतः, सगुनाना--.स. कि. द. ( सं० शकुन - ठीक ठीक, श्रवश्य, निश्चय, मच्च-पच्च श्राना-प्रत्य०) शकुन बताना, शकुन (ग्रा०)। सी० --- सच मुची। देखना या निकालना। सचरना*--- अ० कि० दे० (सं. संचरण ) सगुनिया --- संज्ञा, पु० दे० (सं० शकुन + संचलित रा संचरित होना, फैलना, अति इया---प्रत्य० ) शकुन विचारने और बताने प्रचलित होना, संचार या प्रवेश करना । वाला । "बड़े सगुनिया महुबे वाले कारज " सब विधि अगम अगाध अगोचर कोटिक सिद्धी लेहिं विचारि--प्रा. खं। विधि मन सचरै” विन० ख० रूप--- मगुनौली-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सगुन -- मचारना। अौती--- प्रत्य० ) शकुन विचारने की क्रिया, खचराचर---संज्ञा, पु० यौ० (२०) संसार के मगनउनी 'ग्रा०)। मुहा-सगुनौती चलने वाले और न चलने वाले, स्थावरउटाना-शकुन देखना या निकालना। जगम । "यापि रह्यो सचराचर माही"-- सगोत, सगाती--पंज्ञा, पु० दे० (सं० -~-वासु सगोत्र ) समगोत्री, एक गोत्र के लोग, सचाई --संक्षा, स्त्री० दे० (सं० सत्य, प्रा. जगोत्र, भाई-बंधु, भैयाचार, भाई-विरा- सच + बाई ---प्रत्य०) सच्चापन, सत्यता, यथार्थता, वास्तविकता। सगोत्र-संज्ञा, पु० (सं०) एक गोत्र के लोग, सचान संज्ञा, पु० दे० (सं० संचान - श्येन) सजातीय, समगोत्रीय, एक ही कुल या श्येन पक्षी, बाज पत्नी। “मन-मतंग गैयर वंश के लोग। बी.-.-सगोत्रा। हने, मनपा भई सचान "--कवो० । सगोत्रा--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सजातीया, सचाना--- १२० कि. (दे०) सत्य या सच अपने गोत्र की, अपने कुल, वंश या करना, सिन्द्र करना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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