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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलकतरा १५८ अलगनी HINDISTRIYARAMMERARIDHIWumawwarenaaman "प्रथमहिं अलक तिलक लेव साजि" .-- | लक्ष्य-वि० (सं० ) अदृश्य, जो न देख विद्या। __ पड़े, ग़ायब, जिसका लक्षण न कहा जा अलकतरा-संज्ञा, पु. ( अ० ) पत्थर के सके, जो लक्ष के योग्य न हो। कोयले को आग पर गला कर निकाला अलख-वि० (सं० अलक्ष्य ) जो दिखाई हुआ एक काले रंग का गाढा द्रव पदार्थ, न पड़े, अदृश्य, अगोचर, अप्रत्यक्ष, इंद्रियाडामर ( प्रान्ती० ) धूना, कोलतार। तीत, न देखा हुया, अदृष्ट, गुप्त, लुप्त, अलक लडैता - वि० ० ( हि० ईश्वर । अलक = बाल-+-लाड = दुलार ) दुलारा। मुहा०-अलख जगाना-पुकार कर स्त्री. अलक लडैनी। भगवान का स्मरण करना या कराना, "अब मेरे अलक लडैतै लालन कै हैं करत परमात्मा के नाम पर भिक्षा माँगना । सँकोच''--भु। " लखि व्रज-भूप-रूप अलख अरूप ब्रह्म अलक सलोरा--वि० दे० ( सं० ऊ. श० । अलक -- सलोना-हि० ) लाडला, दुलारा। अलखधारी-संज्ञा, पु० (दे. यो०) स्त्री० अलक सलोरी। अलम्ब अलख पुकारते हुए भिक्षा माँगने अलका-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) कुबेर की वाले एक प्रकार के साधू । पुरी, पाठ और दस वर्ष के बीच की लड़की। अलखानामी-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० अलकापति- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कुबेर, अलक्ष नाम ) अलखोपासक साधु विशेष, अलकेश, भालकेश्वर। जो अलख कहकर भिक्षा माँगते हैं । अलकाबलि-संज्ञा, स्त्री० औ० (सं० ) अलखित—वि० दे० (सं० अलक्षित) केशों का समूह, बालों का गुच्छा, लटों अप्रगट, गुप्त, अज्ञात, अदृष्ट, न देखा हुआ, की राशि। स्त्री० अलखिता। अलकेश-अलकेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० अलखनीय-वि० ( दे. ) जो लखने या (सं० ) कुबेर, धन-पति । देखने के योग्य न हो, जो देखने या अलक्त-अलक्तक-संज्ञा, पु० (सं०) लाख, विचारने या पढ़ने के अयोग्य हो।। चपड़ा, लाह का बना हुया एक प्रकार का अलग--वि० दे० (सं० अलग्न ) पृथक, रंग, जिसे स्त्रियाँ पैर में लगाती हैं, महावर, विलग, जुदा, अलाहिदा, न्यारा, भिन्न. लाक्षारस । अलक्ष-वि० (सं० ) जो लन या लाख के बेलाग, दूर, परे। बराबर न हो, जिसका लक्ष्य न किया गया | मुहा०-प्रालगकरना--- दूर करना, हटाना, हो, न देखा हुआ, अलच्छ-(दे० )। छुड़ाना, बरखास्त करना, बेलाग, बना अलक्षण-संज्ञा, पु. ( सं० ) बुरे लहण, हुया, रक्षित करना। कुलक्षण, अरे चिन्ह, रत्तच्चन (दे०)। अलग हाना-हिस्सा बाँट करके पृथक अलक्षित--- वि० (सं० ) अप्रगट, अज्ञात, हो जाना। अदृश्य, गायव, न देखा हुअा, अविचारित। अलगनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बालग्न) स्त्री० अलक्षिता-अदृश्या । घर में कपड़ों के टाँगने या लटकाने के (दे० ) अलच्छिता। लिये बाँधी हुई रस्सी या आड़ा टँगा हुआ अलक्षणी-- वि० ( सं० ) बुरे लक्षणों- बाँस, डारा। वाला, कुलक्षणी। | अरगनी, (दे०, प्रान्तो०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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