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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघिद १६७८ संसर्ग संविद-वि० (सं०) अनुभव, ज्ञान, बोध, (ऋणादि ) चुकता या अदा करना: वि. समझ, बुद्धि, चेतन, विचार, चेतना-युक्त । । (सं०) संशोधनीय, संशोधित, संशुद्ध, संविधान-संज्ञा, पु० (सं०) प्रबंध, रीति, संशोध्य। रचना, सुव्यवस्था । संशोधित-वि० ( सं०) स्वच्छ या शुद्ध संवेद-संज्ञा, पु. ( सं० ) अनुभव, ज्ञान, । किया हुश्रा, सुधारा हुआ, निर्दोष । संज्ञा, बोध, समझ, वेदना। पु. (सं०)-संशोधक। संवेदन-संज्ञा, पु. (सं०) अनुभव करना, संश्रय-संज्ञा, पु. (सं०) संबंध, संयोग, जताना, सुखदुःख आदि की प्रतीति करना, मेल, लगाव, शरण, आश्रय, सहारा, प्रगट करना वि०-संवेदनीय संवेदित, अवलंब, घर, गृह, मकान ।। संवेद्य । | संश्रया--संज्ञा, पु० (सं०) सहारा या पाश्रय लेना, अवलंब या शरण लेना। वि०संवेदना-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सुख-दुःखादि । संश्रयणीय, संश्रयी, संश्रित । की प्रतीति या अनुभूति, समवेदना (दे०)। संशिल्य-वि० (सं०) श्रालिगित, परिर भित, संवेद्य-वि० (सं०) प्रतीति या अनुभव सम्मिलित, मिश्रित, मिला हृया, संयुक्त, करने योग्य, जताने या बताने के योग्य, । कारकादि-विभक्तियों की संज्ञा शब्दों से प्रकटनीय । मिली हुई अवस्था । संशय -- संज्ञा, पु. (सं०) आशंका, संदेह, संश्लेष-संज्ञा, पु. ( सं० ) श्रालिंगन, शंका, डर, भय, शक, संदेहालंकार, परिरंभण, मिलाप, मिलन. मिश्रण। ( काव्य० ) । "संशय साँप गरेउ माहिं संश्लेषण-संज्ञा, पु० (सं०) एक में मिलाना, ताता ---रामा० । भनिश्चयात्मक ज्ञान, | सटाना, टाँगना, अटकाना ! वि० --संश्लेषसंसय, संसै (दे०)। णीय, संश्लेषित, संश्लेषक, संश्लिष्ट। संशयात्मक-वि० यौ० (सं.) जिपसे संदेह संस-संसइ-संज्ञा, पु० दे० (सं० संशय ) या शक हो, संदिग्ध, संदेह-युक्त। संशय, आशंका, सन्देह, शक, संसे (ग्रा०)। संशयात्मा-संज्ञा, पु० यौ० सं० संशयात्मन् ) “संसह सोक मोह बप अहऊ"---रामा०। अविश्वासी, संदेही । “संशयात्मा विन- संसक्त-वि० (सं०) संयुक्त, संबद्ध, श्रासक्त, ध्यति"---भ० गी० । जो किसी बात पर लिप्त, सहित । विश्वास न करे। संसय-संज्ञा, पु० दे० (सं० संशय ) संशय, संशयी-वि० ( सं० संशयिन् ) संशय या सन्देह । " कछु संसय जिय फिरती बारा" संदेह करने वाला, शक्की। -रामा० । संशयोपमा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) उपमा- संसरग-वि० दे० (सं० संसर्ग) उपजाऊ, लंकार का एक भेद जहाँ उपमेय की कई उर्बर, संसर्ग, सम्बन्ध। . उपमानों के साथ समानता संदेह के रूप में संसरण---संज्ञा, पु० (सं०) चलना, गमन कड़ी जावे ( काव्य०)। करना, जगत, संसार, मार्ग, पथ, सड़क, संशोधक-संज्ञा, पु० (सं०) संशोधन करने राह । वि०-संसरणीय, संसरित, या सुधारने वाला, ठीक करने वाला, बुरी संस्कृत। दशा से अच्छी में लाने वाला। संसर्ग--- संज्ञा, पु. (सं०) सम्पर्क, लगाव, संशोधन--संज्ञा, पु० (सं०) साफ़ या शुद्ध संबंध, संग, साथ, मेल-मिलाप, स्त्री-पुरुष करना, सुधारना, दुरुस्त या ठीक करना, का सहवास या प्रसंग । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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