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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शोधक १६५३ शोषण परीक्षा, जाँच, अन्वेषण, खोज । " मंदिर शोभांजन - संज्ञा, पु० (सं०) सहिजन वृत्त । शोभा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) कांति, आभा, वर्ण, सुन्दरता, छवि, छटा, दीप्ति, रंग, सजावट, २० वर्णों का एक वर्णिक छंद या वृत्त (पिं०) सोभा (दे० ) । " शोभासींव सुभग दोज बीरा " - रामा० । शोभायमान - वि० (सं०) छवियुक्त, सुन्दर, सोहता हुआ, सुशोभित । शोभित - वि० (सं०) सजता हुआ. सुन्दर, सजीला, अच्छा या मंजुल लगता हुआ । शोभित भये मराल ज्यों, शंभुसहित कैलास १ --राम० । 1 #6 शोर - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) कोलाहल, धूम, गुलगपाड़ा, ख्याति । यौ० – शोर-गुल । बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का ।" शोरवा - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) उबली वस्तु का रसा जूस (अं०) चूप (सं०) उबाली वस्तु का पानी, जूस (दे० ) । शोरा- संज्ञा, पु० ( फा० शोर ) मिट्टी का वार, सारा (दे० ) । - रामा० । | मंदिर प्रति कर शोधा " शोधक - संज्ञा, पु० (सं० ) शोधने वाला, सुधारक, खोजने वाला, अन्वेषक, गवेषक । शोधन- संज्ञा, पु० ( सं० ) साफ़ या शुद्ध करना, सुधारना, शुद्ध, दुरुस्त या ठीक करना, संस्कार करना, जाँच, छान-बीन विरेचन, दस्तों से उदर शुद्ध करना, खोजना या ढूँढना, श्रन्वेषण, ऋण चुकाना, प्रायश्चित्त, धातुओं का संस्कार करना । वि० - शोधित, शोधनीय, शोध्य । मुहा०वैर-शोधन - शत्रुता का बदला लेना । गोधना- स० क्रि० दे० (सं० शोधन ) साफ़ या शुद्ध करना, सुधारना, ठीक करना, धौषधार्थ धातुथों का संस्कार करना, खोजना, ढूँढना, सोचना (दे० ) । " श्रहा दुष्ट ताहि श्रतिशय शोधा" - रामा० । शोधनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बुहारी, बढ़नी । शांधवाना - स० क्रि० दे० ( हि० शोधना प्रे० रूप ) शुद्ध करना, ढुंढवाना, खोजवाना -शोधाना शाधावना । शोधैया - सज्ञा, पु० ( हि० शोधना + ऐयाप्रत्य० ) शोधने वाला | शोदा -संज्ञा, पु० (०) इन्द्रजाल, जादू | शोभ--- संज्ञा, त्रो० (सं० शोभा ) शोभा, सुन्दरता । " चढ़ों जो निज मंदिर शोभ बदी तरुनी अवलोकन को रघुनंदन 91 स० रूप- राम० । शोभन - वि० सं०) विमान शोभा-युक्त, सुन्दर मनोहर, सुहावना, उत्तम श्रेष्ठ, शुभ । वि० - शोभनीय शोभित । संज्ञा, पु० इष्टियोग, शिव, अग्नि, २४ मात्राओं का एक मात्रिक छंद, सिंहिका (पिं०), सौंदर्य, भूषण. कल्याण. मंगल, दीप्ति, सुषमा । शोभन कार्य ठयो "रामा० ! शोभना -संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सुन्दरी स्त्री, हरिद्रा, हलदी । * - स० क्रि० दे० (सं० शोभत ) मनोरम लगना, शोभित होना, सोभना, सोहना (दे०) । " 6E Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शोला -- संज्ञा, पु० ( प्र०) धाग की लपट या ज्वाला | संज्ञा, पु० (सं०) वृक्ष विशेष जिसकी छाल से कपड़ा बनाया जाता है । शोशा-संज्ञा, पु० ( फा० ) निकली नोक, विचित्र बात | मुहार - शोशा छोड़नाअनूठी बात कहना | शोप - संज्ञा, पु० (सं०) सूखना, खुश्क या रूखा होना, देह का घुलना या क्षीण होना, थमा रोग का एक भेद (वैद्य० ). क्षयी, बच्चों का सूखा रोग, सुखंडी ( प्रान्ती०) । शोषक संज्ञा, पु० (सं०) सोखने या सुखाने वाला, क्षीण करने वाला, रस, जलादि का खींचने वाला । त्रो० - शांधिका । शशि शोषक पोषक समुझि, जग यशअपयश दीन्ह 'रामा० । शोषण- संज्ञा, पु० (सं०) सोखना सुचाना, खुश्क या सूखा करना क्षीण करना, घुलाना, नाश करना, कामदेव का एक बाण | वि०शोषी, शोषित, शोषणीय । 66 For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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