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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रृंगारना शेरदहां संयोग और वियोग या विप्रलंभ, इष्टदेव के चार वर्गों में से प्रथम श्रेष्ठ वर्ग, बुजर्ग, को पति और निज को पत्री मान कर की । बड़ा, मुसलमान-धर्माचार्य। स्त्री०-शेरवानी। गई माधुर्य भाव की भक्ति सिायों का वस्त्रा- शोष --- संज्ञा, पु. द० सं० शेष ) बाकी, भरण से स्वदेह सजाना, सजावट, बनाव- समाप्त, सेप(दे०), एक नाग-राज. शेष जी। चुनाव, श्रृंगार सोलह हैं. किसी वस्तु को शेव-चिल्ली -संज्ञा, पु. ( अ०-: हि० ) शोभा देने वाले साधन, सिंगार, सिंगार एक कल्पित मूर्ख, बड़े मंसूबे बाँधने वाला. एक मूर्ख मसखरा । शृंगारना-स० क्रि० दे० (सं० श्रृंगार+ना-शेवर-संज्ञा, पु. (40) सिर. माथा, किरीट, प्रत्य ) सजाना, सँवारना, शृंगार करना, मकट शीर्ष. चोटी पिरा. शिवर ( पर्वतसिंगारना (दे०)। भंग ) सर्व श्रेष्ठ या उत्तम, वस्तु या व्यक्ति श्रृंगार-हाट--संज्ञा, स्त्री० यो० (सं० शृङ्गार- टगण का पाँचवा भेद (15-पि.)। घाट-हि० ) वह बाजार जहाँ रंडियों रहता लावल-----संज्ञा, पु. ( अ० शेख ) कछवाहे हों, सिंगारहाट (द०)। राजपूतों की एक शाखा! शृंगारिक-वि० (सं०) शृंगार संबंधी। शेखी---- संज्ञा, स्त्रो. (फा०) अहंकार, घमंड, शृंगारिणी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) स्रग्विणी गर्व, शान, अकड़, ऐठन, डींग । मुहा०छंद (पिं०)। शृंगारित--वि० (सं०) सजाया हुआ, शृंगार शेखी बघारना ( हाँकना या मारना) किया हुआ, अलंकृत, सुसजित । -----बढ़ बढ़ कर बात करना, डींग मारना । श्रृंगारिया-संज्ञा, पु० दे० (सं० शृद्धार ---इया. शेषी भाड़ना (निकालना)--गर्व दूर करना। शेखी भूनना (मुलाना )प्रत्य०) वह पुरुष जो देव-मूर्तियों का शृंगार शान या गर्व दूर करना ( होना)। शेखो करता हो, बहुरूपिया, सिंगारिया (दे०) । शृंगि-संज्ञा, पु० (सं०) सिंगी मछली । संज्ञा, दिखाना-शान दिखाना। यो०---गोवो. शान । पु. ( सं० शृङ्गिन् ) सींग वाला ! शृंगी-संज्ञा, पु. (सं० शृडिन् ) सींग वाला शेखीबाज-वि० (फ़ा०) अभिमानी, घमंडी, पशु, वृक्ष, हाथी, पहाड़, शमीक ऋषि के पुत्र ! पहंकारी, झूठी डींग मारने वाला । संज्ञा, एक ऋषि जिनके श्राप से अभिमन्यु-पुत्र । स्त्री०-शेखीबाजी। राजा परीक्षित को तक्षक ने काटा था, शेर--संज्ञा, पु० (फ़ा०) व्याघ्र, बाघ, नाहर, कनफटों के बजाने का सींग का एक बाजा, सिंह, बिल्ली की जाति का एक भयावना हिंसक पशु। स्त्री०-शेरनी । मुहा० --शेर महादेव जी, शिव जी, ऋषभक भामक होना-निर्भीक और पृष्ट होना, अत्यंत एक अष्ट वर्गीय औषधि (वैद्य०)। शृंगीगिरि-संज्ञा, पु. यौ। (सं०) वह वीर और साहसी व्यक्ति । संज्ञा, पु० (अ०) प्राचीन पहाड़ जहाँ शृंगी ऋषि तपस्या उर्दू, फारसी और अरबी के छंद के दो करते थे। चरण । “ कसन गुफ्ता शेर हमचुं सीन शृग-शृगाल-संज्ञा, पु. ( सं० शृगाल ) ऐनो, दाल, ये"...सादो० । संज्ञा, स्त्रीसियार, गीदड़, स्यार। शेवानी-शेर कहना। अजि--संज्ञा. प. (सं.) कंस का एक भाई शेरदहां--वि० (फ़ा०) जिसका मुँह शेर का (पुरा०)। सा है, जिसके छोरों पर शेर का सा मुंह शेख--संज्ञा, पु. (अ०) पैग़म्बर मुहम्मद के बना हो । संज्ञा, पु०-शेर के मुंह की सी घर्ड वंशज मुसलमानों की उपाधि, मुसलमानों वाला. पीछे संकरा और आगे चौड़ा घर । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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