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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अर्थालंकार १५५ अर्द्धांगिनी जाये, इसे काव्यार्थापत्ति भी कहते हैं अर्द्धनारीश्वर - अर्द्धनारीश― संज्ञा, पु० ० (सं० ) शिव और पार्वती का सम्मि लित रूप ( तंत्र० ) उमा शंकर, हरगौरि, गौरी-शंकर । अर्द्धनिमेष- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) ( काव्य० प्र० पी० ) । प्रर्थालंकार - संज्ञा, पु० (सं० ) वह लंकार जिसमें गत चमत्कार प्रगट किया जाय । ( काव्य, प्र० पी० ) 1 प्रर्थी - वि० (सं० अर्थिन ) इच्छा रखने वाला, चाह रखने वाला, कार्यार्थी, प्रयोजन वाला, गज़ 1 संज्ञा, पु० वादी, प्रार्थी, मुद्दई, सेवक, याचक, धनी । संज्ञा, स्त्री० (दे० ) देखो " अस्थी " स्त्री० अर्थिनी । अर्दन - संज्ञा, पु० (सं० ) पीड़न, हिंसा, माँगना । जाना, - स० क्रि० ( सं अर्दन) पीड़ित प्रर्दना. करना, दुःख देना | प्रदली - संज्ञा, पु० दे० ( अं० आर्डरली ) चपरासी । प्रदोषा - वि० (दे० ) मोटा आटा, दलिया । प्रदिन - वि० (सं० ) पीड़ित, हिंसित, याचित, गत, यंत्रणायुक्त, दुखित । अर्द्ध - वि० (सं० ) आधा, तुल्य या सम भाग, मध्य श्रद्धा (दे० ) । अर्द्धचंद्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आधा चाँद, अष्टमी का चंद्रमा, चंद्रिका, मोरपंख पर बनी हुई आँख, नवचत, एक प्रकार का वाण, सानुनासिक का एक चिह्न चंद्र - विन्दु, एक प्रकार का त्रिपुंड गरदनिया, निकाल बाहर करने के लिये, गले में हाथ लगाने की एक मुद्रा विशेष । अर्धजल - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्मशान मैं शव को स्नान कराके आधा जल में राधा बाहर रखने की क्रिया । अर्द्ध-कंपित - वि० यौ० (सं० ) श्राधा छिपा हुआ । श्रर्द्धनयन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) देवताओं की तीसरी आँख जो ललाट में होती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधा क्षण । " अर्ध निमेष कल्प सम बीता „ रामा० । अर्द्धप्रफुल्ल - वि० यौ० (सं० ) अधखिला, श्राधा फूला वि० अर्धप्रफुल्लित । अर्द्धमागधी - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० ) प्राकृत भाषा का एक भेद, काशी और मथुरा के मध्यवर्ती प्रान्त की प्राचीन भाषा । अर्द्धरथ श्रर्द्धरथी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक रथी से न्यून योधा, श्राधा रथी । अर्द्धरात्रि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) रात्रि का अर्ध भाग, मध्य रात्रि | अधरात ( दे० ) महानिशा, आधीरात (दे० ) । " अर्ध रात्रि गई कपि नहि श्रवा " रामा० । प्रवृत - संज्ञा, पु० ० (सं० ) वृत या गोले का आधा भाग, गोलार्ध । अर्द्धसमवृत्त - संज्ञा, पु० या० ( सं० ) वह छंद जिसका प्रथम चरण तो तीसरे के और दूसरा चतुर्थ के बराबर होता है, जैसे दोहासोरठा (पिं० ) । प्रस्फुटित - वि० ० (सं० ) अधखिला, श्राधा खुला हुआ । वि० [अर्द्धस्फुट - अर्धविकसित । श्रद्धांग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्राधा अंग, पक्षाघात या एक विशेष प्रकार का लकवा या वायु-रोग जिसमें आधा शरीर काम और शून्य होकर जड़ीकृत सा हो जाता है, फालिज, पक्षाघात । अर्द्धांगिनी - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) स्त्री, पत्नी, अर्धांगी (दे० ) । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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