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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विभेद विभेद - संज्ञा, पु० (सं०) अन्तर, पार्थक्य, faaira, ra, विभिन्नता, अनेक भेद या प्रकार, घुसना मना । स्व लिये जुगदाम दिये नहिं एक विभेद विशेष लखाई - जि० ला० £6 55 विभेदना* - -- स० क्रि० दे० (सं० विभेद ) भेद या ग्रन्तर डालना, भेदना, छेदना, छेदकर घुसना, भेदन करना । विभौ * संज्ञा, ५० दे० (सं० विभव) ऐश्वर्य, प्रताप, संपत्ति, धन । विभ्रम- संज्ञा, पु० (सं० पर्यटन, भ्रमण, फेरा, चक्कर, भ्रान्ति, संदेह, भ्रम, संशय, प्राकुलता, स्त्रियों का एक हाव जिसमें वे भ्रमवश उलटे वस्त्राभरण पदन कभी तो क्रोध और कभी हर्षादि प्रगट करती हैं (साहि० ) । विभ्राट - संज्ञा, पु० (सं०) बखेड़ा, झगड़ा, विपत्ति, धापत्ति, उपद्रव, संकट । विमंडन - संज्ञा, पु० (सं०) सँवारना, सजाना, शृंगार करना । वि० - विमंडित. विमंडनीय । विमंडित - वि० (सं०) सुसजित, घलंकृत, सुशोभित, सजामजाया. सजा हुआ, युक्त, सहित ( भली वस्तु से ) । विमत - संज्ञा, पु० (सं०) उलटा या विरुद्व मत, प्रतिकूल सम्मति, विपरीत सिद्धान्त । विमति - संज्ञा, पु० (सं०) राजा जनक का बंदीजन । " सुमति विमति हैं। नाम, राजन को वर्णन करें " विमत्सर --- संज्ञा, पु० (सं० ) यति श्रभिमान | विमन - वि० (सं० विमनस् ) उन्मन, उदास, अनमना, दुखी | संज्ञा, स्त्री० विमानता । विमनस्क - वि० (सं०) धन्यमनस्क, उन्मन, उदास, अनमना, विमन । विमर्द - संज्ञा, पु० (सं०) मर्दन, रगड़ । 'शय्योत्तरच्छद-विमर्द- कृशाङ्ग रागं " रघु० । " विमर्दन - संज्ञा, ० (सं०) भली भाँति - राम० । १५६५ मलना-दलना, मार डालना, नष्ट करना । वि०-विमर्दनीय, विमर्दित । विमुक्ति विमर्श - संज्ञा, पु० (सं०) परामर्श, किसी विषय पर विचार, विवेचन, समीक्षा, थालोचना, परीक्षा । विमर्शन- संज्ञा, पु० (स० ) परामर्श, विचार, विवेचन, समीक्षा, थालोचना, परीक्षा | वि० - विमर्शनीय | विमर्ष-- संज्ञा, पु० (सं०) विमर्श, परामर्श, विवेचन, समीक्षा, थालोचना, परीक्षा, नाटक का एक अंग जिसमें व्यवसाय, प्रसंग, अपवाद, खेद, विरोध, शक्ति और श्रादानादि का वर्णन हो ( नाट्य ० ) । विमल - त्रि० (स० ) निर्मल, साफ़, स्वच्छ, शुद्ध, निर्दोष, सुन्दर, मनोहर । त्रो०विमला | संज्ञा, स्त्री० - विमलता । "विमल सलिल सरसिज बहु रंगा" - रामा० । विमलध्वनि-संज्ञा, पु० (सं०) छः पदों का एक छंद (पिं०) । विमला संज्ञा, स्त्री० (सं०) सरस्वती । विमलापति – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्मा जी, विमलेश । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमाता - संज्ञा, स्त्री० (सं० विमातृ) सौतेली माँ । “जान्यों ना विमाता ताहि माता सदा मान्यो हर " - मन्ना० । विमान - संज्ञा, पु० (सं०) नभ-मार्ग - गामी रथ, वायु-यान, हवाई जहाज़, उड़न खटोला, मृतक की सजी हुई अर्थी, गाड़ी, सवारी, रथ, घोड़ा यादि, रामलीला के स्वरूपों का सिंहासन, परिमाण, अनादर बिमान, मान (दे० ) । " नगर-निकट प्रभु प्रेरेऊ, भूमि विमान रामा० । विमुंचना - स० क्रि० (दे०) फेंकना, छोड़ना, विमोचन | वचन विमुंचत तीर ” – वृंग विमुक्त - वि० (सं०) भली-भाँति मुक्त, पृथक्, छूटा हुआ, मोक्ष, प्राप्त, स्वच्छंद, स्वतंत्र, बरी, छोड़ा या फेंका हुआ ( दंड या हानि से ) बचा हुआ । विमुक्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० मुच् + क्तिन् ) मोक्ष, छुटकारा, रिहाई, मुक्ति । 6. " For Private and Personal Use Only ""
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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