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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वारिवर्त्त - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० वारि + श्रावर्त) एकमेव | वारियाँ १५७५ वारियाँ - संज्ञा, स्रो० दे० ( हि० वारी ) | वाष्र्णेय -- संज्ञा, पु० निछावर, वलि । वारिस - संज्ञा, पु० (अ०) उत्तराधिकारी, किसी के मरने पर जो उसकी संपत्ति का स्वामी हो । (सं०) समुद्र | घर, मकान, गृह । (सं०) समुद्र | -रामा० । बारींद्र - संज्ञा, पु० चौ० घारी - संज्ञा, स्रो० (दे०) वारीश - संज्ञा, पु० यौ० "जेहिं वारीश बँधायो हेला " घारीफेरी - संज्ञा स्त्री० दे० यौ० ( हि० वारना + फेरा ) वारफेर, निछावर, वलि । वारुणी - संज्ञा, स्रो० (सं०) मद्य, मदिरा, शराब, वरुण की स्त्री, उपनिषद् विद्या, पश्चिम दिशा, गंगा स्नान का एक पर्व | 'वारुणीम् मदिराम् पीत्वा " - - भा० द० | घारेंद्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) राजशाही प्रान्त के समीप का एक प्राचीन जानपद | वार्त्ता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बात-चीत, गप्प, जनश्रुति, अफवाह, डाल, वृत्तांत, समाचार, संवाद, विषय, बतकही (ग्रा० ) मामला, वैश्यों की जीविका या वृत्ति जिसमें गोरक्षा, कृषि, व्याज ( कुसीद) और वाणिज्य हैं । "आन्वीक्षिकी श्री, वार्त्ता दंडनीतिश्च शाश्वती " - टी० किरा० । वार्त्तालाप - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बातचीत । वार्त्तिक - संज्ञा, पु० (०) किसी सूत्रकार के मत का प्रतिपादक ग्रंथ, किसी सूत्र - ग्रंथक, धनु, उक्त और दुरुक्त श्रर्थो का स्पष्टकारक वाक्य या ग्रंथ । बार्द्धक्य - संज्ञा, पु० (सं०) बुढ़ापा, बुढ़ाई, आधिक्य, बदती । वार्षिक - वि० (सं०) वर्ष-संबंधी, सालना । वार्षिकोत्सव - संज्ञा, ५० यौ० (सं०) सालाना बलसा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाष्पाकुलित (सं०) श्रीकृष्ण जी । "eogavaron वलादिव नियोजितः " - भ० गी० । वालखिल्य-संज्ञा, पु० (सं० ) अंगुष्ठ मात्र शरीर वाले ऋषियों का समूह । वाला - संधा, पु० (सं०) उपजाति छंद का एक भेद (पिं० ) । प्रत्य० ( दे० हि० ) हिंदी भाषा में किया के अंत में लग कर कर्तृ वाचक संज्ञा का अर्थ और पदार्थ या वस्तुवाचक के प्रत में होकर संबंध वाचक सयुक्त संज्ञा का देता है, जैसे करना से करने वाला और दूध से दूध वाला । वालिद - संज्ञा, पु० (अ०) बाप, पिता, जनक । वालिदा - संज्ञा, स्त्री० (अ०, माँ, माता । वालुका - संज्ञा, खो० (सं०) रेत, बालू, कपूर, शाखा । वाल्मीकि - संज्ञा, पु० (सं०) एक भृगुवंशीय मुनि जिन्होंने यादि काव्य रामायण का निर्माण किया । " वाल्मीकि मुनि-सिंहस्य कविता-वन-चारिण " -- स्फुट ० । वाल्मीकीय- वि० (सं०) वाल्मीकि का निर्माण किया या बनाया हुआ, वाल्मीकि संबंधी । " वाल्मीकीय " काव्यम् स्फुट० । वावदूक - सज्ञा, पु० (सं०) वक्ता, विख्यात वक्ता, घति बोलने वाला, वाग्मी । घाबैला - संज्ञा, पु० (प्र०) रोना-पीटना, विलाप, शोरगुल | 61 वाशिष्ठ- संज्ञा, पु० (सं०) एक उपपुराण, वि० (सं०) वशिष्ट का, वशिष्ट-संबंधी । वाष्प - संज्ञा, पु० (सं०) धाँसू, भाफ, भाष । निरुद्ध वाष्पोदय सन्न कण्ठमुवाच कृच्छादिति राजपुत्री - किरा० । यौ०वाप्यान ( वाष्प यंत्र ) - रेल यादि भाष से चलने वाली गाड़ियाँ या कलें । वाष्पाकुलित - वि० यौ० (सं०) वाष्प या से भरे । 0 For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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