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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - घल्लरि-वल्लरी वसन पल्लरि-वल्लरी- संज्ञा, स्त्री० (सं०) वल्ली, वषट-अव्य. (सं०) इसे पढ़ कर देवताओं लता, मंजरी, व्रतती। को हवि दी जाती है। घल्ली -संज्ञा, स्त्री. (सं.) लता, बेल । वसंत--संज्ञा, पु. (सं०) साल की छः " व्रतती तु लता, वल्ली'"- अमर०। ऋतुओं में से चैत्र वैपाख के मामों की वल्वल-संज्ञा, पु० (सं०) इल्वल नामक एक मुख्य और प्रथम ऋतु, बहार का मौसिम, दैत्य जो बलदेवी जी से मारा गया था छः रागों में से दूसरा राग (संगी०), (पुरा.)। शीतला रोग, चेचक । वि. --वासंत, पश-झा, पु० (सं०) इच्छा, 'वाह, अधिकार, वासंतक, वासनिक, वसंती । "विहरति काबू, इख्तियार, शक्ति, बस (दे०) ।। हरिरिह सरस वसंते ''- गीत। मुहा०-वश का--- जिस पर अधिकार हो, वसंततिलक, बसंततिलका स्त्री-संज्ञा, क़ाबू का, वही न दे तो किसके वश का है, पु० (सं०) त, भ, ज, ज ( गण) और दो म.इ. । शक्ति की पहुँच, सामर्थ्य : मुहा० गुरु वर्णान्त १४ वर्णों का एक वर्णिक छंद -वश चलना-सामर्थ्य या शक्ति काम (पि.)। "ज्ञ या वसंततिलका तभजा करना. काबू चलना। प्रभुत्व, कब्जा, दखल । जगौगः।" वशवर्ती- वि० (सं० वशतिन् ) प्राधीन, वसंततिलका--संहा, स्त्री. (सं०) वसंत ताबे ! स्त्री वशवर्तिनी। तिलक छंद। पशिता-संज्ञा, स्त्री. (सं.) ताबेदारी, घसंतदूत-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्राम की अधीनता, मोहने की क्रिया, घशता। बौर या वक्ष, चैत्र मास, कोयल । वशित्व-संज्ञा, पु० (सं०) वशता, अणिमादि वसंतदृतो-ज्ञा, त्री० यौ० (सं०) पिक, पाठ सिदियों में से एक सिद्धि योग०)। । कोकिला, माधवीलता। वशिष्ट-संज्ञा, पु. (सं०) रघुवंश और राम- वसंतपंचमी-संज्ञा, पु० यो० (सं०) माघ चंद्र जी के पुरोहित या गुरु । " प्रस्थापया. शुक्ल पंचमी ( त्यौहार )। मास वशी वशिष्टः ''- रघु० । वसंती-संज्ञा, पु. (सं०) वसंत-संबंधी, वशी-वि. ( स० वशिन् ) अपने को वश वसंत का, गहरा पीला रंग. पीला वस्त्र । में रखने वाला, इन्द्रियजित, श्राधीन । स्त्री० । मुहा०-वसंती रंग चढ़ना-प्रफुल्लता वशिनी। या रसिकता पाना। वशीकरण -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मंत्रादि वसंतोत्सव--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक से किसी को श्राधीन या वश में करना, प्राचीन उत्सव जो वसंत पंचमी के दूसरे वश में करने की क्रिया, बसीकरन (दे०)। दिन होता था, मदनोत्सव, होली का " वशीकरण इक मंत्र है परिहरु बचन उत्सव, होलिकोत्सव। कठोर"-तुल० । वश में करने ( मोहने) वसत-संज्ञा, स्त्री० (अ०) फैलाव, विस्तार, का एक प्रयोग (तंत्र)। वि.--वशीकृत, समाई, चौड़ाई, शक्ति अँटने का स्थान, वशीकरणीय। सामर्थ्य, बल। वशीभूत--वि० (सं०) प्राधीन, ताबे. पर- वसति, पारती- सज्ञा, स्त्री० (सं०) प्राबादी. इच्छानुचारी. मुग्ध, मोहित । गाँव, घर, रात, बस्ती (दे०)। वश्य-वि० (सं०) वश में आने वाला। वमन-- संज्ञा, पु० (सं०) कपड़ा, वस्त्र, पाव. वश्यता-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) प्राधीनता, । रण, निवास । "भूमि-सयन, बलकल वपन" दासता, परवशता, परबसता (दे०)। -रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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