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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पमि परयात्रा पमि-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) वमन रोग। के हेतु चुनना या नियुक्त करना, स्वीकार वर्य, वयम् -सर्व० (सं०) हम । या पूजा करना, पूजा, यज्ञादि शुभ कार्यों वयाक्रम-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) अवस्था, में होतादि के लिये विद्वानों को नियुक्त कर समाप्त करना, तथा कुछ देना, वरण किये वयःसंधि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) लड़कपन होतादि व्यक्तियों को दिया धन-दानादि, या वाल्यावस्था और जवानी या युवावस्था कन्या का वर को स्वीकार करना । के बीच की अवस्था। वरणा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक नदी, बरना वय - संज्ञा, स्त्री० (सं० वय ) उम्र, श्रवस्था, (दे०)। वैस, धयस (दे०)। वरणी--संज्ञा, स्त्री० (सं० वरण ) वरण वयस्क-वि० (सं०) श्रवस्था वाला । (यो० में) किया हुआ, निमंत्रित, नियुक्त, नियोजित । पूरी अवस्था को प्राप्त, सयाना, बालिग़। वरद-वि० सं०) बरदान देने वाला देवतादि स्रो० वयस्का । यौ-समवयस्क। (स्त्री० वरदा)। वयस्थ-वि० (सं.) सयाना, वालिस। वरदराज-वरदराट- संज्ञा, पु० (.) शिव, घयस्य-संज्ञा, पु० (सं०) समान अवस्था वाला, विष्णु, ब्रह्मा, सिद्धान्त-कौमुदी के रचयिता सखा, मित्र, संगी, साथी, समवयस्क। । एक प्रसिद्ध वैयाकरणी विद्वान वरदराज ।। घयस्या--संज्ञा, स्त्री० (सं०) सखी, सहेली वरदाता- वि. यौ० (सं० वरदातृ ) वरदान " कतिपय दिवसैर्वयस्यया वःस्वयमभिलष्या देने वाला। परिष्यते वरीयान "--नैप० ।। वयोवृद्ध-वि० यौ० (सं०) बड़ी अवस्था वरदान- वि० यौ० (सं०) किसी देवता या गुरुजनों का अपनी प्रसन्नता से किसी को का, वृद्ध, बड़ा बूढ़ा, आयु में बड़ा । संज्ञा, स्त्री० वयोवृद्धता। कोई इष्ट फल या सिद्धि देना, किसी बड़े परं-अभ्य० (सं०) उत्तम, अच्छा, श्रेष्ठ । की प्रसन्नता से प्राप्त कोई सुफल का लाभ । वरंच-मव्य० (सं०) बल्कि, परन्तु, लेकिन, वरदानी- संज्ञा, पु. (सं०) वरदान देने ऐसा नहीं ऐसा। वाला। घर-संज्ञा, पु० (सं०) वह मनोरथ जो किसी घरदी--संज्ञा, स्त्री. (१०) किसी सरकारी देवता या बड़े से माँगा जाय, किसी बड़े विभाग के अधिकारियों, कार्यकर्ताओं या या देवतादि से प्राप्त सिद्धि या अभीष्ट | नौकरों का पहनावा विशेष । फल, पति, स्वामी. दूल्हा, बर (दे०)। वरन्- मध्य० दे० (सं० वरम् ) किंतु, ऐसा वि०- श्रेष्ठ, उत्तम । जैसे—मुनिवर। नहीं, बल्कि। घरक-संज्ञा, पु० (अ.) पत्र, पुस्तकादि का वरना*~-ज्ञा, पु० दे० (सं० वरण ) ऊँट । पना, पत्रा, पतला पत्तर ( सोना-चाँदी)। । अव्य० (म०) वगरना, नहीं तो, यदि ऐसा परजिस-संज्ञा, स्त्री. (फ़ा०) व्यायाम, कसरत । " दवा कोई वरज़िस से बेहतर | वरपतिक संज्ञा, पु० (२०) अभ्रक, अबरख । घरटा--संज्ञा, खो० (सं०) हंसिनी, हंसी। वरम-संज्ञा, पु० (फ़ा०) सूनन, वर्म । " मवप्रसूतिर्वस्टा तपस्विनी"--नैष । वरयात्रा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) बरात, परण-संज्ञा, पु. (६०) सरकार, अर्चना, । बारात, वर का बाजे-गाजे से कन्या के यहाँ किसी योग्य पुरुष को किसी कार्य के करने ! जाना। मा० श. को०-१६६ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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