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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वकालत नामा WARRENDE TRIMME www.kobatirth.org १५५६ वकालतनामा - संज्ञा, पु० यौ० ( ० वकालत -+- नामा) वह अधिकार-पत्र जिसके द्वारा कोई किसी वकील को अपनी ओर से मुक़दमे की पैरवी या बहस के लिये रख सकता 1 " वकासुर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक दैत्य जिसे श्री कृष्ण जी ने मार था. (भाग ० ) । वर्क - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) नूतना नाम की राक्षसी । " मारन को घाई वकी बानाक बनाई वर कान्ह की कृपा सो पाई सुगति सिधाई है वकील-- संज्ञा, पु० (अ०) दुसरे के पक्ष का समर्थक ( मर्डन करने वाला) राज-दूत, दूत, प्रतिनिधि, एलची वकालत परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति जो अदालतों में अपने मुवक्किलों के मुक़दमों में बहस करे | - मन्ना० । 66 वकुल- पुष्प- रसासव | वकुल -- संज्ञा, पु० (सं०) मौलसिरी का पेड़ । पेशलध्वनिरगान्निर गान्मधुपावली " --- माघ० । “सोयं सुंगधिमकुलो वकुलो विभाति "लो० रा० । वकप संज्ञा, पु० (०) घटेत होना । चकमा संज्ञा, पु० ( ० ) घटना, वारदात | व -- संज्ञा, पु० (श्र०) समझ, ज्ञान । वक्त संज्ञा, पु० (०) काल, समय, मौका, अवसर, अवकाश, वखत (३०) | वक्तव्य - वि० (सं०) वाच्य, कहने योग्य, कथनीय | संज्ञा, पु० (सं०) वचन, कथन, किसी विषय में कहने की बात । वक्ता - वि० सं० वक्त ) बोलने या कहने वाला, वाग्मी, भाषण में पटु, या कुशल | संज्ञा, पु० (सं० ) कथा कहने वाला व्यास ! वक्तृता -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) व्याखान, भाषण, कथन, वाकपटुता या कुशलता । वक्तृता धरि देहु कँपाय " प्र० ना० । वक्तृत्व - संज्ञा, पु० (सं०) वक्ता, वाग्मिता, " व्याख्यान, कथन, भाषण । वक्त्र - संज्ञा पु० (सं०) मुख, मह, एक छंद (पि०) । 1 वचं वक्फ - संज्ञा, पु० (०) धर्मार्थ दान किया गया धन या संपत्ति, किसी को कोई वस्तु देना | चक्र - वि० (सं०) बाँका, बक्र (दे०) टेदा, कुटिल, तिरछा, कुका हुआ | संज्ञा, स्त्री० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वक्रता । वक्रगामी - वि० (सं० वक्रगामिन् ) टेढ़ी चाल चलने वाला दुष्ट, शठ, कुटिल । arta aata:- संज्ञा, ५० यौ० (सं० ) ऊंट, टेढ़ी गरदन वाला | J वक्रतंड - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गणेश जी । वक्रदृष्टि - संज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) कुटिल या टेढ़ी निगाह, कटाच, रोष-दृष्टि । वक्री - संज्ञा, ५० (सं०) जन्म से टेढ़े अंगों वाला, बुद्धदेव । वि० (सं०) किसी ग्रह का अपने मार्ग से हट कर वक्रगति से जाना ( ज्यो० ) । वक्रोक्ति -- संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) एक अर्थालंकार जिसमें काकु या श्लेप से वाक्य का भिन्न अर्थ होता है (का० ) ( श्र० पी० ), टेढ़ी बात, बढ़िया उक्ति, काकृक्ति, वकी कति (दे० ) | वन संज्ञा, पु० [सं० वक्षस ) उर- स्थल, छाती । वक्षःस्थल संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हृदय, छाती, उर । "वक्षः स्थले कौस्तुभं " स्फु० 1 वतु-- संज्ञा, पु० (सं० वं ) बंतु या आक्सस नदी जो अरल सागर में गिरती है (भूगो०)। बत्ताज संज्ञा, पु० (सं०) उरोज, पयोधर, स्तन, चूँची, छाती । वक्ष्यमाण - वि० (सं०) वक्तव्य, जो कहा जा रहा हो । बगलामुखी - संज्ञ, स्त्री० (सं०) एक महा विद्या या देवी का रूप । वगैरह --- श्रव्य ० प्रभृति | ( ० ) इत्यादि आदि, वचं - - संज्ञा, पु० ( पं० वचन ) वाक्य | For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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