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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेखिका ( बराबर ) करना ( होना ) - हिसाबचुकता करना ( होना ) या निपटाना, ( निपटना ), चौपट या नाश करना ( होना ) | अनुमान, समन, विचार। मुहा० - किसी के लेखे -- किसी की समझ या विचार मैं । नर-बानर केहि लेखे माँही ". -रामा० । लेखिका -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) लिखने वाली, पुस्तक रचने वाली: 16 लेख्य -- वि० (सं०) लिखने योग्य, जो लिखा जाने को हो | संज्ञा, ५० (दे०) दस्तावेज, लेख, तमसुक । लेख्यगृह - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दफ़्तर, १५४५ कचहरी श्राफ़िस ( ० ) । लेज़म- संज्ञा, स्रो० ( फा० ) एक नरम और लचीली कमान जिससे धनुर्विद्या का अभ्यास किया जाता है, लोहे की जंजीर लगी कमान जिससे कसरत की जाती है, लेजम (दे० ) । लेज -संज्ञा स्त्री० (दे०) रस्सी, डोरी । लेजर-लेजुरी - संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० रज्जु ) डोरी. रस्सी, लजुरी (ग्रा० ) लेट संज्ञा, पु० (दे०) चूने की गच. लेटने का भाव । क्रि० वि० ( ० ) देर, विलंब | लेटना - अ० कि० दे० (सं० लुंठन, दि० लोटना ) पौड़ना, बग़ल की ओर झुककर पृथ्वी पर गिर जाना, बिछौने आदि से पीठ लगाकर पूरा शरीर उस पर ठहराना | स० क्रि० लखना, खिटाना, लिटावना (प्रा० ), मे० रूप०-लेटखाना, लिखाना | लेदी -- संज्ञा, खो० (दे०) एक पक्षी । लेन- संज्ञा, ५० ( हि० लेना ) लेने की क्रिया या भाव, पावना, लहना (दे० ) यौ० - लेन-देन - लेना-देना । लेनदार - संज्ञा, पु० ( हि० लेन + दार- लेपड़ना लेन-देन संबंध, सरोकार । न लेने में न देने में कोई सम्बन्ध न रखना ( रहना) । लेनहार - वि० दे० ( हि० लेना + हारप्रत्य० ) लेने वाला, लेनहारा (दे० ) । लेना- स० क्रि० ( हि० लहना ) प्राप्त या ग्रहण करना, और के हाथ से अपने हाथ में करना, पकड़ना, थामना, ख़रीदना, मोल लेना, अपने अधिकार या क़ब्ज़े में करना, अगवानी करना, जीतना, धरना, जिम्मे लेना, भार उठाना, अभ्यर्थना करना, पीना, सेवन करना, अंगीकार या धारण करना उपहान से लज्जित करना | मुहा० - थोड़े हाथों लेना - गूढ़ व्यंग्य के द्वारा लज्जित करना। लेने के देने पड़ना -- लाभ के बदले हानि उठाना, लेने के बदले देना पड़ना । ले डालना - करना, बिगाड़ना, चौपट करना, हरा देना, समाप्त या पूर्ण करना । ले-दे डालना नष्ट या ख़राब फा० प्रत्य०) महाजन, व्यवहर, लहनेदार | लेन-देन -- संज्ञा, पु० यौ० ( हि० लेना + देना ) श्रादान-प्रदान, उधार लेने देने का व्यवहार, लेने-देने का व्यवहार। मुहा०भा० श० को ० - १६४ ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - नष्ट करना, व्यंग्य से अपमानित या लज्जित करना । ले-दे करना - तकरार करना, झगड़ना । लेना एक न देना दो - कुछ मतलब या सरोकार नहीं । ( न कुछ लेना न देना - निष्प्रयोजन । न (ऊधौ के ) लेने में न ( माधव के ) देने में किसी प्रकार का सम्बंध न होना, निष्प्रयोजन, अकारण ले मरना ( ले गिरना ) थपने साथ दूसरे को भी नष्ट या बरबाद करना, कुछ न कुछ कार्य सिद्ध ही कर लेना । कान में लेनासुनना । ले बोलना - नष्ट या ख़राब कर देना, समाप्त वर लेना । लेप - संज्ञा, पु० (सं०) लेई की सी पोतने, छोपने या चुपड़ने की वस्तु, किसी वस्तु पर चढ़ी हुई किसी गादी और गीली वस्तु की तह । लेपड़ना- - स० क्रि० यौ० ( हि० लेना + पड़ना) साथ सोना, ले जाना, नाश करना, बिगाड़ना, कुछ काम पूरा ही कर लेना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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