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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रेवा १५०२ राटिया रेवा – संज्ञा, स्रो० (सं०) नर्वदा या नर्मदा | रेतुत्र्या- रतुवा - संज्ञा, पु० (दे०) रायता, नदी, दुर्गा, मदन- प्रिया, रति, रीवाँ राज्य, बघेलखंड | यौ० - रेवा खंड | रेशम -- संज्ञा, पु० (फ़ा० ) कोश में रहने वाले विशेष प्रकार के कीड़ों से बनाया गया हद चमकीला और कोमल तंतु जिससे महीन कपड़ा बनाया जाता है, कौशेय, रेसम (दे०) । की रेशमी - वि० ( फा० ) रेशम से बना । रेशा - संज्ञा, पु० [फा० ) पेड़ों की छाल आदि से निकला तंतु या बारीक़ सूत, रेसा (दे० ), श्रम की गुठली के तंतु । वि० रेशेदार | रेसु - संज्ञा, पु० (दे० ) ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध । रेह संज्ञा, स्त्रो० (दे० ) ऊसर - मैदान क्षार या खार मिली मिट्टी, रेह (दे० ) । रेहकल - संज्ञा, पु० ( प्रान्ती०) छोटी गाड़ी रहकल । त्रो० - रेहली, रहकली । रेहड़ – संज्ञा, पु० (दे०) एक प्रकार की छोटी और हलकी बैलगाड़ी ( प्रान्ती० ), लढ़ी (ग्रा० ) । देने रेहन - संज्ञा, ५० ( ० ) गिरवी, बंधक, किसी धनी के पास इस शर्त पर माल या जायदाद रखना कि कर्ज़ का रुपया दे पर वह वापस हो जायगी । रेहनदार - संज्ञा, पु० ( ० रेहन + दार फा० -प्रत्य० ) जिसके यहाँ गिरवी या बंधक रक्खा गया हो, महाजन, धनी । रेहननामा- संज्ञा, पु० ( फा० ) गिरवीनामा, बंधक - पत्र जिस पर रेहन की शर्तें लिखी हों। रेहल - संज्ञा, बी० दे० ( ० रिहल ) पढ़ते वक्त किताब रखने की चौकी । रेहला - संज्ञा, पु० (दे०) चना, रहिला, लहिला (ग्रा० ) । रेह पेह - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) अधिकता. बहुता Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रैना (दे० ) । रैदास - संज्ञा, पु० (दे०) कबीर का सम. कालीन स्वामी रामानंद का एक चमार भक्त शिष्य, चमारों की पदवी या जाति । जैन-रेनि--संज्ञा, स्रो० दे० (सं० रजनी ) रात्रि, रात । " रैन-दिन चैन हैन सैन, इहिं उद्दिम मैं " - रत्ना० । रैनिचर -- संज्ञा, पु० दे० (सं० रजनिचर ) राक्षस, निशाचर, रेनचर । 'चली निचर सैनि पराई " रामा० । --- रयत संज्ञा, स्त्री० (०) रिथाया, प्रजा । भैयाराव - संज्ञा, पु० दे० ( हि० राजा + राव) छोटा राजा, मालिक, स्वामी, सरदार | 'रैयाराव चम्पत को " - भूष० । रयत - संज्ञा, पु० (स०) बादल । रेवतक-संज्ञा, पु० (सं०) एक पहाड़ जो गुजरात में है ( भू०), " श्रसौ गिरनार । गिरि रैवतकं ददर्श - माघ० । महादेव जी, चौदह मनुवों में से एक मनु । " रैहर - संज्ञा, पु० ( दे० 'इहर ) झगड़ा, टंटा, बखेड़ा । "रैहर मैं ठानो बलि श्राप सौ सुनौ जू तुम ” – मन्ना० । वि० हरी (दे० ) । रोयाँ-रोवाँ -- संज्ञा, पु० दे० ( सं० रोम ) शरीर पर के बाल, लोम, रोम । रोंगटा -- संज्ञा, ५० दे० ( सं० रोमक ) शरीर पर के बाल । ' देदो करें न रोंगटा जो जग बैरी होय "कबी० । मुहा० - रोंगटे खड़े होना - डरने से शरीर में सोभ उत्पन्न होना, रोमांच होना, रोंयें खड़े होना । रोगटी - संज्ञा, स्रो० दे० ( हि० रोना ) खेल में बुरा मानना, अन्याय या अधर्म करना, बेईमानी करना । यत, भरमार । रे – संज्ञा, पु० (सं०) धन, संपत्ति, सोना, शब्द | रैप्रत* -- संज्ञा, स्रो० दे० ( ० रैयत ) | रैयत, प्रजा, रिश्राया । रोट- संज्ञा, खो० (दे०) छल, कपट, बहाना । रोटना - स० क्रि० (दे०) छल या कपट करना, बहाना करना । रोटिया - संज्ञा, पु० (दे०) छली, विश्वासघातक, कपटी, धूर्त | For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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