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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योजनगंधा १४५६ रंक वि०-योजनीय, योज्य, योजित । यौगंधर-संज्ञा, पु. (सं०) शत्रु के अस्त्रों “योजन भरि तेहिं बदन पसारा"-रामा० का निष्फल करने वाला एक अस्त्र। योजनगंधा- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सत्य- योगिक-संज्ञा, पु. (सं०) मिला हुआ, वती, व्यास माता, शांतनु की पत्री। मिलित, दो या अधिक शब्दों के योग से योजना-संज्ञा, स्त्री० सं०) नियुक्ति, व्यवहार, बना शब्द, प्रकृति और प्रत्यय के योग से प्रयोग, मिलान, जोड़, मेल, रचना, बनावट, बना शब्द, अट्ठाईस मात्राओं की छंदों का आयोजन, श्रागे के कामों की व्यवस्था । नाम | वि०.-योग-सम्बन्धी। वि०-योजनीय, योजित। योतक, यौनक--संज्ञा, पु. (सं०) दायज, योद्धा-संज्ञा, पु. ( सं० योद्ध ) लड़ाका, दहेज, जहेज (ग्रा.) व्याह में वर-कन्या को लड़ने वाला, सिपाही, वीर, योधा, जोधा प्राप्त धन । योतिक-संज्ञा, पु० दे० (सं० ज्योतिष् ) योधन- संज्ञा, पु० (सं०) युद्ध, संग्राम, ज्योतिष । लड़ाई। यौधेय-संज्ञा, पु० (सं०) वीर, शूर, योद्धा, योधा, जोधा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० योद्ध) एक प्राचीन योद्धा जाति, एक प्राचीन देश । योद्धा। यौवन-संज्ञा, पु० (सं०) जीवन का मध्य योधापन-- संज्ञा, पु० दे० (सं० याद्ध त्व) भाग (काल), लड़कपन और बुढ़ापे के बीच वीरता, शूरता। का समय जो सोलह से पैंतीस वर्ष तक योनि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) खानि, प्राकर, माना गया है, जोवन (दे०), जवानी, उत्पत्ति-स्थान, उद्गमस्थान । “चौरासी तरुणता, तरुणाई। लख जिया योनि में भटकत फिरत अनाहक' | यौवनलक्षण-वि० यौ० (सं०) जवानी के -विन । जीवों की जातियाँ, वर्ग या चिह्न लावण्य, सुन्दरता। विभाग जो चौरासी लाख कही गयी है. गाव नाश्व-संज्ञा, पु. (सं०) राजा मान्भग, जननेंद्रिय, स्त्री-चिन्ह, देह, शरीर, पाता। जोनि (दे०)। | यौवराज्य-ज्ञा, पु. (सं०) युवराज का योनिज- संज्ञा, पु० (सं०) भग या योनि से पद, भाव या कर्म । “स यौवराज्ये नवउत्पन्न होने वाले जीव । यौवनोद्धतं :- किरात। योषा, योपित-संज्ञा, स्त्री. (सं०) नारी, यौवराज्याभिषेक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्त्री । “योपा प्रमोदं अचुप्रयाति".-- लो. वह उत्सव या अभिषेक (स्नान, तिलक श्रादि) रा० । “उमादारु योषित की नाई"-रामा० । जो किसी राजकुमार के युवराज बनाये जाने यौंको-प्रव्य० दे० ( हि. यों) यों, इस के समय होता है। प्रकार । योत्सना-संज्ञा, स्त्री. (सं०) ज्योत्सना, यौ-सर्व० दे० ( हि० यह ) यह। उजियाली रात। र-संस्कृत तथा हिन्दी की वर्णमाला में से "ऋपानाम् मूर्धा।" संज्ञा, पु० (सं०) अंतस्थों का दूसरा और समस्त वर्गों में कामाग्नि, प्राग, पावक, सितार का एक २७ वाँ अक्षर, जिसका उच्चारण जिह्वान बोल | भाग-द्वारा मूर्धा के स्पर्श करने से होता है- रंक-वि० (सं०) दरिद्र, कंगाल, सुस्त, कंजूस, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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