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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- यथायोग्य यद्यपि यथायोग्य-पव्य० यौ० (सं० ) समीचीन, यथेष्ट-- वि० यौ० (सं०) जितना चाहिये उपयुक्त, यथोचित् , उचित, जैसा चाहिये उतना, मन-चाहा, पूर्ण, पूरा, पर्याप्त । वैसा, जथायोग्य । " यथा योन्य सब सन यथोक्त-अव्य० यौ० (सं०) जैसा कहा गया प्रभु मिलेऊ'-रामा० ।। । हो। "प्रतार्य थोक्तवत पारणान्ने"-रघु० । यथारथ -अन्य० दे० (सं० यथार्थ) उचित, यथोचित-वि० यौ० (सं० ) ठीक ठीक, जैसा चाहिये वैसा, जथारथ (दे०)। " गुरु उचित, उपयुक्त. समीचीन । करि बो सिद्धांत यह, होया यथारथ बोध" यदपि -- अव्य० दे० ( सं० यद्यपि ) यद्यपि । “ यदपि कही गुरु बारहि बारा"---रामा० यथारुचि-अव्य. यौ० (सं०) इच्छानुसार। यदा-अव्य (सं०) जिस समय जब, जहाँ । " कहहु सुखेन यथारुचि जेही"--रामा० । "यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत" यथार्थ-अन्य यौ० (सं०) वस्तुतः, उचित, - भ.गी। उपयुक्त, वास्तविक, जैसा चाहिये वैसा, यदाकदा--अव्य. यौ० (सं०) कभी कभी। ठीक ठीक । वि० (सं.) सत्य, वास्तविक, ठीक, यदातदा--अव्य० यौ० (सं०) जब तब । उचित । “करि यथार्थ सब कर सनमाना" यादि-अन्य० (सं०) अगर, जो। -रामा। यदिचेत- भव्य० यौ० (सं०) यद्यपि, अगरचे। यथार्थता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सचाई, यदीय-वि० (सं०) जिसका।। सत्यता, वास्तविकता, तथ्यता। यदु---संज्ञा, पु० (सं०) ययाति राजा के बड़े यथालाभ- वि० यौ० (स०) जो कुछ मिले पत्र जो देवयानी के गर्भ से उत्पन्न हुए उभी पर निर्भर थे ( पुरा जदः (दे०)। यथावत-प्रत्य० (स०) यथाचित, ज्या का यनुकुल-..रक्षा, पु० यौ० (सं०) यदुवंश, स्यों, जैसा था वैसा ही, भली-भाँति, जैसा ज ल (दे०) । चाहिये वैसा । यदुनंदन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण जी, यथाविधि-वि० यौ० (सं०) विधि के अनु जदुनंदन (दे०)। “ जबते बिछुरि गये सार, विधिपूर्वक । “ यथाविधि हुताग्नीनाम् यदुनंदन नहिं कोउ श्रावत जात"---सूर० । यदुनाथ---पंज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्रीकृष्ण जी। यथाशक्ति - श्रव्य. यौ० (सं० ) भरपक, यदपति-ज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्रीकृष्ण जी। जितना हो सके, सामर्थ्य के अनुसार, यदराई-यदुराय-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शत्तयानुसार। यथाशास्त्र-वि० यौ० (सं०) शास्त्रानुसार ।। .. यदुराज) श्रीकृष्ण जी। “अब तो कान्ह भये । यदुराई ब्रज की सुधि बिसराई "-कुं० वि०। यथासंभव-भव्य० यौ० (सं०) जहाँ तक यदुराज-यदुराय--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्री हो सके, संभवतः । कृष्ण जी। "अाज यदुराज लाज जाति है यथासाध्य-अव्य० यो० (सं० ) जहाँ तक समाज माहि-मना। साध्य हो, यथाशक्ति । यदुवंश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यदुकुल । यथास्थित- वि० यौ० (सं०) निश्चित, यदुकुटुम्ब, जदुवंस (दे०)। वि०-यदुवंशीय। सस्य, यथार्थ, स्थिति के अनुसार । यदुवंशमणि---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यदुवंशयथेच्छ-अन्य० यौ० (सं०) इच्छानुसार, भूषण, श्रीकृष्ण जी। मनमाना। यदुवंशी-संज्ञा, पु. (सं० यदुवंशिन् ) यादव, यथेच्छाचार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मनमानी, यदुकुल में उत्पन्न, यदुकुल का। स्वेच्छाचार, जो जी में आवे वही करना। यद्यपि-अव्य. यौ० (सं० यदि-अपि ) संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) यथेच्छाचारिता । अगरचे, हरचंद, यदपि, जदपि (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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