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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोतीझला, मोतीझिना मोरचा छाती पर मोती जैसे जल-भरे छोटे दाने | मोन--संज्ञा, पु० (दे०) पिटारा, डब्बा, निकलते हैं। झावा। स्त्री. मोनिया। " अमृत रतन मोतीझला-मोतीभिला--संज्ञा, पु० (दे०) मोन दुइ मूंदे"- पद्मा। छोटी शीतला का रोग, मंथरज्वर । मोना*-स० क्रि० दे० (हि. मोयना ) मोतीबेल-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( दि. भिगोना, मोवना । सं० पु० दे० (सं० मोणा) मोतिया --वेल ) मोतिया बेला ( पुष्प )। झाबा, पिटारा, डब्बा। मोतीभात-संज्ञा, पु. ( हि० ) एक तरह मोम-संज्ञा, पु.. (फ़ा०) शहद की मक्खियों का भात । के छत्ते का चिकना और नरम मसाला । मोतीसिरी-संज्ञा, खोल दे० यौ० (सं० वि० (दे०) मृदु, दयालु । मौक्तिक-श्री ) मोतियों की माला या कंठी।। मोमजामा---संज्ञा, पु० यौ० ( फा० माम+ मोथरा-वि० (दे०) कंडित, गोठिल, घोड़े गाल, बार जामा) मोम-लागा कपड़ा, तिरपाल । का एक रोग, हड्डी का रेग। मोमबत्ती-संज्ञा, स्त्री० यौ० (फा० माम+ मोथा-संज्ञा, पु० दे० ( ० मुस्तक ) नागर बत्ती - हि.) नोम या वैसे ही किसी अन्य मोथा, एक पौधे की जड़। “मोथा जायफल वस्तु की बत्ती जो प्रकाश के हेतु जलाई वंसलोचन मिलाइये"--.कु० वि० ला । जाती है। मोथी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) मूग जैसा एक अन्न। मोमियाई- संज्ञा, स्त्री० (फा० ) नकली मोद-संज्ञा, पु. (सं० ) हर्प, प्रसन्नता, शिलाजीत । "मोमियाई खिलाई गई हरदी" मानन्द, एक वर्णिक वृन (पिं०) सुगंधि, --मीर। महक । वि. मादी। मामी--वि० (का०) मोम का बना, मोम मोदक-संज्ञा, पु. (सं.) औपचादि का लई, मिठाई. चार नगण वाला एक वर्णिक वृत्त (पिं०)। संज्ञा, पु. (सं० ) हर्ष। । मोयन- संज्ञा, पु० दे० (हि. मैन=मोम) __माइते समय घाटे में घी मिलाना जिसमें यो०-मन-मादक-गन के लड्डू ) झूठे सुख की कल्पना । 'मन-मोदक नहिं उससे बनी वस्तु मुलायम हो जावे, मोवना। भूख बुताई"--रामा० । वि० ( ० ) मोरंग-संज्ञा, ६० (दे०) नैपाल का पूर्वीय प्रसन्न करने वाला। भाग। मोदकी-संज्ञा, स्त्री० [सं० ) एक तरह की गदा। मार -- संज्ञा, पु० दे० (सं० मयूर) मयूर नामक मोदना* ---अ० कि० दे० (सं० मोदन) प्रसन्न एक सुन्दर सतरंगा बड़ा पक्षी। स्त्री० मोरनी था खुश होना, सुगंधि फेलाना। स० क्रि० __ "बोलहिँ वचन मधुर जिमि मोरा"(दे०) हर्पित, प्रसन्न करन रामा० । *सर्व दे० (हि. मेरा) मेरा । " मोर मोदी-संज्ञा, पु० दे० (सं८ मेदिक) परचूनिया, मनोरथ जानहु नीके" -रामा० । पाटा-दाल धादि बेचने वाला बनिया। मोरचंदा--संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० मयूर मोदीखाना-~संज्ञा, पु० ० ( हि० मादी+ चंद्रिका) मोर-चंद्रिका, मोर पंख की चन्द्राखाना---फा०) अन्नादि का घर, भंडार, कार बूटी। जहां मोदी की दूकान हो। मोरचंद्रिका-ज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० मयूर मोधुक-संज्ञा, पु० दे० ( सं० मादक = चंद्रिका ) मोर पंख की चन्द्राकार बूटी। एक जाति ) मछुवा, धीवर, मछ्वाहा। मोर-चंदक (दे०)। मोधू-वि० दे० (सं० मुग्ध ) मूर्ख, भोंदू मोरचा-संज्ञा, 'पु. (फा०) लोहे का नंग, बेसमझ, बुद्ध । । नमी और वायु कृत रसायनिक विकार से वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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