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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१३ मुंडिया ANSWER देवी। मीरफ़र्श सब से प्रथम प्रतियोगता करने वाला ! (हि. मॅड+चीरना) एक तरह के मुसल"फरजी मीर न कै सके, टेढ़े की तालीर' मान भिखारी, जो अपने शरीर के किसी -रही भाग, सिर श्रादि को घायल करके लोगों मीरफर्श-संज्ञा, पु. (फा०) फर्श की चाँदनी को दिखाते और धन लेते हैं, लेने देने के कोनों पर रखे जाने वाले पत्थर । में अति हठ करने वाला। मीर मजलिस--संज्ञा, पु० यौ० अ०) सभा- मंडन-संज्ञा, पु० (मं०) १६ संस्कारों में से, पति, राजा, सरदार। गिर के बालों को उस्तरे से मॅड़ने की क्रिया, मीरास-पंज्ञा, स्त्री० [अ०) बपौती, नारका द्विजातियों के बालक के प्रथम सिर मुंड़ने (प्रान्ती०)। का एक संस्कार (हिंदू०)। मीरासी-संज्ञा, पु० ( अ० मीरास ) मुगल डना-अ० क्रि० दे० (सं० मुंडन ) मुंडा मान लोग जो गाने बजाने या मगखरेपन जाना, सिर के बालों का बनाया जाना, का काम करते हैं। स्त्रीभारासिन। लुटना. छला या ठगा जाना, घूमना।। मीन-संज्ञा. पु० द० ( अं० माइल ) प्राधे मंडमाला--- ज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) खोपड़ियों कोस की दूरी, पाठ फलींग या ११६० गज या कटे हुए पिरों का हार जो शिवजी या की दूरी । “किये राहेफना कोई न फर्मक कालीदेवी के गले का गहना है । है न मील"-जौक : संज्ञा. पु० दे० ( अं० मंडमालिनी--संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं०) काली मिल ) कार्यालय। मीलन--संज्ञा, पु० (सं.) संकुचित या बंद मंडमाली-ज्ञा, पु. यौ० सं० मुंडमालिन् ) करना, मींचना । वि०मिलनीय, पीलित। शिव जी।। मीलित-तिक (सं०) पम्मीलित, पिकोड़ा मंडा-संज्ञा, १० ( स० मुंडी) जिसके सिर में या बंद किया हुया । "उपान्तसम्मीलित- बाल न हों या मुड़े हुये हों, जो किसी लोचना नृपः"---रघु० । संज्ञा. पु.---एक साधु या योगी का शिष्य हो गया हो, अलंकार जहाँ एक होने से उपमेय और बिना सीगों का सींगदार पशु, मात्रा और उपमान में श्रभेद या भेद का न जान पड़ना ऊपर की लकीर से रहित एक महाजनी कहा जावे (श्र० पी०)। लिपि, गुडिया (दे०)। एक प्रकार का जूता । मगरा-संज्ञा. पु० दे० (सं० मुद्गर ) काठ संज्ञा, पु० (दे.) एक असभ्य जाति जो छोटाका हथौड़ा-जैमा श्रौजार । स्रो०-गरी। नागपुर के पास-पास पाई जाती है। स्रो०संज्ञा. पु० दे० (हि. मोगरा ) नमकीन मंडी। बंदिया! अंडाई ---ज्ञा, स्त्री० दे० ( हि. मॅडन पाईमंगोरा--- संज्ञा, पु० द० ( हि० मंगबरा) प्रत्य० ) मड़ने या मड़ाने की क्रिया या मॅग के बरे, बड़े। मँगौरी- संज्ञा, सी० दे। यौ० ( हि० मॅग- संडासासंज्ञा, पु० दे० (हि. मुंड = सिर बरी ) मग की बनी हुई बरी +प्रासा-प्रत्य. ) सिर का साना । मुंड-- संज्ञा, पु० (सं०) अॅड. सिर. यसुरेश अडिया--- संज्ञ', पु० दे० (हि० मँड़ना ---इयाशंभ का सेनापति, एक दैत्य जिसे दुर्गा प्रत्य. ) साधु या सन्यासी का चेला, साधु जी ने मारा था. पेड़ का मॅर, राहु ग्रह, कटा लन्यासी ! संज्ञा, स्त्री० (दे०) महाजनी लिपि, सिर, एक उपनिषद वि० संडा-मड़ा हुथा। गुड़ या सिर । लो--मन मन भान, Kडचिरा, गडचिरया संज्ञा, पु० यौ० दे० मड़िया ढुला। मजदुरी। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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