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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारुतात्मल मालकोश marnamasomascreesmoanamansamacamerameen -wa0ecememourna मारुतात्मज, वायुपुत्र, हनुमान जी । मार्जनी--- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) झाड़, बढ़नी। " मारुतसुत मैं कपि हनुमाना"-रामा। सारि--संज्ञा, पु. (सं.) बिल्ली, बिलाव । मारुतात्मज-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) मारुत- स्त्री. राजगिरी।। तनय, वायुपुत्र, हनुमान। मार्जित---वि. ( सं० ) शुद्ध या साफ किया मारू - संज्ञा, पु. ( हि० मारता ) युद्ध में हुआ। बजाने और गाने का एक राग, जुझाऊ, मातंद --- झा, पु० (सं०) मृतंडा के पुन बड़ा डंका या धौंसा । संज्ञा, पु० द० (सं० सूर्य देव । मरुभूमि ) मरु देश या रेगिस्तान का मार्दव.. संज्ञा, पु० (१०) कोमलता, मधुरता, निवासी " मारू पाय मतो सम ताहि मृदुता, अहंकार का त्याग, दूसरे को दुःखी पयोधि "- वि०। ( हि० मारना ) मारने देख दुखी होना, सरलता। वाला, कटीला, हृदय-बेधक। माफ़ - अव्य० (१०) जरिये से या द्वारा। मारे-वि० दे० (हि० मारला ) हेतु से, मामिल - वि० (सं० ) जिसका प्रभाव मर्म कारगा से। पर पड़े, मर्म-संबंधी, विशेष प्रभावशाली। माकंडेय-संज्ञा, पु. (सं० मृकंडा ऋषि मामिला--संज्ञा, सौ. (सं०) मार्मिक होने के पुत्र जो अपने तपोबल से अमर हैं। का भाव, पूर्ण अभिज्ञात।। मार्का-संज्ञा, पु० द. ( हि० मारका ) मारका, चिह्न। माल- ---संज्ञा, पु. ६० (सं० मल्ल) पहलवान मार्ग संज्ञा, पु. ( सं०) प्राग (दे०) पंथ. मल्लयुद्ध करने या कुश्ती लड़ने वाला। राह, रास्ता, मार्गशीर्ष या श्रगहन का - ज्ञा, स्त्री. १० (सं० माला ) हार, महीना, मृगशिरा नक्षत्र । माला. चरने में कुये को घुमाने वाली मार्ग-सज्ञा, पु. (सं०) याण, शर, डोरी, पति, पक्ति । . उर तुलसी की अन्वेषण, खोज । “विकाशमीयुर्जगताश माल -तु० । संज्ञा, पु. (अ.) धन, मार्गणाः "-किरात । विजागणाय.. संपत्ति, अच्छा स्वादिष्ट भोजन, या पदार्थ । वि० मार्गी। सुहा--पाल चारना या मारनामार्गन*-संज्ञा, पु० दे० (२० मार्गमा ) दूसरे की सपत्ति हर पना, दूसरे का धनादि वाण, खोज। दया बैठना । मामत्री, अन्नबाब, सामान । मार्गशीर्ष-संज्ञा, पु० (सं०) अगहन मास। यो०-मालटाल-धन-संपत्ति । यौ० माल"मासानाम् मार्गशीर्षोऽहम् ---भ.गी। सवाच, मालमना। पूंजी, मोल लेने मार्गी- संज्ञा, पु. (सं० मार्गन् ) यात्री, या बेचने का पदार्थ । कर या महसूल का बटोही, पांथ, पथिक । वि० --किसी वक्री धन, फसल की पैदावार, कीमती वस्तु, ग्रह का फिर अपने मार्ग पर या जाना। गणित में वर्ग का धान या अक, वह पदार्थ मार्च-संज्ञा, पु. (अ.) चलना, फर्वरी जिसस कोई वस्तु बनी हो । के बाद का महीना। मालगुनी-- संज्ञा, स्त्री० (हि. ) एक लता मार्जन-संज्ञा, पु० (सं०) नारजन (दे०) जिसके बीजों से तेल निकाला जाता है। सफ़ाई, नहाना, धोना, मांजना, अभ्याए मालकोश---संज्ञा, पु. ( सं० ) संपूर्ण जाति करना। का एक राग, कौशिक राग (संगी०) किसी मार्जना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पफ़ाई, तमा। किसी ने के रागों के अंतर्गत इसे भी वि० मार्जनीय। __ माना है ( हनुमत् ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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