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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- - arwesaa m aan मान-सम्मान १३९८ मानुषी "कृतारि षडबर्ग जयेन मानवीमगम्यरूपां माना---- संज्ञा, पु० दे० (इ० ) एक तरह पदवीं अपित्सुना ''-किरा० । का दस्तावर मोठा निर्यास । *--स० क्रि० मान-सम्मान संज्ञा, पु. यो सं०) आदर- दे० (सं० मान) नापना, जाँचना, तौलना । सत्कार, प्रतिष्ठा। अ० कि० (दे०)-समाना, अमाना ! स० कि. मानस-संज्ञा, पु० (सं०) चिन, हृदय, मन, । मान लिया। "हमने माना कि पढ़ाना है कामदेव, मानसरोवर, संकल्पविकल्प, दूत, बहुत अच्छा काम "-स्फुट । मनुष्य । वि०-विचार, मनेभिाव, मन से मानिंद - वि० (फा०) सदृश, तुल्य, समान, उत्पन्न । क्रि० वि० -मन के द्वारा । “बसहु बराबर ! रामसिय मानस मोरे"-विनय० । “बरु मानिक- संज्ञा, पुरु द० (पं० माणिक्य ) मराल मानस तजै"-तु० । माणिक, लाल रंग का एक रन, पद्मराग । मानसपुत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जो पुत्र “मानिक मरकत कलिय पिरोजा"-रामा०। इच्छा मात्र से उत्पन्न हो (प्रा.)। मानिकचंडी -- संज्ञ, स्वी० (हि०) मानिकचंद मानसर-मानसरोवर-संज्ञा, पु० दे० यौ० एक छोटी और स्वादिष्ट सुपारी । ( सं० मानस् । सरोवर ) एक बड़ी झील जो | मानिकरत--संज्ञा, स्त्री० (दि.) गहने माफ हिमालय के उत्तर में है। । करने का मानिक का रेत या चरा। मानसशास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० सं०) मनोविज्ञान। मानित-वि० (सं० प्रतिष्ठित, सम्मानित । मानस हंस-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मान- मानिनी- वि० स्त्री० (मं०) मानवती. गर्यसरोवर के हंस, मानहंस, एक वृत्त (पिं०) । वती, रुटा, नापक का दोष देन उस पर 'जय महेश-मन मानस-हंसा".--रामा० । रूठी हुई नायिका माहि.) " मानिनी न मानसिंह--संज्ञा, पु० (सं०) 'अम्बर के राजा मानै लान पापुहि पग धारिये".--.स्पूर० । और सम्राट अकबर के सेनापति जिन्होंने 'मानिनी साननिगसे". मात्र । पठानों से बंगाल जीतकर ग्रहबर के श्राधीन मानी-- वि० (सं० मानिन ) अभिमानो, किया और काबुल में भी विजय प्राप्त की घमंडी, संमानित, मानने वाला ( यौगिक थी ( इति०)। में ) जैसे -- भटमानी. पंडितमानो। संज्ञा, मानसिक-वि० (सं०) मन-संबंधी, मनका। पु० - जो नायक नायिका से अपमानित मन की कल्पना से उत्पन्न । होकर रूठ गया हा। स्त्री.मानिना। मानसी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) वह पूजा जो संज्ञा, स्त्री. (ग्र०) अर्थ, तात्पर्य मतलब । मन ही मन की जाय, मन संबंधी, एक विद्या मानुख, मानुप*----संज्ञा, पु० दे० (सं० देवी । वि० - मन का, मन से प्रगट। मनुष्य ) मनुष्य । “कहूँ महिख मानुख मानहंस, मनहंस --प्रज्ञा, '. (सं०, एक धेनु खर अजया निपाचर भच्छहीं " रामा। छंद (पिं०)। मानुपिक-वि० (रां०) मनुष्य-सम्बन्धो, मानहानि--संज्ञा, स्त्री० यौ० सं०) अपमान, मनुष्य का, मनुष्य के योग्य ।। अनादर, अप्रतिष्ठा, बेइज्जती, हतक-इज्जत। मानुपी-वि० ( सं० ) मनुष्य का । मानहुँ, मन हुँ*----अव्य० दे० ( हि० माना ) मानुपीय (सं०) मनुष्य-संबंधी । सोaमाना, गोया, जैसे, ज्यों । स० कि. (दे०) मानुपी । संज्ञा, पु० (सं०) मनुष्य, मनुज, मानता हूँ। "मानहुँ लोन जरे पर देई” आदमी, मानुस, मानुस्ख, मनम, मन्नुप -रामा । (ग्रा.)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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