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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir i ommanduERAMANA Dummercur मनोरा १३७० ममली वर्णिक छंद जो भार्या का ५७ वाँ भेद है मनाहरता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुन्दरता। (चंद्रा) १० वर्णों का एक वर्णिक छंद मनोहरनाई- संज्ञा, स्त्री० (दे०) मनोहरता (पिं०) १४ वर्णों का एक वर्णिक छंद (केशव) (सं.)। दोधक छंद (केश०) १० वणों का एक मनाहगा-संज्ञा, सी० द० (सं० मनोहरता) वर्णिक वृत्त (सूद०) स्त्री, गोरोचन, कौमुदी __ मनोहरता. सुन्दरता । की टीका (व्या०) । न को मुदी भाति मनाहारा--वि० (सं० मनोहारिन ) मन को मनोरमाम् विना'-स्फुट। हरनेवाला, मनोहर ! खोमनाहारिणी । मनोरा--संज्ञा, पु० दे० (सं. मनोहर) मनोनिया-संज्ञा, पु. द० ( हि० मनौती) दीवाल पर गोबर के चित्र, गोबर की मूर्तियाँ मनौती मानने वाला, प्रतिभू, जामिनदार । (दिवाली के बाद बनती और पूजी जाती हैं) नीती -सज्ञा, स्त्र द० ( हि० मानना ) झिझिया स्त्री० । यौ० ---मनोरा झमक-- मनत, मानता, देव पूजा, जामिनी। एक तरह का गीत । । मन्नत-संज्ञा, स्त्री० (हि० मानता ) मानता, मनोराज-संज्ञा, पु० दे० ( सं० मनोराज्य ) मनोती, अभीष्ट-पूर्ति पर किसी देवता की मन की कल्पना, मानसिक कल्पना। पूजा का संकल्प । मुहा०--मन्नन उतारना मनोलोल्य--संज्ञा, पु. (सं०) मन की वा चढ़ाना-- पूजा मानने की प्रतिज्ञा पूरी चंचलता, लहर, तरंग, मानसिक भाव ।। करना । मन्नत मानना--यह प्रतिज्ञा मनोवाँछा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (०) इच्छा, करना कि इस कार्य के हो जाने पर इस अभिलाषा, मनोकामना। देवता की यह पूजा की जावेगी। मनोवांछित-वि० यौ० (सं.) चित चाहा, मन्वंतर --- संज्ञा, पु. यो० (सं० मनु-+-अंतर) ईप्सित, अभीष्ट, मनमाँगा, इच्छित, ७१ चतुर्युगी के बीत या व्यतीत होने का भभिलषित। समय, ब्रह्मा के १ दिन का १४ वाँ भाग। मनोविकार- संज्ञा, पु० यौ० (२०) मन के सम-सवं० (सं०) मेरा', मेरी, मेरे, अहम का भाव, विचार या विकार-जैसे, काम. क्रोध, पटी के एक वचन का रूप । " तस्व प्रेम लोभ, दया, मोह. ईर्षा आदि । कर मम अरु तारा"..--रामा० मनोविज्ञान--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह ममता--संज्ञा, स्त्री० (सं०) मेरापना, शास्त्र जिसमें मन की वृत्तियों को विवेचना अपनापन, ममत्व, प्रेम, मोह, लोभ, हो । संज्ञा, पु०, वि० (सं०) मनी बैज्ञानिक । वात्सल्य, छोह, माता का पुत्र पर प्रेम । मनोवृत्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मनो. ममत्व- संज्ञा, पु. (सं०) ममता, मोह, विकार। अपनापन, मेरापन। मनोवेग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मनोविकार । मनोव्यापार--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विचार । | ममास, ममान --संज्ञा, पु० दे० (सं० मनोसर --- संज्ञा, पु० यौ० (सं० मन ) मातुल - वास ) मवास, शरण, शरण की मनोविकार। जगह, मामा का घर। मनोहत - वि० (सं०) व्यग्र, अस्थिर। ममियाउर, ममियौरा -- संज्ञा, पु० दे० मनोहर-वि० यौ० (सं०) सुन्दर, मनहरण, (सं० मातुल - गृह) मामा का घर, ममाना । मन को प्राकृष्ट और वश में करने वाला । ममीरा--संज्ञा, पु. ( अ० मामीरान ) एक संज्ञा, स्त्री. मनोहरता। संज्ञा, '[.-छप्पय | पौधे की जड़ जो नेत्र रोग की परमौषधि है। छंद का एक भेद (पिं०)। ममली-वि० दे० (म०) मामूली, साधारण । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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