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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्री - १३५० मंसा-मनसा मंत्री--संज्ञा, पु. ( सं० मंत्रिन् ) सलाह या मंदाकिनी-संज्ञा, स्रो० (सं० ) स्वर्गगंगा, परामर्श देने वाला, राज्य कर्मों में राय | __ अाकाश-गंगा,चित्रकूट के पास की पयस्विनी देने वाला,सचिव, अमात्य : जामवंत "मंत्री नदी. १२ वर्णों का एक वृत्त ( पि०)। अति बूढ़ा ।" रामा० " मंदाकिनी नदी घम नामा” रामा० । मंथ-संज्ञा, पु. (सं०) बिलोना, मथना, मंदाकांता-संज्ञा, श्री. (सं०) १७ वर्णों का हिलाना, ध्वस्त करना, मलना, मारना, एक वर्णिक छंद (वि०) १० और ८ वर्णो पर बिलोड़ना, मथानी। यति के साथ एक नगण, दो भगण, दो मंथन-संज्ञा, पु० (सं०) मथना, बिलोना, तगण और दो गुरु से १८ वर्षों का छंद । अति खोजना, तत्वान्वेषण पता लगाना, मंदाग्नि---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) भोजन मथानी । (वि० संथनीय, मंथिन)। । न पचने का रोग, अपच, बदहज़मी। मंथर-संज्ञा, पु० (सं०) मथानी, मंथ ज्वर । मंदार ----संज्ञा, पु० (सं०) स्वर्ग का एक देववि० -- महर, सुस्त, मंद, जड़, मूर्ख, भारी, क्ष, मदार, (दे०) प्राक, मंदराचल, "बैकुंठ, नीच । यौ० मंथर ग्रह-शाने । हाथी । “स्फुररपुंदोदार मंदार दाम --- मंथरा--संज्ञा, स्त्री० (सं०) कैकेयी की दासी -~-लो। जिसके बहकाने से कैकेयी ने राम-बनवास, कराया था। "नाम मंथरा मंद-मति, चेरि मंदारमाला- संज्ञा, स्त्री. (सं०) २२ वर्गों का एक वर्णिक छंद ( पि०), कैकयी केरि".-रामा०।। मंथान--संज्ञा, पु० (सं०) एक वर्णिक छंद मंदिर-मंदिल-संज्ञ', पु. (सं०) मकान, ___घर, देवालय । “मदिर मंदिर प्रतिकर सोधा" (पि०) मथना। मंद-वि० (सं०) सुस्त, धीमा. शिथिल, ___ - रामा० । भालपी, मूर्ख, दुष्ट. कुबुद्धि । 'मंद मंदी - संज्ञा, स्त्री. ( हि० मंद ) किसी वस्तु महीपन कर अभिमान' र मा० । संज्ञा, का भाव गिर जाना या उतरना, सस्ती स्त्री०-मंदता। (विलो०-महँगी)। मंदभाग्य-वि० यौ० (सं०) अभाग्य, दुर्भाग्य मंदोदरी- संज्ञा, स्त्री. (सं०) मय दानव की मंदर-संज्ञा, पु० (सं०) एक पर्वत जिससे कन्या और रावन की पटरानी, भँदादरि, देवताओं ने समुद्र मथा था (पुरा०), स्वर्ग, मंदाव, मंदोबरि (ग्रा.)। मंदार, दर्पण, एक वर्णिक छंद (पिं०)। मंद्र--संज्ञा, पु० (सं०) स्वरों के ३ भेदों में से वि०-धीमा, मंद, सुस्त । " बाल मराल एक गहरी ध्वनि (संगी०)। वि० सुन्दर, कि मंदर लेही '--रामा०। मनोरम, प्रसन्न, धीमा, गंभीर, (शब्दादि )। मंदरगिरि-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) मंदराचल। मंसब---संज्ञा, पु. ( अ०) स्थान, पद, पदवी, मँदरा--वि० दे० ( सं० मंदर ) नाटा, बावन, . काम, अधिकार, कर्तव्य ।। ठिनगिना । मंसबदार-संज्ञा, पु. (अ.) मुगलों के मंदरा---संज्ञा, पु० दे० (सं० मंडल ) एक राज्य में एक पद । संज्ञा, स्त्री० मंदबदारी। बाजा। मंदराचल- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मंदर मंशा-संज्ञा, स्त्री. (अ. भि० सं० मनस) पर्वत अभिरुचि, इच्छा, चाह, श्राशय, मतलब, मंदा - वि० दे० ( सं० मंद ) सुस्त, धीम, अभिप्राय, प्रयोजन, मंसूबा ।। थालपी, कम दाम का, साता, निकृष्ट, मंसा-मनमा--संज्ञा, 'नो० दे० ( अ० मंशा ) बुरा, माँदा, थका, शिथिल । स्त्री० मंदी। अभिरुचि, इच्छा, मतलब, प्राशय । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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