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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | माँड़ । मंजन १३४८ मँडरना विशाल"-रामा० । यौ० रंगमंच-नाटकादि मंजर - वि० (अ०) स्वीकृत, स्वीकार । संज्ञा, के खेलने का ऊँचा स्थान । स्त्री० मंजरी। मंजन-संज्ञा, पु० ( सं० मज्जा ) दाँत उजले मंजरी-संज्ञा, खं० ( अ० मंजूर । ई-- करने या माँजने का चूर्ण, स्नान, मजन । प्रत्य० ) स्वीकृति, मानने का भाव । "मंजन करि सर सखिन समेता"-रामा०। मंजूषा----संज्ञा, स्त्री० (सं०, पिटारी, संदूक, मॅजना-अ. क्रि० दे० ( हि० मांजना) पिंजड़ा डिब्बा । माँजा जाना, अभ्यास या मश्क होना, संभा-- वि० दे० (सं० मध्य ) बीचों सफ होना, निखरना । प्रे० रूप मँजाना, बीच का । संज्ञा, पु. द० ( सं० मंच ) बाट, मजवाना। पलंग : संज्ञा, पु० हे. (माझा) पेड़ी, बीव मंजरी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) फूलों की बाल, का भाग, पतंग की डोरी का कलप । बेल, लता, कोंपल, नया कल्ला, श्राम की मार, मभारा-क्रि० वि० दे० (सं० मध्य) बौर। बीच में। मंजार, मँजार-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मझियारी-वि० दे० (सं० मध्य) बीच का। मार्जार ) बिल्ली, सिंह न चहा हनि सक, मंड-- संज्ञा, पु. (सं०) भात का पानी, मारै तोहि मँजार"--नीति.।। मंजिष्ठ, मंजिष्ठा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) मजीठ, मंडन---संज्ञा, पु० सं०) सँवारना, सजाना, मैंजीठ । “मदारोध्र विल्वाब्द मंजीष्ट, शोभा देना, शोभिन होना, प्रमाणों के द्वारा वाला"-लो। अपने पन की पुष्टि करना । (वि.संडनीय, मंज़िल-संज्ञा, स्त्री० (अ०) सरॉय, पड़ाव, र) (विलो० -- बंडन)। "खंडन मंडन घर का खंड, यात्रा में ठहरने पा उतरने का की बातें सब करते सिखी लिखाई" -- स्थान । “वही मंज़िल है जहाँ ठहरै हयाते । मिश्र बंधु । एक प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान, गुज़राँ"-जौक । मंडन मिश्र, जिन्हें शास्त्रार्थ में श्रीशंकराचार्य मंजौर-संज्ञा, पु० (सं०) मंजीरा (दे०) ने पराजित कर बौद्ध धर्म को हराया था। घुघुरू, पायजेब, नूपुर, एक बजा । " बाजत मंडना*... स० कि. ( सं० मंडन ) सजाना, ताल मृदंग झाँझ डफ मंजीरा सहनाई" भपित करना, युक्ति से अपने पक्ष को पुष्ट करना, भरना। "जिन रघुकुल मंडेउ हर-धनु मंजु-वि० (सं०) सुन्दर, मनोहर, साफ । खंडेउ पीय स्वयंवर माँझ वरी"-राम । संज्ञा, स्रो०-मंजुता । “ मंजु विलोचन स० क्रि० द० ( सं० मर्दन ) दलित या नष्ट मोचति वारी"---रामा० ।। करना। मंजुघोष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) एक बौद्ध मंडप -- संज्ञा, पु० (०) टिकने का स्थान, श्राचार्य, मंजुश्री, सुन्दर शब्द ।। विश्राम-स्थान, बारहदरी, यजस्थल, देवमंजुल-वि० (सं०) सुन्दा, मनहरण, मंदिर, शामियाना, दोवा, उत्सवादि मनोहर । “मंजुल मंगल-मल वाम अंग के लिये बाँय श्रादि से बनाया गया स्थान । फरकन लगे"--- रामा० । संज्ञा, स्रो०-- "जेहि मंडप दुलहिन वैदेही". रामा० । मंजुलता। मंडर--संज्ञा, पु० दे० (सं० मंडल) गोला। मंजुशी-संज्ञा, पु. (सं०) मंजुघोष । संज्ञा, मंडरना-अ. क्रि० दे० (सं० मंडल) चारों स्त्री० यौ० (सं०) मनोहर कान्ति । ___ओर घूमना, मसराना, चारों घोर से घेर For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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