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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भृगुनाथ १३४० भेदकातिशयोक्ति भृगुनाथ-संज्ञा, पु. यौ० (0) भृगुपति, भंवना-स० कि० दे० (हि. भिगाना) परशुरामजी । “जो हम निर्हि विप्र वदि, भिगोना । सत्य सुनहु भृगुनाथ"-- रामा० । भेउ, भेव*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० भेद) भृगुनायक-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) परशुराम। भेद, रहस्य । भृगुपति-संज्ञा, पु० यौ० पं.) परशुराम । भेक-संज्ञा, पु० (सं०) मेंढक । “ कबहूँ भेक "भृगुपति परशु दिखावहु मोहीं'--रामा । न जानहीं. अमल कमल की बास।" भृगुमुख्य -- संज्ञा, पु. यौ० (सं.) भृगुवर, भैय--संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेप ) रूप, वेष । परशुराम, भृगुथे। भेखज* -- संज्ञा, पु. द० ( मं० भंपन) भृगुरेखा, भृगुलता--- संज्ञः, स्वी० यौ० "ग्रह, भेखज, जल, पवन, पट. पाय सुयोग (सं०) भृगुमुनि के पद प्रहार का विष्णु कुयोग'"--रामा० । भगवान की छाती पर चिह | "हिये भेजना---स० कि० दे. (सं० वजन ) किसी विराजति भृगुलता, त्यों बैजंती माल--- व्यक्ति या वस्तु को कहीं से कहीं ग्वाना करना. पठाना, पठवाना । द्वि० रूप-भेजाना भृगुसंहिता-संज्ञा, पु. यो० (सं०) भृगुमुनि प्रे० रूप भेजवाना। कृत एक प्रसिद्ध ज्योतिष-ग्रंथ । भेजा--संज्ञा, पु. (दे०) मगज़, दिमाग, भृत--संज्ञा, पु० (सं०) दास, संवक । वि० . मस्तिष्क, खोपड़ी के भीतर का गृदा सा. (सं०) पूरित, भरा हुआ. पालापोषा हुआ, भ, अ० क्रि० ( हि० भेजना ) पटाया। ( यौगिक में ) जैसे---पररात। भंड भेडी---संज्ञा, सी० द० (सं० भष) भृति-संज्ञा, स्त्री. (सं.) चाकरी, नौकरी, गाडर बकरी जाति का एक छोटा चौपाया । मज़दूरी. तनख्वाह, वेतन, दाम, भरना, मुहा० --- भेड़िया धसान --- फल को मूल्य, पालना, पोषना।। बिना सोचे-समझे दूसरे का अनुकरण या भृत्य-संज्ञा, पु० (सं०) नौका । स्त्री० भृत्या। अनुसरण करना। भृश -- क्रि० वि० (सं०) अधिक, बहुत ।। भंगा-वि० (दे०) टेढ़ी या तिरछी आँख भेडहा-- संज्ञा, पु० (१०) भेड़िया । वाला, ऐंचाताना. ढेरा (ग्रा.)! 'भेडा-ज्ञा, पु. (हि. भंड़ ) भेड़ का नर, भंट-- संज्ञा, स्त्रो० (हि. नंटना ) मिलाप, मेढ़ा, मेष । स्त्री० भेड़ी । वि० (दे०) भंगा। मेल, मिलन, मुलाकात, दर्शन, उपहार, भेड़िया --- संज्ञा, पु० ६० ( हि० भेड़ ) कुत्ता नज़र या नज़राना । " तामां कबहु भई होइ जैसा म्यार जाति का एक मांसाहारी बनैला भेटा।" कीन्ह प्रणाम भेट धरि भागे"- जंतु, भेड़हा, जनाउर, जड़ाउर (ग्रा० । रामा०। भेद-संज्ञा, पु० (सं०) छेदने या भेदने की भेंटना -स० कि० (हि. भेट ) भिलना, क्रिया, शत्रु-पक्ष के लोगों को फोड़कर अपनी थालिंगन करना, मुलाकात करना, गले थोर मिलाना या उनमें फूट करा देना, लगाना । स० रूप-भेंटाना. भिंटाना, प्रे० विभेद, रहस्य, मर्म, तात्पर्य, अंतर, प्रकार । द्वि० रुप भेटवाना । “भेटेउ लखन ललकि 'भेद हमार लेन मठ श्रावा'"-रामा० । लघुभाई"-रामा। भेदक-वि० (सं०) भेदने या छेदने वाला में:--सज्ञा, स्त्री० (दे०) भेटी । * संज्ञा, स्त्री. रेचक, दस्तावर (वैट)। (दे०) बाधा। मुहा०-मंड मारना- भेदकातिशयोक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) किसी कार्य की सिद्धि में बाधा डालना। एक अर्थालंकार, जिसमें और औरै शब्दों के For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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