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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अबाधा १२१ अबेध अबाधा-वि० (हि०, सं० अबाध ) वाधा- वि० (अ+वीर ) जो वीर न हो, विहीन, अबाध, निर्विघ्न । " कढिगो अबीर पै अहीर तो कह नहीं" (दे०) अबाधू। -पद्माकर। अबाधित --वि० ( सं० ) वाधा-रहित, " तौलौं तकि बीर लै अबीर-मूठ मारी बेरोक, स्वच्छंद, स्वतंत्र, निर्विघ्न । है"-सरस। अबाध्य-वि० (सं० ) जो बाध्य न हो, अबीरी-वि० ( अ ) अबीर के रंग का, बेरोक, जो रोका न जा सके, अनिवार्य । कुछ श्यामता लिये हुए लाल रंग। अचान -वि. दे. (सं० अ-न-बाना--- संज्ञा, पु० अबीरी रंग। हि० ) शस्त्र-हीन, बिना हथियार के, " मुख पै फबी है पान-बीरी की फबीली निहत्था- (दे०) निरस्त्र, बिना टॅव या फाब, रुख पै अबीरी श्राब महताब स्वभाव के। मोहै हैं "--रसाल। प्रधानक-वि० दे० बिना बनाव के, बना- अबुद्धि-संज्ञा, पु. ( सं०) बुद्धि हीन, वट-रहित । निर्बुद्धि, मूढ़, मूर्ख । प्रबानी-वि० दे० (सं० अ---वाणी) बिना वि० अबोध, नासमझ । बाणी के, वाणी-रहित, बुरी वाणी, | वि० अबुद्ध - अचैतन्य । बदज़बान । अबुध-वि० ( सं० ) मूर्ख, अज्ञानी, प्रबाषील-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) काले रंग | अनारी, अपंडित। की एक चिड़िया, कृष्णा, कन्हैया। अबूझ-वि० दे० ( सं० अबुद्ध ) अबोध, प्रबार - संज्ञा, स्त्रो० (सं० अ-+-बला) नासमझ, नादान, अज्ञानी, जो बूझा या देर, बेर, विलम्ब । जाना न जा सके। " श्राई छाक अबार भई है "- सूबे० ।। " अजगव खंड्यो ऊख जिमि, अजौं न बूझ कि० वि० शीघ्र । अबूझ "-- रामा०। " तुमको दिखावहिं जहँ स्वयंबर होनहार अबूत -कि० वि० (दे० ) वृथा, व्यर्थ, प्रबार"। फ़जूल। वि० ( हि० अ-बाल, आबाल) बाल-रहित, वि० दे० (अ+बूत ) बिना बल के, बाल बच्चों के साथ। असमर्थ, अशक्त । प्रवास -- संज्ञा, पु० (सं० श्रावास) रहने “नाम सुमिरि निरभय भया, अरु सब भया का स्थान, घर, मकान, भवन । अबूत"--कबीर। वि० अबासित। वि. हि. ( अ- बास ) निवास-हीन. बास अबे-प्रव्य० (सं० अयि ) अरे, हे, (छोटे या रहन न होना, सुगंधि-रहित, बुरा गंध । या नीच के लिये संबोधन )। प्रवासना-वि० (दे०) वासना-विहीन । मु०-बे-तबे करना-निरादर-सूचकअबिरल-वि० (सं० अविरल ) घना, जो बचन कहना, कुत्सित शब्दों का प्रयोग विरल न हो। करना। कि० वि० लगातार, बराबर । अबेग-वि० (दे० ) वेग-रहित, शीघ्र नहीं अबीर-संज्ञा, पु. (अ.) रंगीन बुकनी अबेगि ( ब्र०)। गुलाल, या अबरक का चूर जिसे होली में अबेध-वि० (दे० ) अनबिधा, नो छिदा लोग एक दूसरे के ऊपर डालते हैं। न हो, बिना बेधा हुआ, अबेधा । मा०२० को०-१६ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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