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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीरउ १२८६ बुकचा कौतुक दिखाऊँ चलि परे कंज द्वारी के"--. नाप साठ संवत्सरों का एक तिहाई भाग हठी । " ऐरी मेरी बीर जैसे तैसे इन (ज्यो०)। " बीसी विस्वनाथ की सनीचरी आँखिन सों, कढि गो अबीर पै अहीर तौ। है मीन की" - कविः ।। कलै नहीं" - पद्मा० । कलाई और कान का बीह*- वि० दे० (सं० विंशति ) बीस। एक गहना, तरना, बीरी, चरागाह ।। । “साँचहुँ मैं लबार भुजबीहा"-रामा । बीरउ*-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बिरखा ) बीहड़-वि० दे० (सं० विकट ) ऊँचा-नीचा पेड़। जंगल, उबड़-खाबड़, विकट, विषम । बीरज *-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वीथ्य ) बल, बुंद--संज्ञा, पु० दे० ( सं० बिंदु ) बँद, तरा। पुसत्व, पराक्रम, बीज, बिया। ___ "बुद-प्रघात सहैं गिरि कैसे"-रामा० । बीरता-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वीरता ) बहा- बुदका-सा । बँदकी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विदु+कोदुरी, शूरता । "कीरति विजय बीरता भारी, प्रत्य०) छोटी गोल बिंदी, छोटा गोल धब्बा -रामा०। | या दाग़ । वि० बँदकीदार । बीर-बहटी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वीर बधूटी) । बंदा-संज्ञा, पु० दे० (सं० विदु ) बुलाक । जैसा कान का एक गहना, लोलक इन्द्रवधू, एक लाल बरसाती छोटा कीड़ा। (प्रान्ती०) मस्तक पर की टिकुली। बीरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० वीर ) भाई, बँदिया-संज्ञा, स्त्रो० दे० ( हि० बँदी ) छोटी राजा बीरबल, वीर। बंदे, एक मिष्ठान्न । बीरा*-संज्ञा, पु० दे० (सं० बीड़ा ) देव- बोटार-वि० दे० ( हि० बूंदी + दार फ़ा.. प्रसाद के रूप में दिया गया फल-फूल, पान | प्रत्य० ) जिस पर छोटी छोटी बिंदिया हों। का बीडा। वि० (दे०) बीर । बुंदेलखंड-संज्ञा, १० यौ० ( हि० बंदेला+ बीरासन-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० वीरासन) खंड) बाँदा, जालौन, झांसी का प्रदेश, जहाँ बीरों की बैठने का ढंग या श्रासन । 'जागन पहले बंदेलों का राज्य था। लगे बैठि बीरासन”-रामा० । बीरी*-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बीड़ा ) पान बुंदेलखंडी- वि० दे० (हि० बुदेलखंड + ई०-प्रत्य०) बुंदेलखंड का, बंदेलखंड संबंधी। का बीड़ा, कान का एक गहना, तरना। संज्ञा, पु०-बुंदेलखण्ड का निवासी । संज्ञा, (प्रान्ती०)। "खाये पान-बीरी सी"-पद्मा स्त्री०-बंदेलखण्ड की बोली या भाषा। बीरो, बीरौ-संज्ञा, पु० दे० ( हि० पिरवा) बंदेला-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बँद + एलापेड़, वृक्ष, बिरवा, रूख (ग्रा०)। प्रत्य०) क्षत्रियों की गहरवार जाति की बीस-वि० दे० (सं० विंशति ) जो गिनती एक शाखा, बंदेलखण्ड का निवासी। में उन्नीस से एक अधिक हो। संज्ञा, पु. बंदोरी, बंदौरी --संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० (दे०) बीस का अङ्क या संख्या, २. बूद-+मोरी-प्रत्य०) बूंदी या बुदिया नाम महा०-बील विस्वे (बीसौ बिसे)- की एक मिठाई। निश्चय, ठीक, संभवतः । श्रेष्ठ, उत्तम, अच्छा । वा. बुवा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बाप या बीसा-संज्ञा, पु० (दे०) बीप नाखून वाला पिता की बहिन, फूफी, बड़ी बहिन । कुत्ता, बिसहा (ग्रा.), वैश्यों की एक बुक-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अं० बकरम ) कला जाति । | किया हुआ एक बारीक कपड़ा। बीसी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बीस ) बीस बुकचा- संज्ञा, पु० दे० (तु. चुकचः) गठरी, पदार्थों का समूह, कोड़ी, अन्न नापने की मुटरी, गहा, मोट। स्त्री. अल्पा०-बुकची। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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