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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिसाहा १२८२ बिहरना बिसाहा-संज्ञा, पु० दे० (हि. विसाहना) बिस्तुइया, बिसतोया-संज्ञा, स्त्री० दे० मोल ली वस्तु, सौदा-पाती, बिसाहनी। (हि. विष+ तूना =पकना) गृह-गोधा, बिसिख* -- संज्ञा, पु० दे० (सं० विशिख ) | छिपकली।। बाण, शर, तीर । " बिसिख-निकर निसिचर । | बिस्वा-संज्ञा, पु० दे० (हि. बीसवा ) मुख भरेऊ"-रामा० । यौ०-बिसिखा- एक बीघे का बीसवाँ भाग, कान्यकुब्जों सन-धनुष । की जाति मर्यादा-सूचक एक शब्द, बिसा बिसियर*-वि० (दे०) विषधर (सं.), (ग्रा०) । मुहा०-बीस विस्वा-ठीक विषैला, बिसहा। ठीक, निश्चय, निस्संदेह, बीसौ बिसे (ग्रा. बिसूरना-प्र. क्रि० दे० ( सं० विसूरण = व.)। संज्ञा, स्त्री० (दे०) वेश्या (सं०) । शोक ) मन में दुख मानना, शोक या खेद "बिस्वा, बंदर, श्रगिन, जल, कूटी, कटक, करना, स्मरण करना । संज्ञा, स्त्री०-सोच, कलार।" चिन्ता । "जानि कठिन सिव-चाप बिसूरति” | विस्वास-संज्ञा, पु. (दे०) (सं० विश्वास ) -रामा। प्रतीति, एतबार, भरोसा, पिसास (प्रा.)। बिसेखना*-अ० कि० दे० (सं० विशेष) वि. विस्वासी। विशेष रूप से व्योरेवार बयान करना, बिहंग, विहंगम-संज्ञा, पु. (दे०) (सं० निश्चय या निर्णय करना, विशेष रूप से विहंग) पक्षी, चिड़िया। "पंख-हीन जिमि जान पड़ना। दुखी बिहंगा".-रामा। बिसेन-संज्ञा, पु० (दे०) क्षत्रियों की एक विहंडना-स० क्रि० दे० (सं० विघटन, जाति । प्रा० विहंडन ) तोड़ना, नष्ट करना, टुकड़े बिसेस*--वि० दे० (सं० विशेष ) अधिक, टुकड़े करना, मार डालना। ज्यादा, बढ़कर, भेद, अंतर, दोष (ग्रा.)। बिहंसना- अ० कि० दे० (सं० विहसन ) "अश्व लिये जुग दाम दिये नहिं एको मुसकुराना, हँसना। विवेक बिसेस लखाई " -जिया। विहसाना-स० क्रि० (हि. विहँसना ) बिसेसर-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० हर्षित या प्रफुल्लित करना, हँसाना । विश्वेश्वर ) जगदीश्वर, महादेव जी। विहसौहा-- वि० दे० (हि. विहसना) हँसता बिस्तर-संज्ञा, पु. (फा० सं० विस्तर ) बिछौना, विछावन, विस्तार, बढ़ाव, बिसतर बिहग* संज्ञा, पु. (दे०) (सं० विहग) पक्षी । “संसय बिहग उड़ावनहारी"-- बिस्तरना*-अ० कि० दे० (सं० विस्तरण), रामा। फैलना, चारों ओर बढ़ना । संज्ञा, पु. (दे०) बिहतरी-संज्ञा, स्त्री. ( फ़ा० ) भलाई, विस्तरन । स० कि० दे० बढ़ाना, फैलाना, अच्छाई, कल्याण, बेहतरी। बढ़ाकर कहना। | बिहद, बिहद*- वि० दे० (फा० बेहद ) बिस्तार-संज्ञा, पु० (दे०) (सं० विस्तार) असीम, अपार, अधिक, बेहद (दे०)। फैलाव, बदाव । वि. विस्तारित । बिहबल*-वि० दे० (सं० विह्वल) व्याकुल, बिस्तारना-स० क्रि० दे० ( सं० विस्तरण ) बेचैन, विकल । फैलाना, विस्तार करना। संज्ञा, पु. बिस्ता- बिहरना-अ० क्रि० दे० (सं० विहरण ) रन । “कूप भेक जाने कहा, सागर को भ्रमण या यात्रा करना, घूमना, फिरना, विस्तार"-नीति । सैर करना। संज्ञा, पु. (दे०) बिहरन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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