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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - बिड़रना १२७२ बिदकना हुआ । वि० ( हि विविना + डर ) ढीठ, काटना । "काव्य शास्त्र के माद में, पंडित निडर, निर्भीक, पृष्ठ । बितवत काल-" भ० नीति अनु० । बिड़रना-अ० क्रि० दे० (सं० विट ) इधर | बिताना-स० कि० दे० (सं० व्यतीत) उधर होना, बिचकना (पशुओं का) तितर- व्यतीत करना, काटना, गुज़ारना ( फ़ा० )। बितर या नष्ट होना । स० रूप-बिड़राना प्रे० रूप-बितवाना। प्रे० रूप-बिडरवाना। | बितीतना-अ० कि० दे० (सं० व्यतीत ) बिड़वना*- स० कि० दे० (सं० विट ) व्यतीत होना, बीतना, गुजरना । स० क्रि० तोड़ना। बिताना, गुज़ारना ।-" कैधौ साँझ ही बिडारना-स. क्रि० (हि० विड़रना) डराकर | बितीते पै"- पद्मा। भगाना, बिचकाना, तितर-बितर या नष्ट बितु*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वित्त ) बित, करना । "जैसे छेरिन में बिग पैठे जैसे | धन, दौलत, सामर्थ्य । नहरु बिड़ारै गाय -श्राल्हा। | बित्त-संज्ञा, पु० दे० (सं० वित्त ) धन, बिड़ाल-संज्ञा, पु० (सं०) बिलार, बिल्ली, सामर्थ्य, औकात, हैसियत । चोरी कबौं न दुर्गा से मारा गया बिड़ालाक्ष दैत्य, दोहे का कीजिये, जदपि मिलै बहु वित्त-०। बीसवाँ रूप (पि०)। वित्ता- संज्ञा, पु० (दे०) पूर्णतया फैले हुए बिड़ौजा-संज्ञा, पु० (सं०) इन्द्र । " बिडौजा | पंजे में अँगूठे के सिरे से कनिष्टिका के सिरे पाक शासन।"-श्रमर । तक की दूरी, चौथाई गज, बालिश्त (फ़ा०) बिढ़तो*-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बढ़ना) बीता, बिलस्ता (प्रान्ती०)। कमाई, लाभ। बिथकना-अ.क्रि० दे० (हि. थकना ) बिढ़वना*-स० कि० दे० ( हि० बढ़ाना ) । हैरान या परेशान होना, थकना, मोहित या कमाना, जोड़ना, संचय करना, पैदा करना। चकित होना । वि० (हि.)-बिथकित ।। बिढ़ाना*-स० क्रि० दे० ( हि० बढ़ाना ) बिथरना, बिथुरना--अ० कि० दे० (सं० कमाना या पैदा करना, जोड़ना,संचय करना। बिस्तृत) बिखरना, छितराना, खिल जाना, अलग अलग होना, फैल जाना। स० रूपबित-*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वित्त ) बिथराना, प्रे० रूप-विथरवाना। शक्ति, द्रव्य, धन, दौलत, श्राकार, सामर्थ्य । विथा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० व्यथा ) "सुत, बित, नारि बंधु, परिवारा"--रामा०। व्यथा, पीड़ा, कष्ट, दुख । “विरह बिथा जल बितताना- अ० क्रि० दे० ( हि० बिलखना ) परस बिन, बसियत मो हिय लाल-वि० । व्याकुल या संतप्त होना, बिलखना । स० | बिथारना-स० क्रि० दे० ( हि० विथरना ) क्रि० -सताना, दिक या दुखी करना। फैलाना, बिखेरना, छितराना, छिटकाना। बितना-संज्ञा, पु० दे० (हि. वित्ता) | प्र रूप-बिथरवाना। चौथाई गज या एक बित्ता लंबा, बीता | बिथित*-वि० दे० ( सं० व्यथित ) व्यथित, बालिश्त । वि० (दे०) बितनिया-बौना। | दुखित, पीड़ित । अ० क्रि० (दे०) बीतना, समाप्त होना। बिथोरना*-स० क्रि० दे० ( हि० विथराना ) बितरना8 स० क्रि० दे० (सं० वितरण) | फाड़ना, पृथक करना, बिथराना, छितराना । बाँटना, बरताना (ग्रा०)। "बारन बिथोरि थोरि थोरि जे निहारे नैन"। बितवना, बितावना-स० क्रि० दे० बिदकना-अ० क्रि० दे० (सं० विदारण ) (सं० व्यतीत) विताना, व्यतीत करना, घायल होना, फटना, चिरना, भड़कना, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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