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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिगराइल १२६८ बिच बिगराइला--वि० (दे०) बिगडैल (हि०)। बिगुलर -संज्ञा, पु० (अं०) बिगुल बजाने बिगसना-अ० कि० दे० ( हि० बिकसना) वाला। विकसना, फूलना । स० प्रे० रूष-बिग-बिगूचन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विकंचन या साना, बिगसावना। विवेचन ) मनुष्य के किंकर्त्तव्य विमूढ़ होने बिगहा-संज्ञा, पु० (दे०) बीघा (हि०)। । की दशा, अड़चन, कठिनता, असमंजस बिगाड़-संज्ञा, पु० दे० ( घिगड़ना ) दोष, । हैरानी, दिक्कत, परेशानी, द्विविधा। ख़राबी, वैमनस्य, झगड़ा, मनोमालिन्य। बिगूचना-अ० कि० दे० (सं० विकंचन ) बिगाडना-स. क्रि० दे० ( सं० विकार) असमंजस या अड़चन में पड़ना, पकड़ा या किसी चीज़ में दोष या विकार पैदा कर उसे । दबाया जाना, द्विविधा में आना । स० कि० ठीक न होने देना, बुरी दशा या अवस्था में | दे० (सं० विकुचन ) छोप लेना, धर दबाना, लाना, कुमार्गी करना, बुरा स्वभाव डालना, दबोचना। स्त्री का सतीत्व भ्रष्ट करना, बहकाना, खराब | बिगोई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. विगोना ) करना, किसी वस्तु के वास्तविक रूप, गुणादि भ्रम, भुलावा, छिपाव, दुराव, तंग या दिक को नष्ट करना, व्यर्थ व्यय करना । करना, नष्ट किया । " राज करत यहि दैव बिगोई"-रामा०। बिगाना-वि० दे० ( फ़ा० बेगाना) पराया, बिगोना-स० क्रि० दे० (सं० विगोपन ) गैर, दूसरा । यौ० अपना-बिगाना। बिगार-संज्ञा, पु० (दे०) बिगाड़ (हि.)। बिगाडना या नष्ट-भ्रष्ट करना, दुराना, बिगारिख-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बेगार (हि.) छिपाना, दिक या तंग करना, बहकाना या भ्रम में डालना, बिताना, सोना। बिना मूल्य बलात्कार्य लेना। बिग्गाहा- संज्ञा, पु० दे० (सं० विगाथा ) बिगारी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बेगारी (हि०)। भार्या छंद का एक भेद, उद्गीति (पिं.)। बिगास-संज्ञा, पु० (दे०) विकास (सं०)। बिग्रह-संज्ञा, पु० दे० (सं० विग्रह ) विभाग बिगासना-स० क्रि० दे० (हि० विकास ) करना, यौगिक या सामासिक पदों को विकसित या विकासित करना। अलग अलग करना, कलह, झगड़ा, लड़ाई, बिगिर*-क्रि० वि० (दे०) बगैर (फा०) युद्ध, विरोधियों के पक्ष में फूट या झगड़ा बिना, बिगुर (ग्रा०)। कराना, शरीर, देह । वि०-बिग्रही। बिगुन -वि० दे० (सं० बिगुण ) गुण- बिघटना-स० कि० दे० (सं० विघटन ) रहित, निर्गुणी, मूर्ख । बेगुन (दे०)। बिगाड़ना या विनाश करना, तोड़ना, नष्ट बिगुर-वि० दे० ( हि वि-गुरु ) जिसके करना । “बिरची धनु-बिघटन परिपाटी"गुरु न हो, निगुरा । क्रि० वि० (ग्रा.) बिना, रामा० । बगैर। बिधन-संज्ञा, पु. दे. (सं० विघ्न) उपद्रव बिगुरचिन* संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विकुंचन विघ्न, बाधा, रोक-टोक, उत्पात, मनाही, छेड़या विवेचन ) अड़चन, कठिनता, दिकत, छाड़ । “बिघन बिदारन, बिरद बर"। असमंजस, द्विविधा। बिधनहरन*-वि० दे० यौ० (सं० बिगुरदा-संज्ञा, पु० (दे०) एक पुराना विनहरण) विघ्न-बाधा को मिटानेवाला, बिधनहथियार। विदारन । संज्ञा, पु० (दे०) गणेशजी। बिगुल*-संज्ञा, पु. (अं०) अंग्रेजी सैनिकों | बिच-क्रि० वि० दे० ( सं० विच = अलग की एक प्रकार की तुरही। | करना) किसी वस्तु का मध्यभाग, मध्य, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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