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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बाहुयुद्ध बाहुयुद्ध - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कुश्ती, मल्लयुद्ध । १२६६ बाहुल्य - संज्ञा, पु० (सं०) अधिकता, ज्यादती, बहुतायत, बहुलता । बाहुहज़ार - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सहस्रबाहु ) राजा सहस्रवाहु | बाह्य - वि० ० (सं०) बाहरी, बाहर का, बहिरंग | संज्ञा, पु० (सं०) सवारी, यान, भार- वाहिक पशु । बाह्लीक - संज्ञा, पु० (सं० ) काम्बोज के उत्तरीय प्रदेश, बलख़ का प्राचीन नाम । बिंग† – संज्ञा, पु० दे० ( सं० व्यंग) व्यंग । बिंजन | संज्ञा, पु० दे० (सं० व्यंजन ) व्यंजन, भोज्य पदार्थ | बिंद - संज्ञा, पु० दे० (सं० बिंदु ) वीर्य या पानी की बूँद, भुजों का मध्य स्थान, बिंदी, मस्तक पर का गोल तिलक । बिंदा -संज्ञा, त्रो० दे० (सं० वृंदा ) एक गोपी का नाम तुलसी | संज्ञा, पु० दे० (सं० बिंदु ) मस्तक का बड़ा और गोल टीका, बेंदा, बुंदा (दे०) । बिंदी - संज्ञा, त्रो० दे० (सं० बिंदु ) बिंदु, शून्य, सिफर, मस्तक का गोल छोटा टीका, बैदी, बिदुली, टिकुली । बिंदुका - संज्ञा, पु० दे० (सं० बिंदु ) बिंदी | बिंदुली - संज्ञा स्त्री० दे० (सं० विंदु ) टिकुली, बिंदी । बिंधा - संज्ञा, पु० दे० (सं० विंध्य ) विंध्याचल पहाड़ | "बिंध के बासी उदासी तपोव्रतधारी" कवि० । बिंधना - अ० क्रि० दे० (सं० वेधन ) बींधा या छेदा जाना, फँसना । बिंब -संज्ञा, पु० दे० (सं० बिम्ब ) छाया, भाभास, प्रतिबिंब, प्रतिमूर्ति, कुन्दरू फल, चन्द्र या सूर्य का मंडल, कमंडल, एक छन्द (पिं० ) | संज्ञा, पु० (दे०) बाँबी । बिकर बिंबा - संज्ञा, पु० (सं० ) कुन्दरू, प्रतिबिंब | यौ० किंवा फल | "बिंबोष्टी चारु नेत्री " सुविपुल जघना - हनु० । विवसार - संज्ञा, पु० (सं० ) पटना- नरेश श्रजातशत्रु के पिता जो गौतम बुद्ध के समकालीन थे ( इति० ) । बि* - वि० दे० (सं० द्वि ) दो, द्वि । विमाता - वि० दे० ( सं० विवाहिता ) विवाहिता, व्याही हुई, विवाह संबन्धी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याह का । विद्याध - संज्ञा, पु० (दे०) व्याध, बहेलिया, व्याधि | विद्याधि - विश्राधु-संज्ञा स्त्री० पु० दे० ( सं० व्याधि, व्याध ) कष्ट, दुख, पीड़ा । बिभाज - संज्ञा, पु० (दे०) व्याज ( हि० ) सूद, बहाना | वि० विजू । विमाना- स० क्रि० दे० ( हिं० व्याह ) बच्चा जनना या देना (पशु के लिये) व्याना । (दे०) । " नतरु बाँझ भलि बादि बिश्रानी" । बिक- बिग-संज्ञा, पु० दे० (सं० वृक ) दिया । "भालु, बाघ बिक केहरि नागा "। बिकचना- -- अ० क्रि० (दे०) फूलना, खिलना । विकर - वि० दे० (सं० विकट ) भयंकर, डरावना, कठिन । "बिकट भेष मुख पंच पुरारी" - रामा० । संज्ञा, स्त्री० - बिकटता । बिना - प्र० क्रि० दे० (सं० विक्रय ) बेचा जाना, विक्रय होना । ( स० रूप - बिकाना प्रे० रूप-विकवाना ) । मुहा० - किसी के हाथ बिकना - किसी का दास या सेवक होना । 66 चितेरिन हाथ बिकानी " - रत्ना० । विना मूल्य बिकना - बिना किसी प्रतिकार के दास हो जाना । बिकरम |-- वि० संज्ञा, पु० दे० (सं० विक्रम) बल, पराक्रम, पौरुष, वीरता, राजा विक्रमादित्य, बिकरमाजीत (दे० ) । विकरार - वि० दे० ( फ़ा० बेकरार ) व्याकुल । वि० दे० (सं० विकराल ) भयंकर For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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