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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाल्य बासा बाल्य-संज्ञा, पु० (सं०) बचपन, लड़कपन, ओर का, बायाँ, विरुद्ध, प्रतिकूल, वाम। संज्ञा, बालक होने की अवस्था। वि० (सं०) बालक पु० (दे०) बायाँ तबला । का या लड़कपन का। | बाशिंदा-संज्ञा, पु. (फा०) रहने वाला, बाल्यावस्था-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) लड़क- निवासी। (ब. २०-वाशिदगान ।) पन, १६ या १७ वर्ष तक की अवस्था, बाप्प-संज्ञा, पु० दे० (सं० वाष्प ) भात, बाल्यकाल। भाप, अश्रु, आँसू, लोहा, बाक (ग्रा०)। यौ०बाव-संज्ञा, पु० दे० (सं० वायु) वायु, बाप्पकण-प्रभु-कण ( विंदु०)। पवन, अपानवायु, हवा, पाद बाउ (ग्रा०) बास--- संज्ञा, पु० दे० ( सं० वास ) निवास, बावड़ी---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बावलो)। स्थान, रहने की जगह, गंध, महक, एक छंद बावली। (पिं० ), कपड़ा वस्त्र, रहने का भाव । बावन-संज्ञा, पु० दे० (सं० वामन ) छोटे संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वासना ) इच्छा । संज्ञा, शरीर का मनुष्य, बौना, बामन का अवतार। पु० दे० ( सं० वसन ) कपड़ा, छोटा वस्त्र । संज्ञा, पु० दे० (सं० द्विपंचाशत ) पवास और संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वाशिः ) अग्नि, पाग, दो की संख्या, ५२ । वि. पचास और एक हथियार, पैने चाकू छुरी श्रादि छोटे दो। "हरि बाढ़े आकाश लौं, बावन छुटा अस्त्र जो तोपों के द्वारा फेंके जाते हैं। न नाम "-रही । मुह---वाचन "वरु भल बाम नरक कर ताता"- रामा० । तोले पावरत्तो--बिलकुल ठीक, सही या बासकसजा संज्ञा, स्त्री० (सं०) वह नायिका दुरुस्त । बावनवोर--बड़ा शूर-वीर या जो स्वामी या प्रियतम के श्राने पर केलि. बहादुर, बड़ा चालाक । लो०--- 'एक बेर सामग्री उपस्थित करे या सजावे । डहकावै, सो बावनवीर कहावै '- घा० । बासन-संज्ञा, पु० (सं०) वरतन-भाँडा, वस्त्र, बावर, बावरा*/- वि० दे० (हि. बावला) कपड़ा । यौ० भंडवा-बासन । “बदलत पागल, सिड़ी, बावला, बौरा, पाउर (ग्रा० ।। वाहन, बासन सबै"- राम चं० । "लेहि न संज्ञा, पु. (फा०) विश्वास । “बावरो बासन वपन चुराई".-रामा० । रावरो नाह भवानी"-विन० : बासना-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वासना) बावरची-संज्ञा, पु० (फा० ) रसोइया इच्छा, अभिलाषा, मनोरथ । स० क्रि० (दे०) (मुसल०)। सुगंधित या सुवासित करना, महकाना, वास बावरची-ख़ाना-संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा.) देना । संज्ञा, स्त्री० (सं०वास) गंध, महक, बू । भोजनालय, रसोईघर (मुसल०)। बासमती- संज्ञा, पु. ( हि० वास = महक + बावला-वि० पु. दे० ( सं० वातुल, प्रा. मती-प्रत्य०) एक सुगंधित धान या चावल । बाउल ) सिड़ी, पागल, मूर्ख, बौरा (ग्रा०)। बासर-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वासर ) दिन, स्त्री० बाउली। सवेरा, प्रातःकाल, सवेरे का राग । यौ०बावलापन- संज्ञा, पु. ( हि० ) सिडीपन, | निसि बासर । "भूख न बासर नींद न झक, पागलपन । जामिनि" --- रामा० । बावली-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चाव+ लीप्रत्य० ) चौड़े मुँह का सीढ़ीदार कुनाँ, बाससी--संज्ञा, पु० दे० (सं० वासस् ) वापिका, वापी। कपड़ा, वस्त्र । बावाँ, बाँव*- वि० दे० (सं० वाम ) बाई | बासा- संज्ञा, पु० दे० (सं० वास ) वह सव--स For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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