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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांधनीपौर १२५० बाईस, बाइस से मर्यादित रखना, मंत्र-तंत्र के द्वारा गति बोला-संज्ञा, पु० दे० (सं० वस - रीड़ ) या शक्ति रोकना, प्रेम-पाश में जकड़ना। नाक के दोनों नथनों के बीच की हड़ी, पीठ बांधनीपौर* --संज्ञा, स्त्री. द. यौ० (हि. को हड्डी, रीढ़। बांधना--पौरि) पशुओं के बाँधने की जगह। बाँसी-संज्ञा, स्त्री० (पु०) दे० ( हि० बाँस ) बांधनू-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाँधना ) उप- एक नरम बाँस, एक धान या चावल । क्रम, मंसूबा, विचार, मनगढंत बात, ख्याली बाँसुरी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वंश+स्वर) पुलाव, भूठा दोष, कलंक, रंगरेज का कपड़ा वशी. बाँस से बना और मुँह से बजाने का लहरियादार रँगाई के पहले वस्त्र में गाँरें। एक बाजा, बसुरी, बाँसुरिया, बसुरिया । लगाना, इस प्रकार रँगी चुनरी, किसी बात बांह-बांही--संज्ञा, सी० दे० (सं० वाहु) को संभव जान तत्सम्बन्ध में पहिले से ही हाथ, भुजा, बाहु, बंहिया (प्रा.)। "बाँह विचार बनाना। छुड़ाये जात हो, जानि आँधरों मोहि"बांधव-संज्ञा, पु. (सं०) बंधु, भाई, नातेदार, सूर० । मुहा०-बाँह गहना या पकड़ना मित्र । यौ०-बंधु-बांधव । -~-सहारा देना, मदद करना, अपनाना, बाँबी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वल्मीक ) साँप ब्याह करना । बाँह दना-सहायता या का बिल, बैबीठा (ग्रा.), साँप का बिल, सहारा देना। यौल-बाँह-बाल-सहायता दीमकों का बनाया मिट्टी का भीटा। देने या रक्षा करने का वचन । बल, सहायक, बाँभन-संज्ञा, पु. दे० (सं० ब्राह्मण) ब्राह्मण, रक्षक, शक्ति । मुहा० -बाँह टूरना--- विप्र, बाम्हन (ग्रा० )। भाई. रक्षक या सहायक न रह जाना, दो बाँधना -स० क्रि० (दे०) रखना। संज्ञा, श्रादमियों के मिल कर करने की एक कसरत, पु० (दे०) बौना, वामन । भरोसा, सहारा, शरण, धास्तीन, कुरते, बांस--संज्ञा, पु० दे० (सं० वंश ) कई पोले कांडों और गाँठों वाला तृण जाति का एक कोट आदि का वह मोहरीदार भाग जिसमें बाँह डालते हैं। महा. बह गहे की प्रकार की वनस्पति पेड़। मुहा० --बॉस पर लाज-रक्षा करने के प्रण को अनेक कष्ट चढ़ना ( चढ़ाना )-बदनाम होना, ! भोगते हुये भी न छोड़ना । “एक बिभीषन (करना)बाँस पर चढ़ाना--बदनाम बाँह गहे की।" करना, बहुत बड़ा देना, अति धादर देकर धीठ या घमंडी कर देना ! बाँसों उछातना बा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वा -- जल ) पानी। ----बहुत अधिक प्रसन्न होना । सवा तीन संज्ञा, पु० (फा० बार ) मरतबा, बार, दका। गन की नाप, लाठी, नाव खेने की लग्गी, बाई-बाय-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वायु ) वात, रीढ़ । मुहा०--कुवों में बांस छोड़ना रोग । “नाई के बाई भई, राई दई लगाय" खूब ढंढना। -कुं० वि० ला० । मुहा०-बाई की बाँसपूर - संज्ञा, पु० दे० (हि० घाँसपूरना) झोंक--- श्रावेश, वायु का प्रकोप । बाई एक बारीक वस्त्र। नढ़ाना-----वायु का कुपित होना, घमंड से बांसफोड़ा-संज्ञा, पु० यौ० (दे०) एक जाति व्यर्थ बकना करना। बाई पवना-वायु विशेष दोष का शान्त होना, घमंड टूटना । संज्ञा, बांसली-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बाँस-+ली- स्त्रो० दे० (हि. बाबा. बाबी ) स्त्रियों के लिये प्रत्य० ) वंशी, मुरली, बाँसुरी, हिमयानी यादर का शब्द, यह कहीं कहीं रंडियों के (प्रान्ती०) । रुपये-पैसे रख कमर में कसने नाम के पीछे बोला जाता है। की जालीदार लम्बी थैली, बसनी। बाईस, बाइस--संज्ञा, पु०दे० (सं० द्वाविंशति) For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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