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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुल १२४९ बाँकिया रूप , स्वाँगी तमाशिया. जो अनेक रूप पशु-पतियों के पकड़ने या मारने का व्ययधरकर दिग्वाता है, जीव, बहुरूपी। साय करने वाला। बहुल-वि० (स.) अधिक, बहुत । बहोर, बहोरिछ-संज्ञा, पु० (हि० बहुरना) बहुलता- संज्ञा, स्त्री० (सं०) बाहुल्य, अधि वापसी, फेरा । क्रि० वि० वारि - फिर । कता, बहुतायत । " कह कर जोरि बहारी" | "फिरति बहोरि बहुला--सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बहुला ) बहोरि"- रामा० । इलायची। बहोरना-- स० क्रि० दे० ( हि० बहुरना ) बहुबचन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शब्द का फेरना, लौटाना, वापिस करना। वह रूप 'जससे एक से अधिक वस्तु का बहोरि बहोगां*--अव्य० दे० (हि० बहोर) ज्ञान हो ( व्या० )। फिर, पुनः, पश्चात् को। “पालिष दीन्ह बहारि बहोरी"-रामा० ।। बहुव्रीह-सज्ञा, पु० (स०) ६ प्रकार की वह्मनेटा-संज्ञा, पु० दे० (सं० ब्राह्मण ) समासों में से वह समाल जिसके दो या ब्राह्मण का पुत्र, ( तिरस्कार-सूचक है )। अधिक पदों से बने समस्त पद से अन्य पदार्थ का बोध हो और जो किसी पद का बाँ-संज्ञा, पु० (अनु०) बैल या गाय के बोलने का शब्द । । संज्ञा, पु० दे० (हि० वेर) वार, विशेषण सा हो-(व्या०)। वेर, दफ़ा । "मैं तोसौं कै बाँ कह्यो"-वि० । बहुश्रुत--वि• यौ० (सं०) अनेक विषयों का बांक-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० बैंक ) बाँह का ज्ञाता, जिसने बहुत सुना हो। एक भूषण, पैरों का चाँदी का एक गहना, बहुसंख्यक-- वि० यौ० (सं०) जो गिनती में एक प्रकार का चाकू , धनुष, हाथ की एक बहुत अधिक हो. अगणित, बहुसंख्यात । चौड़ी चूड़ी। संज्ञा, पु० (दे०) वक्रता टेढ़ाई। बहुँदा--संज्ञा, पु० दे० ( सं० बाहुस्थ ) बाँह वि० (सं० वंक) टेढ़ा. तिरछा, बांका (दे०)। का एक गहना, बहुँटा । स्त्री. अल्पा..--बांकडी- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बंक -- डीबहूँटी, बहुँदी। प्रत्य० ) बादले और कलाबत्तू का सोनहला बहू-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वधू) पतोहू, या रूपहला फीता। पुत्रवधू, पत्नी, दुलहिन । बाँकडोरी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि० बांक) बहूपमा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक अर्था- | एक प्रकार का हथियार । लंकार जिसमें एक ही धर्म से एक ही उप | बाँकना- स० कि० दे० (सं० बंक ) टेदा मेय के अनेक उपमान कहे गये हों | करना । —अ० क्रि० (दे०) टेढ़ा होना। (अ० पी०)। बांकपन, बाँकपना. बाँकापन-संज्ञा, पु. बहेड़ा-बहेग--- संज्ञा, पु० दे० (सं० विभीतक, दे० (हि. बाँका । पन--प्रत्य० ) तिरछापन प्रा० बडय) एक पेड़ जिसके फल औषधि या टेढ़ापन, छैलापन : के काम में आते हैं। बाँकड़ा-बाँकरा बाँकुग--- वि० दे० (सं० वंक, हि० बाँका ) बहादुर शूरवीर। बहेतू-वि० दे० (हि. बहना ) मारा मारा बांकडी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक प्रकार का फिरने वाला, कुमार्गी। गोटा। बहेरी*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बहराना ) बांका-वि० दे० ( सं० वंक ) तिरछा, टेढ़ा, मिस, बहाना, होला। अच्छा, चोखा, वीर, छैला, बना-ठना, मुंदर। बहेलिया-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वध+ हेला) | बाँकिया-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वंक =टेढ़ा ) किरात, व्याधा, हिंसक, शिकारी, चिड़ीमार, | नरसिंहा बाजा। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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