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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir meansw फुड़िया १२०५ फुलझड़ी, फुलझरी फुड़िया-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्फोट) छोटा पूरा उतरना, प्रभाव उत्पन्न करना या फोड़ा फुसी। दिखाना, निकलना । स० रूप-फुराना, प्रे. फुकार-संज्ञा, पु० दे० (सं० फूत्कार) दुस्कार, रूप-फुरवाना)। तिरस्कार फुसकार । फुरफुराना -स० कि० दे० (अनु. फुरफुर ) फुदकना-अ० कि० ( अनु०) उछल उछल उड़ना. पंखों का शब्द करना, वायु. में लहकर कूदना, उमंगित होना। राना, फरफराना । अ० क्रि०-किसी हलफुदकी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फुदकना ) एक की वस्तु का फुर फुर शब्द कर हिलना। बहुत छोटी चिड़िया। फुरफुरी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अनु० ) फुरफुर फुनँग-फुनगी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुलक) / शब्द होने या पंख फड़फड़ाने का भाव । अंकुर, पौधों या पेड़ों की डालियों का फरमान--संज्ञा, पु० (दे०) फरमान (फा०) अग्रिम खंड। राजाज्ञा। फुप्फुस-संज्ञा, पु. (सं०) फेफड़ा। फुरमाना-प० क्रि० दे० (फा० फरमाना) फर्कंदी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हिं फूल-+ फंद) श्राज्ञा देना, कहना, स्फुरित या प्रकट करना। नीवी, स्त्रियों की धोती की गाँठ या घाँघरे । “सो सब तुरत देहु फुरमाय"-पाल्हा० । (लहगे) का नारा, इजारबंद, कमरबंद। फुरसत ... सज्ञा, स्त्री० (१०) अवकाश, अवफुफकना-अ० (दे०) फुफकारना । ( स० सर, निवृत्ति, छुट्टी, पाराम, रोग मुक्ति । रूप-फुसकाना )। फुरहरना-- अ० क्रि० दे० (सं० स्फुरण) निकफुफकार-संज्ञा, पु. (अनु०) फुकार, फुप- लना स्फुरित, या उद्भुत होना। कार, साँप के मुख से निकली वायु का शब्द। फरहरी-सज्ञा, स्त्री. ( अनु०) कँपकँपी, फुफकारना-अ० कि० दे० (फुफकार) साँप । फड़कना, पती के उड़ने से परों का श-द, का मुख से वायु निकालना, फुसकारना, हवा में वस्त्रादि के उड़ने का शब्द फरफराहट, फूरकार छोड़ना। रोमांच युक्त कंप, सींक के छोर पर इतर में फुझी-फुफू*-संज्ञा, सी० दे० ( अनु०)। डूबी रुई का फ्राहा, फुरेरी। बाप की बहन, बुथा । फूका, फूफू, पु०- फुरेरी संज्ञा, खो० दे० (हि. फुरफुराना) फूफा। सींक के सिरे पर इतर में डूबी हलकी लिपटी फुफेरा- वि० दे० (हिं. फूफा+रा-प्रत्य०) | रुई. फुरहरी, रोमांच-युक्त कंप । मुहा० फूफा का पुत्र, फूफा से उत्पन्न । स्त्री० फुफेरी। फुरेरी लेना - फड़कना, भय या शीत फुर, फुरु-वि० दे० (फुरना) सच, सत्य । आदि से रोमांचित होना या काँपना, संज्ञा, स्त्री० (अनु०) पक्षी के उड़ने में पंखों का थरथराना, हिलना, थरथराना । शब्द "तौ फुर होइ जो कहाँ सब"-रामा। फुलका-संज्ञा, पु० दे० (हि० फूलना ) फुरती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्फूर्ति ) तेज़ी, झलका, छाला, फफोला, पतली और जल्दी, शीघ्रता। छोटी रोटी, चपाती । स्त्री. अल्पा.फुरतीला-वि० दे० (हिं. फुरती+ईला- फुलको।। प्रत्य०) तेज, फुरतीवाला । स्त्री-फुर- फुलचुही -- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फूल + तोली। चूसना ) एक काली चिड़या। फुरना*-अ० क्रि० दे० ( सं० स्फुरण) फुलझड़ी, फुलझरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. प्रगट या उद्भूत होना, उच्चरित या प्रकाशित | फूल + झड़ना ) एक तरह की पातशबाजी, होना, फड़कना, चमक जाना, सत्य ठहरना, उपद्रव या फसाद पैदा कराने वाली बात । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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