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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - फ़रशबंद १९९७ फ़रोश फरशबंद-संज्ञा, पु० दे० ( अ० फर्श+ सामने न सिला हुआ एक प्रकार का घा बंद-फा०) फ़रश। या लहंगा, सारी।" चीर नयी फरिया लै फरशी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) धातु का बड़ा अपने हाथ बनाई"--सूबे । हुक्का, गुड़गुड़ी। फ़रियाद-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) न्याय-रक्षार्थ, फरस, फरसा-संज्ञा, पु० दे० (सं० परशु) पुकार, नालिश, प्रार्थना, शोर, शिकायत, पैनी और चौड़ी धार की कुल्हाड़ी, कुठार, गुहार (३०) । “ गुलसितां से ताकफस इक फावड़ा । संज्ञा, पु. (दे०) फर्श । शोर है फरियाद का"-- स्फुट । फरहद-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पारिभद्र ) एक | फ़रियादी-वि. ( फा० ) फरियाद या शोर पेड़ जिसकी छाल और फूलों से रंग बनता | करने वाला, प्रार्थी। | फरियाना-स० कि० दे० (सं० फली करण ) फरहर-वि० (दे०) वृष्टि के बाद धूप और साफ या शुद्ध करना, तै करना, निपटाना । हवा से भूमि का कुछ सूख जाना, थकी कम अ० कि० (दे०) छंट कर अलग होना, साफ होना, उत्तेजना पाना। या शुद्ध होना, लिपटना, समझ पड़ना । फरहरना-प्र० क्रि० ( ० फर फर ) | फ़रिश्ता-संज्ञा, पु. ( फ़ा० ) भगवान का फहराना, फरफराना। फरहरत केतु ध्वजा- सेवक जो पैगम्बरों के पास भगवान का पताका"-हरि० काशी । आदेश लाता है ( मुस० ), देवता, देव-दूत, फरहरा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० फरहरना) | ईशाज्ञाकारी। पताका, झंडा । स्त्री. फरहरी । वि० (दे०) फरी-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० फल ) कुशी, फरहर, फरहार, फलाहार । फाल, गाड़ी का हरिसा, फड़, गदके की फरहार--संज्ञा, पु० (दे०) फलाहार (सं.)। चोट रोकने की चमड़े की छोटी ढाल । फगक ----संज्ञा, पु० दे० (फा० फ़राख ) फरीक-संज्ञा, पु. ( अ० ) विरोधी, विपक्षी, मैदान । वि. विस्तृत, लंबा, चौड़ा। दो पक्षों में से किसी पक्ष का कोई व्यक्ति । फराख-वि० (फा०) लंबा-चौड़ा, फरॉक । । यौ० फ़रीक सानी-प्रति वादी, विपक्षी संज्ञा, स्त्री० ( फा०) फराखी-चौड़ाई (कानून)। सम्पन्नता, विस्तार। फरही-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फावड़ा) फराकर फरागत-वि० द० (फ़ा० फाराख) मथानी, छोटा फावड़ा। पु. हा । संज्ञा, मैदान जो लंबा चौड़ा और समतल हो, स्त्री० दे० (संस्कुरगा) फरवी, लाई, मुरमु । विस्तृत फरागत (दे०)। संज्ञा, पु० दे० फरेंदा --संज्ञा, 'पु० दे० (सं० फलेंद्र ) बढ़िया (अ० फरागत) मुक्ति. छुट्टी, निवृत्ति, फुरसत, जामुन । स्त्री० फारेंदी। निश्चितता, मल-त्याग यौ० दिसा फरागत। फरेब ---संज्ञा, पु. (फ़ा०) कपट, छल, धोखा। फ़रामोश-वि० ( फा० विस्मृत, भूला यौ०-जाल-फरेन । हुआ। संज्ञा, स्त्री० फरामोशी । यौ० एह- फरेबी-संज्ञा, पु० (फा०) कपटी, धोखेबाज, सान फरामोश। छली, ढोंगी, मकार। फरार-वि० ( अ०) भागा हुआ। फरेरी--संज्ञा, श्री० दे० (हि० फल +रीफरासीस, हरामांसी --- वि० दे० (हि. प्रत्य० ) बन फला, बन की मेवा। फरासीस) फ्रांस का रहने वाला. फ्रांस का, फरोख्त -- संज्ञा, स्त्री० (फा० बेचना, विक्री। एक लाल छींट, फांस देश । फ़रोश--वि० [फा०) बेचने वाला, जैसेफरिया-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फरना ) | मेवा-फरोश । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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