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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रपनीत पु० अपना । अपनीत - वि० (सं० ) हटाया गया, कृत, पसारित । www.kobatirth.org १०७ दूरी - अपश - वि० (सं० ) स्वाधीन, स्वतंत्र अपने बश, स्वच्छन्द । अभय - संज्ञा, पु० (सं० ) निर्भयता, निर्भीकता, व्यर्थ भय, डर, भय, भीति, विगतभय, निडरता । वि० (सं० ) निर्भय, निडर, निर्भीक । (6 अपभय कुटिल महीप डराने " - रामा० । अपभाषा – संज्ञा स्त्री० (सं० ) गँवारी बोली, बुरी भाषा, अशुद्ध भाषा, श्रसाधु " शब्द, कुवाक्य | अपभ्रंश - संज्ञा, पु० (सं० ) पतन, गिराव, बिगाड़, विकृति, बिगड़ा हुआ शब्द, अशुद्ध शब्द, ग्राम्य प्रयोग, अपशब्द, एक प्रकार की विकृत भाषा | वि० विकृत, बिगढ़ा हुआ । वि० - अपभ्रंशित - बिगाड़ा हुआ । अपमान - संज्ञा, पु० (सं० ) अनादर, श्रवज्ञा, तिरस्कार, बेइज्जती, असम्मान, निरादर | अपमानना स० क्रि० (सं० अपमान ) अपमान करना, निरादर करना, तिरस्कार करना । अपमानित - वि० (सं० ) निंदित, असम्मानित, बेइज्ज़त | अपमानी - वि० (सं० अपमानिन् ) निरादर करने वाला, तिरस्कार करनेवाला । स्त्री० अपमानिनी । अपमार्ग-संज्ञा. पु० (सं० ) कुमार्ग, कुपथ, पंथ अपमृत्यु- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कुमृत्यु, कुसमय मृत्यु, अपघात-मरण, अस्वाभाविक कारणों से अकाल मृत्यु | अपयश संज्ञा, पु० (सं० ) अपकीर्ति, बदनामी, बुराई, कलंक, लांछन, ख्याति, प्रतिष्ठा, अपजस (दे० ) । अपरना अपजस संज्ञा, पु० (दे० ) अकीर्ति वि० अपयशी - बदनाब | अपजसी (दे० ) । अपयोग - संज्ञा, पु० (सं० ) कुयोग, कुस मय, कुचाल, कुरीति । " जिनके संग स्याम सुन्दर सखि सीखे सब अपयोग - सूबे० । अपरंच अव्य० (सं० ) और भी, फिर भी, पुनः, आगे 1 अपरंपार - वि० ( सं० अपरं + पारहि० ) जिसका पारावार न हो, अपार, असीम, अनन्त, बेहद | ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपर - वि० (सं० ) इतर, अन्य दूसरा, पर, भिन्न, पूर्व का, पहिला, पिछला । ( हि० अ + पर ) जो दूसरा न हो । अपरग - वि० दे० पु० (सं० अपर + ग ) अन्य मार्गगामी, श्रन्यगामी, व्यभिचारी, अन्य मार्गी । अपरछन - वि० (सं० प्रप्रच्छन्न, अपरिच्छन्न) श्रावरण-रहित, जो ढका न हो, थावृत, छिपा हुआ, गुप्त । " अपरता - संज्ञा स्त्री० ( हि० ) परायापन, परता नहीं, अपनापन । ( संज्ञा, स्त्री० सं० अ + परता = परायापन ) भेद-भाव - शून्यता । वि० स्वार्थी । परत - वि० दे० ( हि० अप = अपना + रत ) स्वार्थ-रत, स्वार्थी । स्त्री० अपरता । अपरती -संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० अप + रतिसं० ) स्वार्थ, बेईमानी । अपरत्व - संज्ञा, पु० (सं० ) पिछलापन, अर्वाचीनता, परायापन, बेगानगी, ( अ + परत्व ) परता - रहित, अपनत्व । अपरना* - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अपर्णा ) पार्वती, उमा । "उमा नाम तब भयउ अपरना' -रामा० । वि० (सं० अ + पर्णा) पर्ण या पत्र से रहिता, पत्र- विहीना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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