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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरीष-पुरीषा ११४३ पुरैन-पुरैनि पुरीष-पुरीषा-संज्ञा, पु. (सं० ) मल, | पुरुषपुर-संज्ञा, पु० (सं०) प्राचीन गंगाधार मैला, विष्टा, गू । “जो पुरीष सम स्यागि की राजधानी, पेशावर नगर (वर्त०) । भजै जग सोई पुरुष कहावै ''-ध्रुव०।। पुरुषमेध--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नरवलि पुरु-संज्ञा, पु. ( सं० ) अमर या देव-लोक, वाला यज्ञ मनुष्य-यज्ञ ( वैदि०) मृतक दैत्य, देह, शरीर, पराग, एक राजा जो मनुष्य की दाह-किया, दाह-कर्म । ययाति का पुत्र था, ( पुरा० ) पंजाब का पुरुष ह-संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) श्रेष्ठ राजा जो सिकंदर से लड़ा था ( इति०)। या उत्तम या उद्योगी पुरुष । “ उद्योगिनं पुरुकुत्स-संज्ञा, पु० (सं०) मान्धाता-पुत्र । पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी'-" पुरुषसिंह जो पुरुख 81 --- संज्ञा, पु० (दे०) पुरुष (सं०)। | उद्यमी लक्ष्मी ताकी चेरि"। पुरुखा-पुरुखे * 1-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पुरुषसूक्त संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) 'सहस्र पुरुष) पूर्वज, पूर्व पुरुष. बाप-दादा आदि। शीर्षा' से प्रारंभ होने वाला ऋग्वेद का एक पुरुजित- संज्ञा, पु. ( सं० ) एक राजा जो प्रसिद्ध सूक्त । अर्जुन का मामा था, विष्णु । पुरुषाद-पुरुषादक-संज्ञा, पु. (सं.) पुरुदस्म- संज्ञा, पु. ( सं० ) विष्णु । नरभक्षी, राक्षस । "पुरुषादाऽनवृतः-भा०। पुरुबा--संज्ञा, पु. द० (सं० पूर्वा) पूर्व | पुरुषाधम-वि०, संज्ञा, पु० यौ० (सं.) दिशा, पूर्व दिशा की वायु । संज्ञा, स्रो० दे० निकृष्ट, नीच, पामर मनुष्य, नराधम । (सं० पूर्वा) एक नक्षत्र पूर्वाषाद, पूर्वा । पुरुषानुक्रम ---संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पुरखों की परम्परा जो क्रम से चली आई हो। पुरुभोजा-- संज्ञा, पु० (सं० ) भेंड़, भेंड़ा। पुरुषायितबध- संज्ञा, पु. (सं० ) विपपुरुराज-- संज्ञा, पु० (सं०) पुरूरवा ।। रीति रति (कायशा०)। पुरुष-संज्ञा, पु० (सं० ) नर, आदमी पुरुषारथ *---संज्ञा, पु० दे० (सं० पुरुषार्थ) मनुष्य, प्रात्मा, जीव, ब्रह्म, विष्णु, सूर्य. । पौरुष, उद्यम, मनुष्य का उद्योग या लक्ष्य, शिव, सर्वनाम और क्रिया के रूप का वह सामर्थ्य, पराक्रम । “पारथ से छाँड़े पुरुषारय भेद जिससे वक्ता, संबोध्य, या अन्य व्यक्ति को ठाढ़े ढिग''- स्फु०। का बोध हो, पुरुष ३ हैं १-उत्तम ( कहने पुरुषार्थ-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मनुष्य का वाला) २-संवोध्य-जिससे कहा जाय, लक्ष्य या उद्योग का विषय, पराक्रम, उद्यम, ३-अन्य-जिसके विषय में कहा जाय पौरुष, सामथ्य, शक्ति । “त्रिविधि दुःखमत्यंत (व्या०), मनुष्य का शरीर, पूर्वज, स्वामी, निवत्तित्यत पुरुषार्थः" ।। पति, प्रकृति-भिन्न एक चैतन्य, अपरिणामी, | TM | पुरुषार्थी-वि० (सं० पुरुषार्थिन् ) उद्योगी, _वि. प्रसंग और अकर्ता पदार्थ (सांख्य)। परिश्रमी, बलवान, पुरुषार्थ करने वाला। पुरुषकार-वि० (सं०) पुरुष का कर्म, | पुरुषोत्तम- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उत्तम या चेष्टा, पौरुष, शौर्य । श्रेष्ठ पुरुष, विष्णु, श्रीकृष्ण, नारायण, पुरुष-कुंजर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पुरुष- | जगन्नाथ ( उड़ीसा ), मल (अधिक) मास । पुंगव, पुरुष-श्रेष्ठ। पुरुहूत--- संज्ञा, पु० (सं०) सुरेश, इन्द्र जी। पुरुषत्व संज्ञा, पु० (सं० ) पंसत्व, मनुष्य- पुरूरवा-संज्ञा, पु० (सं०) राजा इला के पुत्र पन, मरदानगी, पौरुष, बल। (ऋग्वेद) उर्वशी इनकी स्त्री थी, विश्वदेव । पुरुषत्वहीन-वि० यौ० (सं० ) पुंसत्व- पुरैन-पुनि--सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुटकिनी) रहित, नपुंसक, हिजड़ा। | कमल का पत्ता। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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