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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनर्भव - ११४० जो श्वेत, रक्त और नील रंग के फूलों के । दाँत वाली । पुं० पुपला-पोपला । विचार से तीन प्रकार का होता है। पुमान्-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) पुरुष. नर । पुनर्भव-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नख, नाखून, | पुरंजय - संज्ञा, पु० (सं०) एक सूर्य-वंशी बाल, पुनर्जन्म, पुनरुत्पत्ति, पुनर्विवाह, फिर राजा जो पीछे से ककुस्थ कहलाये, जिससे से पैदा होना, अंडज। वि०---पुनर्भन । स्त्री. सूर्यवंशी काकुस्थ कहलाते हैं, पुर राक्षस के पुनर्भधा। विजेता, इंद्र। पुनर्भ-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दो बार की व्याही | पुरंजर- संज्ञा, पु. (सं०) बय, स्कंध, कंधा, स्त्री, विरूदा स्त्री, पुनर्विवाहिता, दूसरे | से व्याही गई विधवा स्त्री। पुरंदर--संज्ञा, पु० (२०) पुर नामक दैत्य के पुनर्वसु-संज्ञा, पु० (सं०) २७ नक्षत्रों में से | नाशक, इन्द्र, विष्णु, शिव । “पुरंदरश्रीः ७ वाँ नक्षत्र, विष्णु, कात्यायन मुनि, शिव, पुरमुत्पताक'-रघु। पुरंध्री--संज्ञा, स्त्रो० (सं० ) पति, पुत्रादि से एक लोक। सुखी स्त्री, नारी, सुगृहणी। पुनर्विवाह-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दुबारा पुरः-अव्य० (सं० पुरस् ) प्रथम, पहले, आगे। ब्याह । वि० पुनर्विवाहित । “पुरः प्रवालैरिव पूरितार्धया"-माघ० । पुनवाना-स० कि० (दे०) अनादर या अप पुरःसर, पुरस्पर-वि० (सं०) प्रागे चलने मान करना, अप्रतिष्ठा करना। वाला, अग्रगामी, अनुश्रा, सहित, साथी। पनि*-क्रि० वि० दे० (सं० पुनः) फिर से, पुर-- संज्ञा, पु० ( सं० ) शहर, नगर, (खो. पुनः, दुबारा, फिर “पुनि पाउब यहि पुरी) अटारी, घर, कोठा, भुवन, लोक, विरियाँ काली"-रामा०। यौ० पुनि पुनि । राशि. शरीर, किला । वि० (अ.) भरा हुआ, पुनी*---संज्ञा, पु० दे० (सं० पुण्य) पुण्यात्मा, पूर्ण, पूरा । संज्ञा, पु. ( दे०) चरता, चरस दानी। संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पूर्ण) पूनोतिथि, चमड़े का डोल। “कृपा करिय पुर धारिय पूर्णमासी, पूर्णिमा ! क्रि० वि० दे० (सं० पुनः) । पाऊँ'-रामा०। फिर, दुबारा, पुनि, पुनः । पुरइन*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुटकिनी) पुनीत-वि० (सं०) शुद्ध, पवित्र, पावन । | कमल का पत्ता, कमल, नलिनी, पुरैनि पुन्न, पुन्य-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुण्य) पुण्य, (ग्रा० )। धर्म । यौ० दान-पुन्न। पुरइया-संज्ञा, पु० (दे०) तकुमा । “भुन पुन्ना-२० क्रि० (दे०) गाली देना, अनादर | भुन बोल पुरइया".-~-कबीर०।। या अपमान करना। पुरग्बा, पुरिखा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुरुष) पुन्नाग-संज्ञा, पु० (सं०) एक प्रकार का चंपा, | पहले के पुरुष या लोग, बाप दादा, परदादा जायफल, सफ़ेद कमल, | " पुन्नाग कहुँ कहुँ श्रादि, घर का बड़ा, बूढ़ा । “तव पुरखा नाग केसर, संतरा, नंभीर हैं' -भूष। इच्छवाकु आदि सब नभ मैं ठाढ़े"---हरि० । पुनार-संज्ञा, पु० (दे०) चकवड़ का पेड़। (स्त्री० पुरखिन)। वि० (दे०) बुजुर्ग, पुन्य - संज्ञा, पु० दे० (सं० पुण्य) धर्म- अनुभवी। मुहा०--पुरखे तर जानाकार्य, शुभ कर्म, दान, धर्म । वि० (दे०)। परलोक में पूर्वजों को उत्तम गति मिलना, शुभ, पवित्र, अच्छा। बड़ा पुण्य या फल होना। पुपत्नी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पोपची) बाँस | पुरनक-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पुचकार ) की पोली पतली नली । वि० स्त्री०-बिना पुचकार, चुमकार, उत्तेजना, उत्साह-दान, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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